इस गांव के निवासी वैदिक लाइफस्टाइल को जीते हैं, साथ ही संस्कृत ग्रंथों का पाठ करते हैं और इसी भाषा में बात करते हैं. इस गांव के लिए ये भाषा बेहद महत्वपूर्ण है. 1981 में ‘संस्कृत भारती’ नाम के संगठन ने इस प्राचीन भाषा को ज़िंदा रखने के लिए 10 दिन की संस्कृत वर्कशॉप गांव में आयोजित की थी. इस वर्कशॉप में गांव के लोगों के साथ-साछ उडूपी और आस-पास के गांवों के लोग भी शामिल हुए थे. यहां के निवासी दावा करते हैं, गांव का हर व्यक्ति और परिवार संस्कृत में ही बातचीत करता है.
600 साल पहले जब केरल के ब्राह्मण मत्तूर में आकर बसे, तो वे संस्कृत के साथ-साथ संकेथी में भी संवाद करते थे. संकेथी संस्कृत, तमिल, कन्नड़ और तेलगू का मिश्रण है. इस भाषा की कोई पांडुलिपी नहीं है, इसीलिए इसे देवनागरी में ही लिखा और पढ़ा जाता है.
मत्तूर गांव पूरी तरह से चौकोर बनाया गया है जिसकी तुलना Agraharm से की जा सकती है. यहां एक मंदिर और पाठशाला भी है. जहां वेदों को पारंपरिक रूप से पढ़ाया जाता है. छात्रों को बेहद बारीकी के साथ पांच सालों तक इस पाठ्यक्रम को पढ़ाया जाता है, ताकि छात्र बेहतर तरीके से अपनी परंपरा और भाषा को जान सकें. यहां के छात्र आम लोगों की सुविधा के लिए पाठशाला में ही ताड़ के पत्तों पर लिखित संस्कृत के दुलर्भ और नष्ट होते लेख ों को सुधारते हैं. कई छात्र विदेशों से आकर पाठशाला में संस्कृत भाषा सीखते हैं.
मत्तूर में रहने वाला हर व्यक्ति चाहे वो सब्जी विक्रेता हो या पुजारी, सभी संस्कृत समझते हैं. अधिकतर लोग इस भाषा को बेहद सरलता के साथ बोलते हैं. यहां आपको मोबाइल पर बात करते हुए, बाइक चलाते हुए या पैदल चलते हुए लोग संस्कृत में बात करते मिल जाएंगे. इतना ही नहीं, बच्चे क्रिकेट खलेते हुए भी इसी भाषा में बातचीत करते हैं. इस गांव के घरों की दीवारों पर संस्कृत में ‘मार्गे स्वच्छताय विराजते, ग्राम सूजनः विराजते’ कोट्स लिखे दिखाई देंगे. साथ ही कुछ घरों के दरवाज़ों पर लिखा दिखाई देगा कि ‘आप इस घर में संस्कृत में ही बात करें’.
मत्तूर के स्कूलों का अकादमिक रिकॉर्ड जिले में सबसे अव्वल है. अध्यापकों के अनुसार संस्कृत सीखने से छात्र की तर्कशक्ति, गणित और कौशल में वृद्धि होती है. मत्तूर के कई छात्र विदेश में इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं. आपको ये जानकर हैरानी होगी कि इस गांव के हर परिवार से एक बच्चा सॉफ्टवेयर इंजीनियर है. मत्तूर के 30 व्यक्ति संस्कृत के प्रोफेसर के तौर पर कुवेम्पु, बेंगलुरु, मैसूर और मंगलौर के विश्वविद्यालयों में पढ़ाते हैं.