फर्रुखाबाद की घटना :
एक दिन वह उद्दण्ड [एक प्रसिद्ध महाबली गुण्डा] व्यक्ति समय ताक कर स्वामी-स्थान [महर्षि दयानन्द के निवास-स्थान] में प्रविष्ट हुआ ।
स्वामी जी ने भी देखा कि सामने से एक हट्टा-कट्टा बलवान् व्यक्ति एक मोटा लट्ठ उठाये झूमता हुआ सीधा चला आता है ।
समीप आके उस उद्दण्ड मनुष्य ने कहा कि - बाबा ! क्या तुम मूर्ति को ईश्वर नहीं मानते हो ?
स्वामी जी ने गम्भीरता से उत्तर दिया कि - भद्र ! तुम जानते हो कि ईश्वर का स्वरूप क्या है ?
वह बोला कि - हां, मैं जानता हूं ।
स्वामी जी ने कहा कि - फिर बताइये तो ।
वह बोला कि - ईश्वर सच्चिदानन्द है, सर्वशक्तिमान् है, भक्त-वत्सल दयालु देव है और सर्वत्र परिपूर्ण है ।
तब स्वामी जी ने किंचित् हंसकर कहा कि - ईश्वर के जो गुण तुमने कथन किये हैं वे सब सत्य हैं । तुम्हारी इस समझ की मैं प्रशंसा करता हूं । परन्तु अब तुम ही इन वर्णित ईश्वरीय गुणों को मन्दिर की मूर्तियों के गुणों के साथ मिलाओ । यदि वे मिल गए तो मैं तुम्हारा साथी बन जाऊंगा, और यदि न मिले तो तुम्हें भी वही मानना चाहिए जिसकी साक्षी तुम्हारा आत्मा देता है ।
समझाने के इस ढंग से उसका चित्त पिघल गया और वह लट्ठ को फेंक कर श्रीचरण-शरण में गिर पड़ा । उस दिन से उसकी काया पलट गई । वह सारे बुरे कर्मों को त्याग कर धीरे-धीरे साधु-स्वभाव और सदाचारी बन गया ।