मन का सुकून
शहर की बहुत बडी दुकान थी जिसके ब्रेड पकौड़े और समोसे बडे मशहूर थे ...मैं पहले भी सुन चुका था मगर कल जब एक खास दोस्त ने कहा-भाई मोहन ..क्या स्वादिष्ट थे समोसे ... और इतने बढिया मुलायम ब्रेड पकौड़े ... वाह मजा ही आ गया ..... सो आज मैंने भी वहां जाकर उन लजीज समोसों और ब्रेड पकौडों का मजा लेने की सोची..
आफिस से निकला तो 7 बज चुके थे सोचा आज उसी दुकान पर पहले कुछ खाया जाए फिर घर जाऊंगा
मगर जैसे ही दुकान के बाहर गाडी खडी करके अंदर जाने को हुआ तो एक नन्हे से हाथों के स्पर्श ने मेरा ध्यान खींचा देखा तो एक छोटी सी बच्ची 5 से 6 साल के बीच की ने मुझे रोककर कहा-अंकल ...
*क्या आप भी यहां समोसा और पकौड़ा खाने आए हैं ... मैंने कहा-हां.... मगर तुम ऐसा क्यों पूछ रही हो ..
*क्या यहां अच्छे नहीं मिलते ....?
*वो बडी मासूमियत से बोली-मिलते हैं ना बहुत अच्छे मिलते हैं पर आप मत जाओ उन्हें खाने...*
*मैं उसकी बातें सुनकर कुछ हैरान हुआ फिर मैंने उससे इसकी वजह पूछी तो वो बोली-अंकल ... ये दुकान वाले भैया ना--- मुझे और मेरे छोटे भाई को हर रात बचे हुए समोसा पकौड़ा दे देते हैं उससे हमारा पूरे दिन का खाली पेट भर जाता है आज भी बहुत कम पकौडे बचे हैं .... कल तो सब खत्म हो गए थे इसीलिए हमें मिले ही नहीं ...मैं तो भूखे रह लेती हूं मगर मेरा छोटू ... वो रोता है .. कहकर रो पडी ....*
मैने उसे चुप कराया और कहा.... पर मैं तो जरूर समोसे और पकौड़े लूंगा... और अंदर जाने लगा... ये देखकर वो कुछ परेशान हों गई
कुछ देर में जब मैं बाहर आया तो दुकानदार भी मेरे साथ था मैने वहां से जो समोसे और पकौड़े लिए थे वो उन दोनों बहन भाई को पकडा दिए और कहा- अबसे तुम्हें रात का इंतजार करने की जरुरत नहीं मैंने आपके इस दुकान वाले भैया से बात कर ली है अबसे ये तुम्हें समय पर रोज तुम्हारे समोसे और पकोड़े दे दिया करेंगे .
कहकर मैं भीगी आँखें लिए बाहर आ गया --- दोस्तों मैंने वो ब्रेड पकौड़े और समोसे तो नहीं खाए मगर उनका स्वाद सचमुच मेरे मन में था
कयोंकि मैंने दुकानदार से हर महीने कुछ रुपये देने का वादा किया था जिसके बदले वो बिना कुछ बताए उन दोनों बहन भाई को रोज उनके मनपसंद स्वादिष्ट समोसे और पकौड़े दे दिया करेगा..
दोस्तों.... मेरे पिताजी कहते हैं कुछ काम ऐसे होने चाहिए जिसे करने से आपको और आपके मन को सुकून मिले----*