सावन
हे री सखि बादर चिढावत है
थम थम कै कितनी बार कहुं
हर बार अनजाना सुर लिये
बिजुरिया संग रास रचावत हैं
झाकै नहिं इक पल ख़ुद कै
मनवा को गरियन से राग गावत हैं
दें हौ जी भर भर गारि गावहै हम जू
ख़ुद मा भागि भागि आगि बुझावत हैं
भाषा कहि रहि यहि कैसि बोलैं बोलि
बोलियां मा नित नित चिंगारी जलावत हैं
खोयि जायै खुशियां खोयि जायै चयनवा
रहि रहि कर ज्वाला देखि भडकावत हैं
जियै मा नहिं चैन तनिक दिखा बोलि सुन
अधिर की अधिर भयै गलियन मा आग लगावत हैं
झूम झूम सावन आयै कारी कोयलिया गावै
काहे नही कारे मेघ बदरा बरसावत हैं
जर बुझ हिये जायै जर बुझ सबहि जायै
जरायै जरायै सा फुहार नहीं पावत है
भीगै केवल तन बदरा मा भीगै भीगै
मन काहै नहीं बरसात मा भिगावत है
खूब बरसै मेघ रोज़ बरसै बरस बरस कर
झूम झूमकर बस खींस कढावत है
जिया जाये खीझ खीझ कहि भृकुटी भींच
हिया आये नयनों मा मीच मीच काहे कारे
कारे यही मेघ झूमकर सावनी गीत गावत हैं
यही पल पल में मौसम देखो सखि मन हरषावत है
रचनाकार ---- नीलम द्विवेदी " नील"
प्रयाग राज़, उत्तर प्रदेश, भारत।