ऐसी सुहागन से विधवा ही भली .'' -लघु- कथा
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पति के शव के पास बैठी ,मैली धोती के पल्लू से मुंह ढककर ,छाती पीटती ,गला फाड़कर चिल्लाती सुमन को बस्ती की अन्य महिलाएं ढाढस बंधा रही थी पल्लू के भीतर सुमन की आँखों से एक भी आंसू नहीं बह रहा था और उसका दिल कह रहा था -''अच्छा हुआ हरामजादा ट्रक के नीचे कुचलकर मारा गया . मैं मर मर कर घर घर काम करके कमाकर लाती और ये सूअर की औलाद शराब में उड़ा देता .मैं रोकती तो लातों -घूसों से इतनी कुटाई करता कि हड्डी- हड्डी टीसने लगती . जब चाहता बदन नोचने लग जाता और अब तो जवान होती बेटी पर भी ख़राब नज़र रखने लगा था .कुत्ता कहीं का ....ठीक टाइम से निपट गया .ऐसी सुहागन से तो मैं विधवा ही भली .'' सुमन मन में ये सब सोच ही रही थी कि आस पास के मर्द उसके पति की अर्थी उठाने लगे तो सुमन बेसुध होकर बड़बड़ाने लगी - '' हाय ...इब मैं किसके लिए सजूँ सवरूंगी ......हाय मुझे भी ले चलो ..मैं भी इनकी चिता पर जल मरूंगी ....'' ये कहते कहते वो उठने लगी तो इकठ्ठी हुई महिलाओं ने उसे कस कर पकड़ लिया .उसने चूड़ी पहनी कलाई ज़मीन पर दे मारी
सारी चूड़ियाँ चकनाचूर हो गयी और सुमन दिल ही दिल में सुकून की साँस लेते हुए बोली -'' तावली ले जाकर फूंक दो इसे ...और बर्दाश्त नहीं कर सकती मैं .''
शिखा कौशिक 'नूतन'