धरती को 1000 मीटर तक भेद सकती है अश्नि :
दो साल पहले बादल फटने से नहीं ‘अश्नि’ से हुई थी केदारनाथ में तबाही
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पौराणिक संहिताओं में भी इसका उल् लेख , लोगों ने हरे और नीली रंग की रोशनीवाले बिजली के बारे में बता कर चौंका दिया , सुरकंडा देवी मंदिर में पुराने विनाश के कई चिह्न पाए जाने का दावा
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दो साल पहले हुई केदारनाथ त्रासदी के लिए वैसे तो बादल फटने को जिम्मेदार माना जाता है। लेकिन दिल्ली के साइंटोलॉजिस्ट व पर्यावरणविद् प्रभु नारायण के मुताबिक इसके पीछे बादल का फटना नहीं, बल्कि अश्नि (अतिशक्तिशाली बिजली) का गिरना मुख्य वजह है। प्रभु नारायण ने अपने शोध पत्र में यह दावा किया है। पौराणिक संहिताओं में भी इसका उल्लेख है। इस शोध को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय के राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान के प्रोफेसर व जियो हेजार्ड विभाग प्रमुख डॉ. चंदन घोष ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को 10 अक्टूबर 2014 को एक पत्र भी लिखा था।
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जिसमें केदारनाथ त्रासदी के कारणों को नए दृष्टिकोण से अध्ययन करने की मांग की गई थी। पत्र में उन्होंने केदार घाटी प्रलय के मुख्य कारण को समझने के लिए प्रभु नारायण के दावे पर राष्ट्रीय परामर्श समिति बनाने की वकालत की थी। प्रधानमंत्री कार्यालय में इसपर अभी विचार-विमर्श जारी है। नारायण ने फोन पर भास्कर से बातचीत में बताया कि उन्होंने ने अश्नि पर अपना शोध पत्र केदारनाथ त्रासदी के करीब दो माह पहले ही सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग को सौंपा था। वे इस रहस्यमय बिजली की उत्पत्ति के लिए केदार घाटी को अनुकूल स्थल मानते हैं।
स्थानीय लाेगों को भी हुआ अहसास:
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नारायण ने अश्नि के अस्तित्व की तलाश के लिए स्थानीय रहवासियों से बातचीत की। उन्हें लोगों ने हरे और नीली रंग की रोशनीवाले बिजली के बारे में बता कर चौंका दिया। उन्होंने बद्रीनाथ धाम के पास माना स्थित वासुकीताल, पिथौरागढ़ के पर्यावरणविदों, स्थानीय पत्रकारों से बात की। सभी ने उन्हें बताया कि सफेद और पीले रंग की बिजली नुकसान नहीं करती लेकिन हरे नीले रंग की बिजली विनाशकारी होती है।
नारायण ने मसूरी के पास सुरकंडा देवी मंदिर में पुराने विनाश के कई चिह्न पाए जाने का दावा भी किया है। वे इनका भी गहन अध्ययन करना चाहते हैं। किन संहिताओं में मिलता है उल्लेख बृहस्पत्य संहिता, आचार्य वराहमिहिर, भृगु संहिता, तंदय ब्राह्मण, पराशर संहिता, जामिनी संहिता, देवी भागवत आदि में इसका उल्लेख मिलता है। इनमें से वराह मिहिर संहिता पांचवीं सदी पूर्व की है।
केदारनाथ त्रासदी के लिए अश्नि जिम्मेदार है। अगर बादलों के फटने से तबाही होती, तो प्रत्यक्षदर्शी तेज आवाज और धुआं निकलने की बात नहीं करते। न ही पानी में रसायन के गंध की बात कहते। पौराणिक संहिताओं में इसका वर्णन तो मिलता ही है, लेकिन केदार घाटी के कई रहवासियों ने इसे स्वीकारा भी है। इसे पोथियों से जोड़ना ठीक नहीं। ये विशुध्द वि ज्ञान है।
- प्रभु नारायण, पर्यावरणविद व साइंटोलॉजिस्ट
पहाड़ों पर बरसात में इस तरह की घटनाएं होती रहती हैं। हरे- नीले रंगी की बिजली दिखाई पड़ती है। गिरती है तो धरती में भी गड्ढे कर देती है। केदारनाथ में जो लोग बच गए थे उन पर भी इसका असर हुआ था। उनके कपड़े फट गए थे और चमड़ी पर काला रंग चढ़ गया था।
- अनुसया प्रसाद मलासी, स्थानीय पत्रकार
धरती को 1000 मीटर तक भेद सकती है अश्नि
अश्नि बिजली साधारण बिजली के मुकाबले कई गुना अधिक घातक होती है। अश्नि की ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह जमीन को 200 से 1000 मीटर तक भेद सकती है। हरी और नीली रोशनी के साथ ये बहुत तेज आवाज और गति से जमीन पर गिरती है। जलाशयों में या भूगर्भीय जल स्रोतों की ओर ये तेजी से खिंचती चली आती है। जलने के लिए जरूरी ऑक्सीजन की तलाश में ये जमीन और पानी की ओर आकर्षित होती है। भूगर्भीय जल की ओर आकर्षित होने पर यह धरती को चीरती हुई भूतल में घुस जाती है। इससे जमीन से पानी का फव्वारा, रसायन, गैस, मिट्टी और विशाल चट्टान और पत्थर आदि निकलते हैं।
कैसे पैदा होती है विनाशकारी बिजली
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ग्रेटर हिमालय की पवर्त श्रंखला विशेष तौर से उत्तर पूर्वी इलाका इसका उत्पत्ति क्षेत्र है। यहां उच्च सक्रिय विद्युत आवेशित कण पाए जाते हैं। इन कणों को संहिताओं में मारुत, पशु या रुद्र नाम से पुकारा गया है। इसलिए केदार घाटी के नीचे रुद्र खंड है जिसे रुद्र प्रयाग के नाम से जाना जाता है। खुले आसमान में ये कण एक दूसरे से मिल जाते हैं। ये उच्च सक्रिय विद्युत कण ही अश्नि है। नीले और हरे रंग की रोशनी वाले इन कणों की तरंगे इलाके में शक्तिशाली विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र पैदा करती हैं। ऑक्सीजन से मिलने के बाद ये जलते हुए तेज गति के साथ धरती पर गिरती हैं। ये या तो पानी में गिरती हैं या भूगर्भीय जल स्रोतों की तलाश करती हैं। जिससे धरती फट जाती है।