क्या प्यार करना गुनाह है ? [ समाज की दोहरी मानसिकता और खोखले मापदंड ]
“क्यूँ ऐसा होता है जब दो परिंदे अपनी उड़ान एक साथ तय करने का फैसला करते हैं तो जमाना उनके पर कतरने पर आमादा हो जाता है ‘ ? क्यूँ ऐसा होता है जब दो जिस्म एक जान होना चाहतें हैं तो जमाना उनकी जान ही लेने पर उतारू हो जाता है ? क्यूँ ऐसा होता है कि दो प्यार करने वाले शख्स को समाज की अदालत में बिना किसी पैरवी के मुजरिम करार दे दिया जाता है ? मुझे तकलीफ इस बात से नहीं है कि क्या सही है और क्या गलत है, मुझे तकलीफ है समाज की दोहरी मानसिकता और खोखले मापदंडों से |
क्यूँ हर आम और खास के लिए सही और गलत की परिभाषा अलग अलग ? क्यूँ अमीर और गरीब के लिए समाज के मापदंड अलग अलग ? क्यूँ लड़का और लड़की के लिए समाज की सोच अलग अलग ?
जब आप फिल्मों में कोई प्रेम कहानी देखते हैं तो उसमें नायक और नायिका की जगह खुद को देखते हैं और उस कहानी का कोई किरदार होना चाहते हैं | उस प्रेम कहानी को आप पूरी पवित्रता और शिद्दत से स्वीकारते हैं, मगर वैसा प्रेम किसी को आपके घर में हो जाये तो आप समाज के खोखले मापदंडों की तर्ज़ पर खुद को धोका देते हैं और स्वीकार नहीं करते | कोई आम आदमी अगर छोटा सी गलती कर दे तो समाज उसे विक्षिप्त कर देता है मगर कोई सेलिब्रिटी कितना भी बड़ा गुनाह कर ले, आपका प्यार, उसकी लोकप्रियता और सम्मान उसके लिए कम नहीं होता | फिल्मों में चाहे कोई हिरोइन अश्लीलता की सारी हदें पार कर जाये आपका प्यार उसके लिए कम नहीं होता और आप उस पर जान छिडकते हैं, वहीँ अगर मोहल्ले में कोई लड़की स्लीवलेस कपडे पहनकर आ जाये तो उसे अच्छी नज़रों से नहीं देखा जाता |
अच्छा हमारे वृद्धों के पास भी प्रथाएँ [ प्रथाएँ क्या कहें कई तो कुप्रथाएँ है] और मान्यताएँ तो कई है मगर उन्हें सही सिद्द करने के लिए कोई ठोस तर्क नहीं है सिवाय इसके कि वो बड़े हैं और उन्हें जीवन का अनुभव आपसे ज्यादा है | गौर करने वाली बात ये है कि वो लोग उन कुप्रथाओं से लड़ने वाले महान लोगों को पूजते हैं [ उदहारण के लिए राजा राममोहन रॉय को ले लें ] मगर उन कुप्रथाओं को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है |
लेकिन मैं ये भी मानता हूँ कि कहीं ना कहीं बुजुर्ग और जवान पीढ़ी के बीच में जो जनरेशन गेप आया है उसके लिए युवा पीढ़ी ज्यादा जिम्मेदार हैं | कहीं ना कहीं हम अपने बुजुर्गों को राजी करने में नाकाम रहे हैं | हमने प्रेम की इतनी गन्दी तस्वीर उनके सामने रखी है कि उनका प्रेम ही पर से विश्वास उठ गया | जवान पीढ़ी ने प्रेम का मतलब ही बदल दिया और ये नहीं समझ पाई कि "प्रेम दर्शन का विषय है, प्रदर्शन का नहीं" |
पूरी जवान पीढ़ी प्रोप्रोज करने को प्यार समझती है, मगर मुहब्बत तुम कहकर बता ही नहीं सकते | "इश्क वो है जो तुम्हारी आँखों में हो और उनकी आँखें पढ़ ले" |
सवाल कई है मगर जवाब किसी का नहीं है और किसी के पास नहीं है !
Dinesh Gupta 'Din'
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