विषय ---- अपनी आवाज
जन्म से लेकर मरण तक
चक्रव्यूह के चरण तक
छल छल छलते जाते
यह कपट द्वन्द अन्तर्मन तक
पीणा केवल एक दर्द नहीं
अपितु प्रत्येक पलों का साया है
रोमछिद्रों में बह जायें काया है
आवाज़ सुनी हर दर्दों की बात
कई आवाजें दबायी गयीं कब तक
दर्द सुना है मौन हुआ काल
अनजानी सी बेदी पर मुस्कान
सजायें अनगिनत द्रुपद्दी कब तक
ख़ामोश धरा ख़ुद से ना कुछ कहती तब तक
अफ़वाहें कुछ फैलाये नित्य सदैव
कितनी ही बालायें छली गयीं
प्रति चेतना भी स्वयं से छली गयीं
आवाज़ उठाओ ज़रा अर्थ बताओं
जों भी हों क़ातिल सामाजिक कुरीतियां का
सभी कुरीतियों की कुसंगतियो को
दूर भगाओ
नित नित दहेज़ के लोभी नित नया निर्माण करते
आवाज़ उठाओ हर कुरीतियों को
दूर भगाओ।
रचनाकार -------
नीलम द्विवेदी "नील"
प्रयाग राज़, उत्तर प्रदेश, भारत।