चिल्लाए हुए गुस्साये है
पग पग पर राह दिखायें है
ना जाने क्या क्या चुनते
क्या सच में राह बनायें है
नित प्रति दिन घड़ियां बीतीं
कछु मनवा भनक लगायें है
काहे भ्रमित मानवता जग में
कौन-कौन सा भ्रमण कर आयें हैं
जीवन इक सुंदर कायम है
नैनों में सपना बरसायें है
सोंच में बैठ गयें नींदों में
स्वप्न ने देखों नींद उड़ाये है
चेहरों पर मुस्कान सजायें है
तुम ही सिखायें मत हारना
काहे को जिया भरमायें है
जीवन में जीतें यही कहने आयें हैं
नीलम द्विवेदी" नील"
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश।