जरा सा ज़ख्म सस्ते में नहीं मिलता
यहां कुछ भी सस्ते में नहीं मिलता
कई दफ़ा दफ़न हो चुकें हैं सभी बारी बारी
हर एक को हर दफ़ा बख़्त नहीं मिलता
सूने सूने से मकान होते जा रहे हैं
ना जाने कहां सब खोंते जा रहें हैं
हर किसी को किसी ना किसी की तलाश है
लगता है वहीं सब खोते जा रहे हैं
अच्छा सुनो ऐसा क्या है जों सही है
एक सही से भी रिश्ता खोते जा रहे हैं
नीलम द्विवेदी "नील"