सुनहरे कल
कल कल की प्रति ध्वनि
कर्ण प्रिय सुशोभित करतीं
पल पल में बहता नीर
हर पल को गौरवान्वित करती
ज्यों लहरिया सी बनतीं
हवाओं से बातें बतियाती
नटखट सी दिखी चंचलता
कभी कभी गुम सुम रह जाती
यही अठखेलियां चारों प्रहार
अपनी ही ग़लती हर पल ढहराती
लिखने का ज्यों क़लम उढ़ायें
नज़र से अब वह ना जर कह जातीं
देखें हर क्षण अनेक विषयों को
लहरें संग लहर लहर संगीत
मन भावन गीतों में वह खो जाती
रचनाकार --- नीलम द्विवेदी " नील"
प्रयाग राज़, उत्तर प्रदेश, भारत।