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कहीं अपने ही शब्दों में न संशोधन करो तुम ...

15 अक्टूबर 2016

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दबी है आत्मा उसका पुनः चेतन करो तुम

नियम जो व्यर्थ हैं उनका भी मूल्यांकन करो तुम


परेशानी में हैं जो जन सभी को साथ ले कर

व्यवस्था में सभी आमूल परिवर्तन करो तुम


तुम्हें जो प्रेम हैं करते उन्हें ठुकरा न देना

समय फिर आए ना ऐसा कीआवेदन करो तुम


अभी भी मान लो सच को बहुत आसान होगा

कहीं लक्षमण की रेखा का न उल्लंघन करो तुम


समझदारी से अपनी बात सबके बीच रखना

कहीं अपने ही शब्दों में न संशोधन करो तुम ...

दिगम्बर नासवा की अन्य किताबें

मनोज कुमार खँसली-" अन्वेष"

मनोज कुमार खँसली-" अन्वेष"

समझदारी से अपनी बात सबके बीच रखना, ....कहीं अपने ही शब्दों में न संशोधन करो तुम ,....बहुत खूब सर |

1 सितम्बर 2017

रेणु

रेणु

सुंदर भावों से भरी सार्थक रचना --

18 मई 2017

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रचनाएँ
swapnmere
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मगर तकसीम हिंदुस्तान होगा ...जहाँ बिकता हुआ ईमान होगाबगल में ही खड़ा इंसान होगाहमें मतलब है अपने आप से हीजो होगा गैर का नुक्सान होगादरिंदों की अगर सत्ता रहेगीशहर होगा मगर शमशान होगा<span style="
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वेश वाणी भेद तज कर हो तिरंगा सर्वदा ...

15 अगस्त 2016
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सभी देश वासियों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ...लक्ष्य पर दृष्टि अटल अंतस हठीला चाहिएशेष हो साहस सतत यह पथ लचीला चाहिएहों भला अवरोध चाहे राह में बाधाएं होंआत्मा एकाग्र चिंतन तन गठीला चाहिएमुक्त पंछी, मुक्त मन, हों मुक्त आशाएं सभीमुक्त हो धरती पवन आकाश नीला

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कहीं अपने ही शब्दों में न संशोधन करो तुम ...

15 अक्टूबर 2016
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दबी है आत्मा उसका पुनः चेतन करो तुम नियम जो व्यर्थ हैं उनका भी मूल्यांकनकरो तुम परेशानी में हैं जो जन सभी को साथ ले कर व्यवस्था में सभी आमूल परिवर्तन करो तुमतुम्हें जो प्रेम हैं करते उन्हें ठुकरान देना समय फिर आए ना ऐसा कीआवेदन करो तुम

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