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मेरी आँखों में मुहब्बत के मंज़र है

20 फरवरी 2015

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मेरी आँखों में मुहब्बत के जो मंज़र है तुम्हारी ही चाहतों के समंदर है में हर रोज चाहता हूँ कि तुझसे ये कह दूँ मगर लबो तक नहीं आता, जो मेरे दिल के अन्दर है मेरे दिल में तस्वीर हे तेरी, निगाहों में तेरा ही चेहरा है, नशा आँखों में मुहब्बत का, वफ़ा का रंग ये कितना सुनहरा है, दिल की कश्ती कैसे निकले अब चाहत के भंवर से समंदर इतना गहरा है, किनारों पर भी पहरा है वो हर रोज मुझसे मिलती है, मैं हर बार नहीं कह पाता जो दिल में इतना प्यार भरा है, लबो पर क्यों नहीं आता हम भी कभी नहीं करते थे प्यार-मुहब्बत के किस्सों पर यकीं, मगर जब दिल को छू जाये कोई एक बार, फिर कोई और नहीं भाता मेरी उम्मीद का सागर कुछ यू छुटा है की जेसे हर जर्रे-जर्रे ने हमको लुटा है कश्तियाँ सारी डूब गयी साहिलो तक आते आते होसला जो बचा था तुफानो में, किनारों पर आकर टुटा है मेरी आँखों में अब भी मुहब्बत की वो ही कहानी हे दिल के सागर में लहरें उम्मीद की, धडकनों में चाहत की रवानी हे में हर पल तुझे भूलना चाहता हूँ, मगर मालूम है मुझको तुम्हारी याद तो हर साँस में आनी हे, तुम्हारी याद तो हर साँस में आनी हे

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कैसे चंद लफ़्ज़ों में सारा प्यार लिखूँ

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शब्द नए चुनकर गीत वही हर बार लिखूँ मैं उन दो आँखों में अपना सारा संसार लिखूँ मैं विरह की वेदना लिखूँ या मिलन की झंकार लिखूँ मैं कैसे चंद लफ़्ज़ों में सारा प्यार लिखूँ मैं…………… उसकी देह का श्रृंगार लिखूँ या अपनी हथेली का अंगार लिखूँ मैं साँसों का थमना लिखूँ या धड़कन की रफ़्तार लिखूँ मैं जिस्

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दीया अंतिम आस का [ एक सिपाही की शहादत के अंतिम क्षण ]

28 जनवरी 2015
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दीया अंतिम आस का, प्याला अंतिम प्यास का वक्त नहीं अब, हास-परिहास-उपहास का कदम बढाकर मंजिल छू लूँ, हाथ उठाकर आसमाँ पहर अंतिम रात का, इंतज़ार प्रभात का बस एक बार उठ जाऊँ, उठकर संभल जाऊँ दोनों हाथ उठाकर, फिर एक बार तिरंगा लहराऊँ दुआ अंतिम रब से, कण अंतिम अहसास का कतरा अंतिम लहू का, क्षण अंतिम

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दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित इंटरव्यू "एक इंजीनियर का उसकी कविता के लिए जूनून"

1 फरवरी 2015
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http://www.jagran.com/sahitya/interview-an-engineers-passion-for-his-poetry-12000532.html

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मेरी आँखों में मुहब्बत के मंज़र है

20 फरवरी 2015
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मेरी आँखों में मुहब्बत के जो मंज़र है तुम्हारी ही चाहतों के समंदर है में हर रोज चाहता हूँ कि तुझसे ये कह दूँ मगर लबो तक नहीं आता, जो मेरे दिल के अन्दर है मेरे दिल में तस्वीर हे तेरी, निगाहों में तेरा ही चेहरा है, नशा आँखों में मुहब्बत का, वफ़ा का रंग ये कितना सुनहरा है, दिल की कश्ती कैसे न

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क्या प्यार करना गुनाह है ? [ समाज की दोहरी मानसिकता और खोखले मापदंड ]

28 मई 2016
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क्या प्यार करना गुनाह है ? [ समाज की दोहरी मानसिकता और खोखले मापदंड ] “क्यूँ ऐसा होता है जब दो परिंदे अपनी उड़ान एक साथ तय करने का फैसला करते हैं तो जमाना उनके पर कतरने पर आमादा हो जाता है ‘ ? क्यूँ ऐसा होता है जब दो जिस्म एक जान होना चाहतें हैं तो जमाना उनकी जान ही लेने पर उतारू हो जाता है ? क्यूँ ऐ

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