भेदभाव
मानवीय गुणों से भरपूर
रूपीय गुणों से भरपूर
अमूल्य धरोहर सा संजोय
मन भावन काहे को होय
भेदभाव की यह जगत रीति
मनवा में गढै बढावैं प्रीति
बिटिया जनमै या बेटा जन्य
दोनो ही कोख से मां की प्रीति
बैरी मनवा कुंठित भया
करै परस्पर विरोधी नीति
मैया को औलाद है प्यारे
मत करो बेटी बेटा में भेदभाव नीति
मान बेटियां बहुत बढ़ाती
ज़रा सा भी दो दुलार बराबर
बेटे देखो बिगड़ैल निकलते
बेटियां बसावै उजाड़ घर द्वार पर प्रीति
रचनाकार ----- नीलम द्विवेदी "नील"
प्रयाग राज़, उत्तर प्रदेश, भारत।