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दीया अंतिम आस का [ एक सिपाही की शहादत के अंतिम क्षण ]

28 जनवरी 2015

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दीया अंतिम आस का, प्याला अंतिम प्यास का वक्त नहीं अब, हास-परिहास-उपहास का कदम बढाकर मंजिल छू लूँ, हाथ उठाकर आसमाँ पहर अंतिम रात का, इंतज़ार प्रभात का बस एक बार उठ जाऊँ, उठकर संभल जाऊँ दोनों हाथ उठाकर, फिर एक बार तिरंगा लहराऊँ दुआ अंतिम रब से, कण अंतिम अहसास का कतरा अंतिम लहू का, क्षण अंतिम श्वास का बस एक बूँद लहू की भरदे मेरी शिराओं में लहरा दूँ तिरंगा मैं इन हवाओं में…….. फहरा दूँ विजय पताका चारों दिशाओ में महकती रहे मिट्टी वतन की, गूंजती रहे गूंज जीत की सदियों तक सारी फिजाओं में……….. सपना अंतिम आँखों में, ज़स्बा अंतिम साँसों में शब्द अंतिम होठों पर, कर्ज अंतिम रगों पर बूँद आखरी पानी की, इंतज़ार बरसात का पहर अंतिम रात का, इंतज़ार प्रभात का… अँधेरा गहरा, शोर मंद, साँसें चंद, हौंसला बुलंद, रगों में तूफान, ज़ज्बों में उफान, आँखों में ऊँचाई, सपनों में उड़ान दो कदम पर मंजिल, हर मोड़ पर कातिल दो साँसें उधार दे, कर लूँ मैं सब कुछ हासिल ज़ज्बा अंतिम सरफरोशी का, लम्हा अंतिम गर्मजोशी का सपना अंतिम आँखों में, ज़र्रा अंतिम साँसों में तपिश आखरी अगन की, इंतज़ार बरसात का पहर अंतिम रात का, इंतज़ार प्रभात का… फिर एक बार जनम लेकर इस धरा पर आऊँ सरफरोशी में फिर एक बार फ़ना हो जाऊँ गिरने लगूँ तो थाम लेना, टूटने लगूँ तो बाँध लेना मिट्टी वतन की भाल पर लगाऊँ मैं एक बार फिर तिरंगा लहराऊँ दुआ अंतिम रब से, कण अंतिम अहसास का कतरा अंतिम लहू का, क्षण अंतिम श्वास का ..!! दिनेश गुप्ता 'दिन' http://dineshguptadin.in/

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दुआ अंतिम रब से "मैं एक बार फिर तिरंगा लहराऊँ"

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कैसे चंद लफ़्ज़ों में सारा प्यार लिखूँ

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शब्द नए चुनकर गीत वही हर बार लिखूँ मैं उन दो आँखों में अपना सारा संसार लिखूँ मैं विरह की वेदना लिखूँ या मिलन की झंकार लिखूँ मैं कैसे चंद लफ़्ज़ों में सारा प्यार लिखूँ मैं…………… उसकी देह का श्रृंगार लिखूँ या अपनी हथेली का अंगार लिखूँ मैं साँसों का थमना लिखूँ या धड़कन की रफ़्तार लिखूँ मैं जिस्

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दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित इंटरव्यू "एक इंजीनियर का उसकी कविता के लिए जूनून"

1 फरवरी 2015
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http://www.jagran.com/sahitya/interview-an-engineers-passion-for-his-poetry-12000532.html

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मेरी आँखों में मुहब्बत के मंज़र है

20 फरवरी 2015
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मेरी आँखों में मुहब्बत के जो मंज़र है तुम्हारी ही चाहतों के समंदर है में हर रोज चाहता हूँ कि तुझसे ये कह दूँ मगर लबो तक नहीं आता, जो मेरे दिल के अन्दर है मेरे दिल में तस्वीर हे तेरी, निगाहों में तेरा ही चेहरा है, नशा आँखों में मुहब्बत का, वफ़ा का रंग ये कितना सुनहरा है, दिल की कश्ती कैसे न

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क्या प्यार करना गुनाह है ? [ समाज की दोहरी मानसिकता और खोखले मापदंड ]

28 मई 2016
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क्या प्यार करना गुनाह है ? [ समाज की दोहरी मानसिकता और खोखले मापदंड ] “क्यूँ ऐसा होता है जब दो परिंदे अपनी उड़ान एक साथ तय करने का फैसला करते हैं तो जमाना उनके पर कतरने पर आमादा हो जाता है ‘ ? क्यूँ ऐसा होता है जब दो जिस्म एक जान होना चाहतें हैं तो जमाना उनकी जान ही लेने पर उतारू हो जाता है ? क्यूँ ऐ

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