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अल्फाज़-ए-सफर

7 अगस्त 2022

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*दोस्तों इस संकलन में 50 शायरियां हैं मुझे उम्मीद हैं आपको पसंद आएंगी और आपके द्वारा सराही जाएंगी*....कृपया मेरे कोट्स और कहानियों को पढ़ने के लिए मेरे ब्लॉग को भी एकबार जरूर पढ़े

http://www.arymoulik.in 
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🌺आर्यमौलिक कोट्स 🌺

दर्द सीने से कोई तुम्हारा भी तों लगता होगा..!

तुम से मिलने को ख्वाबों में कोई तों आता होगा..!!

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गर ज़िन्दगी इंसा को समझ आ गई तों अकेले में भी मेला हैं..!

और ना समझ आए तों मेले में भी अकेला हैं..!!

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अब इन गुनाहों के शिकवे भी करूं तों मैं किससे करू...!!

कोई हो तों ऐसा जिससे मैं कुछ ना कुछ शिकायतें तों करूं...!!!

आए थे लोग के दे गये हैं ना कटने का ये दर्द ए ज़माना...!!

किसी की चाहतों का भी बहाना करूं तों किससे करूं..!!!

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कोई साथ हो या ना हो तों भी अब गम नहीं..!

अब तों यही सोचते हैं 

दुनिया में ख़ुद से बढ़कर कोई हमदम नहीं..!!

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मेरे घर से उठता हुआ धुआं तों देखते हैं बहुत से लोग..!!

क्या हाल हैं उनके घर का वो नहीं  देखते हैं लोग ...!!!

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वो मिरि दिललगी से थोड़े ही मुझसे दिल लगाएंगे...!!

वो जिससे भी दिल लगाएंगे उसके लिए मर जाएंगे...!!!

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अब तों सिर्फ हलचल भर रही दीवानों की...!!

अब कौन खबर रखता हैं यहां विरानों की...!!!

टूट गई ईमारतें भी दिल ए अरमानों की..!! 

रह गए यादें मजबूत मकबरे निशानियों की..!!!

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देखिए ये ज़माना भी कितना रंग बदलने लगा

हर इंसा ए मन ए औज़ार संग संग रखने लगा..!!!

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इतने सारे लोगों के होते हुए भी जब खामोशियाँ की विरानगी होती हैं

 ऐसे लोगों देख कर मुझे भी हैरानी होती हैं....!!!

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ये महफ़िले भी गुफ़्तगू की अब फिजूल हैं

चंद बिखरे हुए अलफ़ाज़ों की रह गई धूल हैं

ढूढ़ती हैं जो ये निगाहें भी अपनों के से चेहरे

खो गई खुशबुए भी जो इस अब चमन की 

अब फूल भी तों ना रहा चमन में फूल हैं

गलफ्त ए गुफ़्तगू भी जो अब करना फिजूल हैं..!!

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इस इश्क़ में ना तू इतना गुनाह लिख..!!

गर हो जफा दर्द की तों दवा लिख..!!!

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जज़्ज़बातों के अल्फाज़ गम ए एहसास बताते हैं .. !!

दर्द में सिमटा हैं हर शख्स ये हालात ए अल्फाज़ बताते हैं ...!!!

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महकी महकी सी हुई तिरि गुलाब सी सूरत..!!

वो बस गया मिरी आँखों में ख़्वाब की सूरत..!!!

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दर्द ए हूक सी उठती रही जो तिरि वेबफाई में..! 

मिरा दर्द जो महके हैं तिरि वफाई ए तन्हाई में..!!

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तसव्वुर में क्या है दिखायें किसको

खामोश लब और बेपनाह बेचैनियां

यहां हर शख्स परेशा है बतायें किसको..!!!

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बिंदास मुस्कुराइये ज़नाब क्या ग़म है...!

यहां ज़िन्दगी में टेंशन किसको कम है..!!

अच्छा हो या बुरा ये तो केवल भ्रम है...!

ज़िन्दगी का नाम ही कभी ख़ुशी तो कभी गम है..!!

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न कोई शिकवा हैं

न कोई शिकायत हैं

और ना ही कोई गम हैं

फिर भी न जाने क्यूं

ये मिरि आंखे नम हैं..

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अकेले तुम ही नहीं हो

यादों से जूझने वाले..!

हम भी हैं तुम्हारी तरह

तन्हाइयों से जूझने वाले..!!

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ये तिरे दिल का मिरे दिल का ये रिस्ता भी कितना अजीब हैं..!

दूरियां लाख हो फिर भी तिरा दिल मिरा दिल एक दूजे के कितना करीब हैं..!!

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ये धड़कने भी सिर्फ तुम्हारी ही

चाहत किया करती हैं..!!

निगाहें भी हैं गुमसुम सी

जो इंतज़ार सिर्फ तुम्हारा ही किया करती हैं..!!

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एक महक जो गुम हुई थी

आज फिर लौटी हैं मिरि फिज़ाओ में..!

तुम यूं ही महकती रहना

मिरि ज़िन्दगी की आस की अशाओं में..!!

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आज भी वो भूले हुए हमें 

अक्सर याद आ जाया करते हैं..!

क्योंकि हम उन्हें तहे दिल से

अपनी यादों में बसया करते हैं..!!

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तूफा-ए-किनारा देखने वालें

अक्सर नसीहते ही दिया करते हैं..!

जो तैरे हैं तूफा के समंदर में

वो ख़ामोशी से जिया करते हैं....!!

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वो रेहमत हैं खुदा की जो हर दिन नया नसीब हैं होता...!

हैं कदमों में तिरि मंज़िल फिर भी किस्मत को तू क्यूं हैं रोता..!!

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ये जिस्म, लिवास

और ज़िन्दगी जीने का

सलीका तुम्हारा हैं..!

देखने वालों की नज़रों

के नज़रिये पर बस

नहीं तुम्हारा हैं...!!

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तुम पल भर की जफ़ा के लिए भी नहीं हो कायम..!

तो हम ज़िन्दगी भर की वफ़ा भी क्यों तुम से करें..!!

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ना तू उम्मीद हैं और ना हैं तू हकीकत

फिर भी तिरे आने का रोग ए इंतजार हैं...!!

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अब ज़िक्र कहां होता हैं आदमी की शराफत का

जो सारा कुसूर तो इन आंखों का हैं...!!

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इंसा भी कितने अदब ए रंग बदलता हैं..!

फिर भी संग इंसा ही इंसा के चलता हैं..!!

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यादों में उसकी इतना खो जाता हूं

के मैं बस तन्हा तन्हा हो  जाता हूं

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इन खुली खुली फ़िज़ाओ में वो जो तिरि खुशबू आती हैं..!

गर करूं दिल ए गहराईयों से महसूस तो नज़र तू आती हैं..!!

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हर आदमी, आदमी में तलासता हैं यहां बड़ा आदमी..!

मिल गया तो भला और ना मिला तो बुरा हैं आदमी..!!

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इस आशिकी ए मोहब्बत में दिल का खेल हैं...!!

आदमी खुद खेलता हैं अपने दिल का खेल हैं...!!!

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चेहरा दिखा देता हैं जो तिरि ज़िन्दगी का रुतवा

कदमों की चाल से तिरि हम मंज़िलें पहचान लेते हैं...ll

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तिरि याद की भी ये कैसी तासीर हैं

तिरि याद ए बगैर सब भुलाये बैठा हूं...!!

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दिल में हैं हसरतें और आरजू ए गुफ़्तगू में हैं..!

रब ही जाने के ये लोग भी किस जूनून में हैं...!!

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कई विरानो को मैं आवाद करता रहा

फिर भी ज़िन्दगी मिरि उजड़ी ही रही...!!

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हमें हर वफ़ा में जिल्लत-ए-जफ़ा ही तो मिली हैं

कर के देखी हर वफ़ा सजा ही सजा तो मिली हैं

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किस कदर बस के आंखों में दिल में बस कर चलें गए...!

खुशनुमा ज़िन्दगी के ख्वाब इश्क़ में जगा कर चलें गए...!!

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माना की हर तस्वीर में रूह नहीं होती...!

बस रूहानियत सच्ची दिललगी में हैं होती..!!

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कागज़ पे जो हर दम शेर-ए-ख्वाहिशे लिखते हैं...!

ना मुफलिशी और ना इश्क़-ए-गुजारिशे लिखते हैं..!!

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वो लोग कभी भी बेहतर हुनर मंद नहीं हों सकते हैं...!

जो मतलब से जुड़ कर हुनर सीखने की चाह रखते हैं..!!

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इन मतलबीयों के शहर में भी किस किस का भला करूं..!

के ज़माने का भला करूं के अपना खुद का भला करूं..!!

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उफ्फ और कितनी धीरे धीरे से ढलती हैं ये रात

हौले हौले रात भर कानों में घुलती हैं तिरि बात

रफ्ता रफ्ता और कितनी गहराएगी ये रोज रोज की ये रात

चुपके चुपके धीरे धीरे तन्हाईयों में बदलती हैं रात

बेबसी बस यहीं हैं दिल ही दिल में रह गई बात 

पराई सी तेरी ही तरह फरेबी सी लगें हैं ये रात 

उफ्फ और कितनी.....

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आज फिर जुबां-ए-अलफ़ाज मिरे आईने से टकरा गए..!

नज़र आईने में  मिलते ही हम ही सें हम कतरा गए..!!

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वो निगाहे जो हैं कुछ न कुछ बोलती हैं

वो लफ़्ज़ जुबां से लबो को टटोलती हैं..!!

हैं मुस्कुराहट चेहरे पर इक शिकायत सी

खामोशियां उसकी रंग-ए-फ़िज़ा घोलती हैं..!!

वो ना कहें जुबां से जो लफ़्ज़ ओ लफ़्ज़

उसकी सांसों की धड़कने भी  बोलती हैं..!!

ना वो कुछ कहें हैं ना कुछ कहें हैं हम भी 

बात करने को जुबां मिरि भी बहाने टटोलती हैं...!!

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कुछ अजीब ही इश्क़ वाले होते हैं..!

जो सजा-ए-तन्हाईयों वाले होते हैं..!!

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ज़ख्म इतने हैं के दर्द भी कम नहीं..!

जुनू आज भी हैं जख्मों का गम नहीं...!!

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जो देख रहा हूं वो कहीं ख्वाब ना हों..!

और जो सुन रहा हूं वो कहीं धोखा ना हों..!!

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ये दुनियां, समाज, घर और दफ्तर एक मशीन हैं

और हम सब इस विशाल मशीन के कलपुर्जे हैं...!!

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क्रमशः -

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