जब ध्रुव का बिछड़ा दोस्त महेश उससे मिलने आता है तो उसे क्या मालूम था कि उसके साथ कुछ ऐसा घटेगा जिसकी कल्पना वह इस जन्म में तो क्या किसी जन्म में भी नहीं कर सकता था। वह अपने को एक ऐसे नये परिवेश में पाता है जहाँ उसे अपने ही घर के बारे में कुछ मालूम नहीं रहता है। आप मिलेंगे जनार्दन से जिसने जीवन का निचोड़ बोतल में खोज निकाला है, जुल्फ़ी से जो नौकर कम शायर ज्यादा है, पड़ोस की छम्मक छल्लो मल्लिका से... रुकिए रुकिए... यहाँ एक चोर भी है। और इन सब के बीच में है चंद्रा। “लोग गायब हो जाते हैं, गुम हो जाते हैं, पर यह पहली बार है कि आदमी चोरी हो गया है।“ हँसी ठहाकों से भरपूर नाटक जिसके पात्र पाठकों को बहुत दिनों तक गुदगुदाते रहेंगे। Read more