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काव्यांजलि

2 सितम्बर 2024

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सावन 
  हे री सखि बादर चिढावत है 
थम थम कै कितनी बार कहुं 
हर बार अनजाना सुर लिये 
बिजुरिया संग रास रचावत हैं 
झाकै नहिं इक पल ख़ुद कै 
मनवा को गरियन से राग गावत हैं 
दें हौ जी भर भर गारि गावहै हम जू 
ख़ुद मा भागि भागि आगि बुझावत हैं 
भाषा कहि रहि यहि कैसि बोलैं बोलि 
बोलियां मा नित नित चिंगारी जलावत हैं 
खोयि जायै खुशियां खोयि जायै चयनवा 
रहि रहि कर ज्वाला देखि भडकावत हैं 
जियै मा नहिं चैन तनिक दिखा बोलि सुन 
अधिर की अधिर भयै गलियन मा आग लगावत हैं 
झूम झूम सावन आयै कारी कोयलिया गावै 
काहे नही कारे मेघ बदरा बरसावत हैं 
जर बुझ हिये जायै जर बुझ सबहि जायै 
जरायै जरायै सा फुहार नहीं पावत है 
भीगै केवल तन बदरा मा भीगै भीगै 
मन काहै नहीं बरसात मा भिगावत है 
खूब बरसै मेघ रोज़ बरसै बरस बरस कर 
झूम झूमकर बस खींस कढावत है
        जिया जाये खीझ खीझ कहि भृकुटी भींच 
        हिया आये नयनों मा मीच मीच काहे कारे 
         कारे यही मेघ झूमकर सावनी गीत गावत हैं 
          यही पल पल में मौसम देखो सखि मन हरषावत है 
           रचनाकार ---- नीलम द्विवेदी " नील"
                    प्रयाग राज़, उत्तर प्रदेश, भारत।
51
रचनाएँ
नीलम द्विवेदी की डायरी,* काव्यांजलि*
4.5
"काव्यांजलि " यह पुस्तक विभिन्न मनोभावों को लयबद्ध तरीके से प्रस्तुत करने का सतत् प्रयास करने की कोशिश की गयी है। प्रत्येक पलों को अनेक रंगों से सुसज्जित कर सभी रसों को एक साथ करने का प्रथम प्रयास है, मां सरस्वती को ध्यान कर लेखनी को गति देने का प्रयास अवश्य सफलता प्राप्त करेगा यही हम अपने सभी पुस्तक प्रेमियों से अपेक्षा करतें हैं। काव्यांजलि की प्रेरणा हमें अपने ही बचपन के साथी वा कई प्रेरक व्यक्तित्व से प्रभावित होकर लेखनी को सुंदर करने का सतत् प्रयास है, हमारे जीवन साथी का अटूट प्यार वा बच्चों की प्यार से एक कोशिश की शुरुआत है काव्यांजलि, शब्द इन मंच का हार्दिक स्वागत वा आभार व्यक्त करतें हैं जिन्होंने व्यापक मंच दिया जिसमें प्रत्येक साहित्यकारों कों कलाकारों को एक वृहत्तर रुप में सम्मान पत्र प्राप्त हो रहा है। रचनाकार*** नीलम द्विवेदी "नील "
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2 सितम्बर 2024
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ओ वादियों जरा सुनो नालहरायीं हुयी अदा सुनो ना कहना यह नहीं था कि तुम्हें घमंड है सुनना यह था कि ज़रा सा हटो यहां तुम्हारा काम नहीं मौसमी बहारे बीत गयी&nbsp

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वृक्ष कैसे कह दें कि पेड़ में जान नहीं हां सच है कि जान में पेड़ सा प्यार नहीं है&n

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2 सितम्बर 2024
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मुस्कान यत्र तंत्र घटेयथार्थ निःस्वार्थ घटे अधरो पर मुस्कान मिथ्या स्वयं को अहंकार में घटे आप ही पोषित क्यों ना कर सके हूंकार घोषित क्या कमियां

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काव्यांजलि

2 सितम्बर 2024
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विषय ---- अपनी आवाज जन्म से लेकर मरण तकचक्रव्यूह के चरण तकछल छल छलते जातेयह कपट द्वन्द अन्तर्मन तकपीणा केवल एक दर्द नहीं अपितु प्रत्येक पलों का साया है&nbsp

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काव्यांजलि

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बचपन बचपन के वो बीतें दिन हंसी खुशी खेल में &nbs

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2 सितम्बर 2024
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कभी कभी हर इक बातों को दिल से ना लगाया करो यह किफायतो का ज

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काव्यांजलि

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,, बातें हों कुछ जज़्बात की, जिंदगियों कों संवारे ऐसी दिन रात कीखो जाते हैं जों एहले वतन पर उन्हीं चेहरों कों खूबसूरती से संवारने कीबातें सिर्फ शिक्षा के स्तर को उच्चतम बनानें की कुछ गी

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काव्यांजलि

2 सितम्बर 2024
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सुनहरे कल कल कल की प्रति ध्वनि कर्ण प्रिय सुशोभित करतीं पल पल में बहता नीर हर पल को गौरवान्वित करती ज्यों लहरिया सी बनत

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काव्यांजलि

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सुनहरे कल कल कल की प्रति ध्वनि कर्ण प्रिय सुशोभित करतीं पल पल में बहता नीर हर पल को गौरवान्वित करती ज्यों लहरिया सी बनत

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जीवन जीना नदियां हैं मौजें हैघटायें हैं बहारें है पूछना है ओ आसमां बता दो नज़ारे कहां है बीत जाना है हर लम्हे को बस बीतना है हर पल को हर घड़ी हर क्षण में है&nbs

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काव्यांजलि

2 सितम्बर 2024
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जग जग छायै रहै मन भरमाये रहै ऐसे कैसे लुकै छिपै अखियं में ताक रहै लुटरी पै लुटरी लट भरमायै रहै यही तिरछी नज़र से देखौ सखि काहे मनवा मा लुभावने नयनन लायै रहैकछु

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काव्यांजलि

2 सितम्बर 2024
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सावन देखो सखि अबकी छावत नहीं कारै मेघ कहां कहां बिजुरिया नभ में नहि है टेक कौन-कौन गलियन मा गीत सावनी कै गायै रहि किधर गयै बदरा छाए किधर गयै हरषायै बादर दे

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काव्यांजलि

2 सितम्बर 2024
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बरसात जीवन जीना नदियां हैं मौजें हैघटायें हैं बहारें है पूछना है ओ आसमां बता दो नज़ारे कहां है बीत जाना है हर लम्हे को बस बीतना है हर पल को हर घड़ी हर क्षण

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रिश्ते कुछ लुत्फ उठाते हैं कुछ दर्द बढ़ाते है कुछ ऐसी किश्ते है हर रिश्ते ढह जाते हैं वक्त की आंच पर कसौटी पर रिश्ते पक जातें हैं कुछ छोटी छोटी बात पर रिश

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सावन हे री सखि बादर चिढावत है थम थम कै कितनी बार कहुं हर बार अनजाना सुर लिये बिजुरिया संग रास रचावत हैं झाकै नहिं इक पल ख़ुद कै मनवा को गरियन से राग गावत हैं

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2 सितम्बर 2024
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पगडंडी जीवन की पगडंडियों पर छाले लिए चलते गये कुछ देर तक तकते रहें वही उजालें लेकर चलते गये कभी ठंड से कांपती काया कभी कम्बल ओढ़ते चलते गये हाल जगत में स

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2 सितम्बर 2024
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क़दम एक बार क़दम से पूछा गया,क्यों नहीं अब पहले जैसें बहुत नज़ाकत कहीं खबराहट क्यों नहीं अब करते शरारत क़दम मुस्कुराते क्या बतला

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कलिकायें छणिक उपक्रम में फलित आधुनिक आचरण युक्त अधिक घटनाएं यद्यपि उत्सुकता पूर्ण फलित लताये न

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इश्क किताबों से इश्क अच्छा है ना नफ़रत है ना दोगला किस्सा है अफसाने बहुत से हल पल बूझता अच्छी सी तबियत है सच्चा क़िस्सा है सुना जरा सा

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काव्यांजलि

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एक बार झूमने लगे बस हवाओं से कहनें लगें ज़रा ज़रा गुज़ारिश है हवाओं ज़रा झूमकर बहो मन बहकने लगे कभी खुद को भी संवारने लगें &nbs

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काव्यांजलि

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सदस्य हर घड़ी की टिक टिक पर हर घड़ी पर किच किच कर वह यूं ही अज

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खर्च कुछ खर्च कुछ पल कुछ ग़म&

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काव्यांजलि

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भेदभाव मानवीय गुणों से भरपूर रूपीय गुणों से भरपूर अमूल्य धरोहर सा संजोय मन भावन काहे को होय

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काव्यांजलि

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प्यार एक कोना दिल का उपजते सभी बारी बारी माली बन करें रखवाली ज्यों उपजायें प्रेम की बाली तिनका तिनका बिखेरें दाने&nbs

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प्यार एक कोना दिल का उपजते सभी बारी बारी माली बन करें रखवाली ज्यों उपजायें प्रेम की बाली तिनका तिनका बिखेरें दाने&nbs

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ओ वादियों जरा सुनो नालहरायीं हुयी अदा सुनो ना कहना यह नहीं था कि तुम्हें घमंड है सुनना यह था कि ज़रा सा हटो यहां तुम्हारा काम नहीं मौसमी बहारे बीत गयी&nbs

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काव्यांजलि

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सभी ने ऐब बतायें अजीब सेख़ुद कों जिन्होंने छुपाये रहे क़रीब से हर बार एक झूठ पर सौ बार बातें बनती गयींआईने जिन्होंने सादगी से थमाये रक़ीब से यह शहर शहद के लिए मशहूर था&nbs

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काव्यांजलि

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पल पल पल में अहसास हल पल बूझता है कहीं कहीं अनोखापन कहीं कहीं ख्वाब ढूंढ़ता है वही लाजवाब सा पल अपनापन खास लिए पलक

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काव्यांजलि

7 सितम्बर 2024
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नज़र जब से नज़रों से नज़रें मिली नज़ारों ने मौसम बदल लिया कभी जों छांव लगती थी &nbsp

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काव्यांजलि

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लगाव हर पलों पर लगाव है जहां पलों पर महक हैकुछ गमों की सूरते भी बस गमों से लगाव है ऐसा नहीं कि खुशियां &nb

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काव्यांजलि

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जब जब महके हुए अनजान से मेहताब हुये हर पल में मौसम भी खिलते हुये गुल

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काव्यांजलि

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दर्ज करा रखीं हैं शिकायतें सुननें का अब दौर ख़त्म अर्जियां बहुत दाखिल है ग़ौर करने का अब दौर ख़त्म &nbs

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काव्यांजलि

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सुनिये जऱा कहना बहुत है मुश्किल में अब रहना बहुत है ज़िक्र किया जो यादों का फ़िक्र में अब तुम्हे

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काव्यांजलि

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सूना सूना सा लगा एक कोना बेव़जह ही जहां नज़र जाती थी ना जाने क्या समझ बैठें हर बात को जिसकी हर बात पर नज़र जाती थी बहुत ख़ुश रहा करतीं थीं&nb

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सूना सूना सा लगा एक कोना बेव़जह ही जहां नज़र जाती थी ना जाने क्या समझ बैठें हर बात को जिसकी हर बात पर नज़र जाती थी बहुत ख़ुश रहा करतीं थीं&nb

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19 सितम्बर 2024
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जरा सा ज़ख्म सस्ते में नहीं मिलता यहां कुछ भी सस्ते में नहीं मिलता कई दफ़ा दफ़न हो चुकें हैं सभी बारी बारी हर एक को हर दफ़ा बख़्त नहीं मिलता सूने सूने से मकान ह

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19 सितम्बर 2024
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जरा सा ज़ख्म सस्ते में नहीं मिलता यहां कुछ भी सस्ते में नहीं मिलता कई दफ़ा दफ़न हो चुकें हैं सभी बारी बारी हर एक को हर दफ़ा बख़्त नहीं मिलता सूने सूने से मकान ह

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2 अक्टूबर 2024
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यूं ही नहीं शिकवा कीजिए कभी तो नज़र भी कीजिए गुरुर किसी भी बात का ना कीजिए&n

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काव्यांजलि

3 अक्टूबर 2024
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बार बार मैं सूचूं मैया की ज्योति जलाऊं जीवन की पगडंडियों पर निश्चित सफलता पाऊं ऐसे ही इक दिन भर मैया जयकारा लगाऊं ड्योढ़ी पर तेरी मैया&nb

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काव्यांजलि

3 अक्टूबर 2024
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राह पर चल पड़े हैं कुछ भूले कुछ बिसरें है आधी बात जीवन पर अब पूरी करने निकले

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काव्यांजलि

3 अक्टूबर 2024
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चिल्लाए हुए गुस्साये है पग पग पर राह दिखायें है ना जाने क्या क्या चुनते क्या सच में राह बनायें है

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काव्यांजलि

7 अक्टूबर 2024
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यूं ही नहीं बरसा पानी कहीं दूर से आंखों में कोई तो दर्द उमड़ा होगा वहीं से झूमकर बरसा पानी उड़ते एहसास से पूछा कि

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काव्यांजलि

7 अक्टूबर 2024
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देख कर नज़र फेर ली ऐसे ही नज़र फेर ली नज़रों ने नजरिये से कहा क्यों नज़र ने नज़र फेर ली&nb

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