लालन, वारी या मुख ऊपर ।
माई मोरहि दौठि न लागै, तातैं मसि-बिंदा दियौ भ्रू पर ॥
सरबस मैं पहिलै ही वार्यौ, नान्हीं नान्हीं दँतुली दू पर ।
अब कहा करौं निछावरि, सूरज सोचति अपनैं लालन जू पर ॥
भावार्थ :-- सूरदास जी कहते हैं कि (माता यशोदा आनन्दमग्न कह रही हैं) `मैं अपने लाल जी पर न्यौछावर हूँ । सखी कहीं मेरी ही नजर इसे न लग जाय, इससे काजल की बिन्दी इसकी भौंह पर मैंने लगा दी है । इसकी दोनों दँतुलियों पर तो मैंने अपना सर्वस्व पहिले ही न्यौछावर कर दिया । अब सोचती हूँ कि अपने लाल जी पर और क्या न्योछावर करूँ ।'