29 जनवरी 2015
12 फ़ॉलोअर्स
हमारे हाथ में है जो कलम वो सच ही लिखेगी , कलम के कातिलों से इस तरह करी बगावत है !D
बहुत बढ़िया
7 मई 2017
वाह वाह क्या बात है
2 अक्टूबर 2015
अतिउत्तम रचना....अपने को पूर्णरूपेण समाहित किये हुए
2 अक्टूबर 2015
दिल छु लेने वाली बात कहदी आपने मैडमजी
21 अगस्त 2015
सुन्दर रचना शिखा जी... धन्यवाद
8 जुलाई 2015
अत्यंत उत्प्रेरक कथा शिखा जी
3 जुलाई 2015
भावुक व अच्छी उत्प्रेरक कहानी शिखा जी, गलती इन्शान कभी कभी मज़बूरी में भी कर देता है जो उसकी नियति में नहीं होती, फिर वाह पश्च्य्ताप की एजी में तब तक जलाते रहता है जब तक उसको क्षमा न मिल जाय, बहुत बढ़िया महोदया, बधाई..... मेरी एक कविता यहाँ रखना चाहूँगा...... “ बेटियाँ “ हर घरों की जान सी होती हैं बेटियाँ कुल की कूलिनता पर सोती हैं बेटियाँ माँ की कोंख पावन करती हैं बेटियाँ आँगन में मुस्कान सी होती हैं बेटियाँ || अपनी गली सिसककर रोती हैं बेटियाँ सौदा नहीं! बाजार में बिकती हैं बेटियाँ तानों की बौछार भी सहती हैं बेटियाँ खुद कलेजा थामकर चलती हैं बेटियाँ || बाप की औलाद ही होती हैं बेटियाँ गर्भ में इन्शान को ढोती है बेटियाँ कलाई थाम भाई की रोती हैं बेटियाँ हवस तेरा शिकार बन जाती हैं बेटियाँ || इज्जत के पहरेदार! लुट जाती है बेटियाँ नंगे बदन अखबार छप जाती है बेटियाँ पता बता, किस घर नहीं होती हैं बेटियाँ अभागों के दरबार मर जाती हैं बेटियाँ || माँ-बहन बन संसार भी रचती हैं बेटियाँ सुहागन का श्रृंगार भी करती हैं बेटियाँ सिंदूर की ज्वाला में जलती हैं बेटियाँ धिक्कार है! बेकफन भी टंगती हैं बेटियाँ || महातम मिश्र
30 जून 2015
शिखा जी,बहुत ही अच्छी रचना प्रस्तुत की है आपने..., धन्यवाद.
25 मई 2015