एक बार झूमने लगे
बस हवाओं से कहनें लगें
ज़रा ज़रा गुज़ारिश है हवाओं
ज़रा झूमकर बहो मन बहकने लगे
कभी खुद को भी संवारने लगें
यूं ही बेवजह ही बहकने लगे
ना जाने क्या सोचकर शरमाये
देखो ना हवा से हवा हुए मचलनें लगे
नज़रों से नज़रें भी चुरानें लगे
यह क्या थें क्या नज़र आने लगें
ज़रा सी लम्हों से लम्हा चुराया है
नज़रों में सभी की हम नज़र आने लगे
वक्त बिताया है या बीत जाने लगे
ना जाने क्या पहलुओं में छाने लगें
क़रीब सी करीबी भी दूर होती गयी
जब से नज़रों में नज़रें छिपाने लगें
मौलिक रचना ---- नीलम द्विवेदी "नील"
प्रयागराज ,उत्तरप्रदेश, भारत ।