सुनिये जऱा कहना बहुत है
मुश्किल में अब रहना बहुत है
ज़िक्र किया जो यादों का
फ़िक्र में अब तुम्हें रहना बहुत है
यूं ही नहीं मिला करती तन्हाइयां
यादों में अश्क बहाना बहुत है
मंजिलों में पहुंचना आसान नहीं
अपने हर क़दमों पर जाना बहुत है
नीलम द्विवेदी "नील "