औरत होने की कैसी सजा रे ?
धुँधला धुँधला है सारा जहां रे ,
औरत होने की कैसी सजा रे ?
दिल के सब अरमां धूं -धूं कर जलते ,
घूँघट के भीतर कितना धुँआ रे !
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कैसी ले किस्मत दुनिया में आती ,
खिलने से पहले ही ये है मुरझाती ,
ये तो हंसकर है सब कुछ सह जाती ,
अपने आंसू भी खुद ही पी जाती ,
इसको लगी किसकी