बाल बिनोद खरो जिय भावत ।
मुख प्रतिबिंब पकरिबे कारन हुलसि घुटुरुवनि धावत ॥
अखिल ब्रह्मंड-खंड की महिमा, सिसुता माहिं दुरावत ।
सब्द जोरि बोल्यौ चाहत हैं, प्रगट बचन नहिं आवत ॥
कमल-नैन माखन माँगत हैं करि करि सैन बतावत ।
सूरदास स्वामी सुख-सागर, जसुमति-प्रीति बढ़ावत ॥