19 जून 2015
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हमारे हाथ में है जो कलम वो सच ही लिखेगी , कलम के कातिलों से इस तरह करी बगावत है !D
मज़हब, दौलत, ज़ात, घराना, सरहद, ग़ैरत, खुद्दारी, एक मुहब्बत की चादर को, कितने चूहे कुतर गए… सुंदर रचना ... प्रशंसनीय
20 जून 2015
शिखा जी, अति सुन्दर रचना ! बहुत बहुत बधाई !
20 जून 2015
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है- बहुत बहुत बधाई किंतु एक दूसरा पक्ष यह भी है कि कुछ ग्रुप जो भगवा को अपना कारोबार बनाए बैठे हैं समाज को बांटकर मानवता को इसी नाम का उपयोग करके मानवता को कलंकित कर रहे हैं
20 जून 2015
sanatan dharm pataka faharti rahe .sundar abhivyakti .badhai
19 जून 2015