सदस्य
हर घड़ी की टिक टिक पर
हर घड़ी पर किच किच कर
वह यूं ही अजीब सी बात उकेरती है
कभी गुम सुम कभी बेवजह बातें करतीं हैं
सूने सूने से मकान में रौशनी
सूने सूने से कानों में सनसनी
वह कौन सी घड़ी में एक टकी
कभी ख़ामोशी भरी कभी खिलखिला कर बात करती है
हर असम्भव में भी दिया सम्भव लिए
ख़ामोशियों में मुस्कुराहट पिरोये
वह अंधेरों में भी चिराग लिए हुये
बन्द दरवाजों पर करूणा की बात करती है
रचनाकार --- नीलम द्विवेदी" नील "
प्रयाग राज़, उत्तर प्रदेश, भारत।