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कन्या-दान -कहानी

29 जनवरी 2015

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PUBLISHED IN ' NATIONAL DUNIYA '' NEWS PAPER ON 23 NOVEMBER 2014 ''नीहारिका का कन्यादान मैं और सीमा नहीं बल्कि तुम और सविता करोगे क्योंकि तुम दोनों को ही नैतिक रूप से ये अधिकार है .'' सागर के ये कहते ही समर ने उसकी ओर आश्चर्य से देखा और हड़बड़ाते हुए बोला -'' ये आप क्या कह रहे हैं भाईसाहब !...नीहारिका आपकी बिटिया है .उसके कन्यादान का पुण्य आपको ही मिलना चाहिए .हम दोनों ये पुण्य आप दोनों से नहीं छीन सकते .'' सागर कुर्सी से उठते हुए सामने बैठे समर को एकटक दृष्टि से देखते हुए हाथ जोड़कर बोला -'' समर तुम मेरी बहन के पति होने के कारण हमारे माननीय हो .तुमसे मैं हाथ जोड़कर प्रार्थना करता हूँ कि नीहारिका का कन्यादान तुम दोनों ही करना .मैं नीहारिका को भी अँधेरे में नहीं रखना चाहता .....सीमा...कहाँ है नीहारिका ? उसे यही बुलाओ !'' सागर के ये कहते ही सीमा ने नीहारिका को आवाज़ लगाई .नीहारिका के ''आई माँ '' प्रतिउत्तर को सुनकर सविता ,समर ,सीमा व् सागर उसके आने का इंतज़ार करने लगे .नीहारिका के स्वागत कक्ष में प्रवेश करते ही चारों एक-दूसरे के चेहरे ताकने लगे . नीहारिका ने सब को चुप देखकर मुस्कुराते हुए कहा -अरे भई इस कमरे में तो कर्फ्यू लगा है और मुझे बताया भी नहीं गया .'' नीहारिका के ये कहते ही सबके चेहरे पर फैली गंभीरता थोड़ी कम हुई और सब मुस्कुरा दिए .सविता ने अपनी कुर्सी से खड़े होते हुए नीहारिका का हाथ पकड़कर उसे अपनी कुर्सी पर बैठाते हुए कहा -''लाडो रानी..अब यहाँ बैठो और और सुनो भाई जी तुमसे कुछ कहना चाहते हैं .'' सविता के ये कहते ही नीहारिका भी एकदम गंभीर हो गयी क्योंकि उसने अपने पिता जी को ऐसा गंभीर इससे पहले दो बार ही देखा था .एक बार जब बड़ी दीदी प्रिया की विदाई हुई थी और दूसरी बार तब जब मझली दीदी सारिका की विदाई हुई थी .दोनों बार पिता जी विदाई के समय बहुत गंभीर हो गए थे पर रोये नहीं थे जबकि माँ व् बुआ जी का रो-रो कर बुरा हाल हो गया था .''नीहारिका बेटा '' पिता जी के ये कहते ही नीहारिका के मुंह से अनायास ही निकल गया -'' जी पिता जी ...आप कुछ कहना चाहते हैं मुझसे ?'' नीहारिका के इस प्रश्न पर सागर कुर्सी पर बैठते हुए बोला -''हां बेटा ..आज मैं अपने दिल पर पिछले चौबीस साल से रखे एक बोझ को उतार देना चाहता हूँ ...हो सकता है आज के बाद तुम्हें लगे कि तुम्हारे पिता जी संसार के सबसे अच्छे पिता नहीं है पर मैं सच स्वीकार करने के लिए तैयार हूँ .बात तब की है जब मेरी दो बेटियों का जन्म हो चुका था . और तुम अपनी माँ के गर्भ में आ चुकी थी .मैं दो बेटियों के होने से पहले ही निराश था .सबने कहा ''पता कर लो सीमा के गर्भ में बेटा है या बेटी ..यदि बेटी हो तो गर्भ की सफाई करा दो '' मैंने तुम्हारी माँ के सामने ये प्रस्ताव रखा तो उसने मेरे पैर पकड़ लिए .वो इसके लिए तैयार नहीं थी पर मुझ पर बेटा पाने का जूनून था .मैंने तुम्हारी माँ से साफ साफ कह दिया था कि यदि टेस्ट को वो तैयार न हो तो अपना सामान बांधकर मेरे घर से निकल जाये .तुम्हारी माँ मेरे दबाव में नहीं आई .ये देखकर मैं और भी बड़ा शैतान बन गया और एक रात मैंने प्रिया और सारिका सहित तुम्हारी माँ को धक्का देकर घर से बाहर निकाल दिया .तुम्हारी माँ दर्द से कराहती हुई घंटों किवाड़ पीटती रही पर मैंने नहीं खोला .ये तुम्हारी दीदियों को लेकर मायके गई पर वहां इसके भाई-भाभी ने सहारा देने से मना कर दिया और कानपुर सविता व् समर को इस सारे कांड की जानकारी फोन पर दे दी तुम्हारे मामा जी ने .सविता और समर जी यहाँ आ पहुंचे .सविता ने तब पहली बार मेरे आगे मुंह खोला था .उसने दृढ़ स्वर में कहा था -'' भाई जी भाभी के साथ आपने ठीक नहीं किया .मेरे भी तीन बेटियां हैं यदि ये मुझे इसी तरह धक्का देकर घर से निकाल देते तब मैं कहाँ जाती और आप क्या करते ? ये तो दो बेटियों के होने पर ही संतुष्ट थे .मेरी ही जिद थी कि एक बेटा तो होना ही चाहिए ....तब ये तीसरे बच्चे के लिए तैयार हुए .अब सबसे ज्यादा प्यार ये तीसरी बेटी को ही करते हैं और आपने इस डर से कि कहीं तीसरा बच्चा बेटी ही न हो जाये भाभी को फूल सी बेटियों के साथ रात में घर से धक्के देकर बाहर निकाल दिया ..पर अभी इन बच्चियों के बुआ-फूफा मरे नहीं है .मैं लेकर जाउंगी भाभी को बच्चियों के साथ अपने घर ...अब भाई जी ये भूल जाना कि आपके कोई बहन भी है !'' मैं जानता था कि सविता मेरे सामने इतना इसीलिए बोल पाई थी क्योंकि उसे समर का समर्थन प्राप्त था .मैंने गुस्से में कहा था -'' जाओ ..तुम भी निकल जाओ .'' सविता ने अपना कहा निभाया और तुम्हारी माँ व् दीदियों को कानपुर ले गयी .वहीं कानपुर में तुम्हारा जन्म हुआ .यहाँ मेरठ से मेरा तबादला भी कानपुर हो गया .स्कूल के एक कार्यक्रम में हमारे बैंक मैनेजर शर्मा जी को मुख्य-अतिथि के रूप में बुलाया गया .उनके साथ मैं भी गया .वहां तुम्हारी प्रिया दीदी ने नृत्य का एक कार्यक्रम प्रस्तुत किया .प्रिया की नज़र जैसे ही मंच से मुझ पर पड़ी वो नृत्य छोड़कर दौड़कर मेरे पास आकर मुझसे लिपट गयी .वो बिलख-बिलख कर रोने लगी और मैं भी . मेरी सारी हैवानियत को प्रिया के निश्छल प्रेम ने पल भर में धो डाला . मैनेजर साहब को जब सारी स्थिति का पता चला तो उन्होंने बीच में पड़कर सारा मामला सुलझा दिया। सीमा ने जब पहली बार तुम्हे मेरी गोद में दिया तब तुमने सबसे पहले अपने नन्हें-नन्हें हाथों से मेरे कान पकड़ लिए ..शायद तुम मुझे डांट पिला रही थी .सविता ,समर व् सीमा ने ये निश्चय किया था कि इस घटना का जिक्र परिवार में बच्चों के सामने कभी नहीं होगा पर उस दिन से आज तक मुझे यही भय लगता रहा कि कहीं तुम्हें अन्य कोई ये न बता दे कि मैं तुम्हे कोख में ही मार डालना चाहता था . नीहारिका बेटा ये सच है कि मैं गलत था ..तुम चाहो तो मुझसे नफरत कर सकती हो पर आज अपना अपराध स्वीकार कर मैं राहत की साँस ले रहा हूँ ..मुझे माफ़ कर देना बेटा !'' ये कहते कहते सागर की आँखें भर आई .नीहारिका ने देखा सबकी आँखें भर आई थी .नीहारिका कुर्सी से उठकर सागर की कुर्सी के पास जाकर घुटनों के बल बैठते हुए बोली -पिता जी ..ये सब मैं नहीं जानती थी ...जानकार भी आपके प्रति सम्मान में कोई कमी नहीं आई है बल्कि मुझे गर्व है कि मेरे पिता जी में सच स्वीकार करने की शक्ति है ...मेरे लिए तो आज भी आप मेरे वही पिता जी है जो बैंक से लौटते समय मेरी पसंद की टॉफियां अपनी पेंट की जेब में भरकर लाते थे और दोनों दीदियों से बचाकर दो चार टॉफी मुझे हमेशा ज्यादा देते थे और मैं भी पिता जी आपकी वही नीहारिका हूँ जो चुपके से आपके कोट की जेब से सिक्के चुरा लिया करती थी ...नहीं पता चलता था ना आपको ?'' नीहारिका के ये कहते ही सागर ने उसका माथा चूम लिया .समर भी ये देखकर मुस्कुराता हुआ बोला -'' अब नीहारिका तुम ही निर्णय करो कि तुम्हारा कन्यादान मैं और सविता करें या तुम्हारे माँ-पिता जी ?'' नीहारिका लजाते हुए बोली -'' फूफा जी ...ये आप दोनों ही जाने .'' ये कहकर वो शर्माती हुई वहां से चली गयी .समर ने सागर के कंधें पर हाथ रखते हुए कहा -'' कन्यादान भाईसाहब आप ही करेंगें ..और अब तो आपने अपने हर अपराध का प्रायश्चित भी कर लिया है .'' समर के ये कहने पर सागर ने सीमा व् सविता की ओर देखा .उन दोनों की सहमति पर सागर ने भी लम्बी सांस लेकर सहमति में सिर हिला दिया . शिखा कौशिक 'नूतन '
नरेन्द्र पाठक

नरेन्द्र पाठक

वाह वाह क्या बात है

2 अक्टूबर 2015

भगवती शैव (पहाड़ों में)

भगवती शैव (पहाड़ों में)

अतिउत्तम रचना....अपने को पूर्णरूपेण समाहित किये हुए

2 अक्टूबर 2015

सीताराम गुरजर

सीताराम गुरजर

दिल छु लेने वाली बात कहदी आपने मैडमजी

21 अगस्त 2015

aradhana

aradhana

दान कहु इसे या कहु हाय विधाता कन्या क्या इस जगत आज भी दान हुआ ....... खूबसूरत रचना बधाई

2 अगस्त 2015

योगिता वार्डे ( खत्री )

योगिता वार्डे ( खत्री )

सुन्दर रचना शिखा जी... धन्यवाद

8 जुलाई 2015

आशीष श्रीवास्‍तव

आशीष श्रीवास्‍तव

अत्यंत उत्प्रेरक कथा शिखा जी

3 जुलाई 2015

महातम मिश्रा

महातम मिश्रा

भावुक व अच्छी उत्प्रेरक कहानी शिखा जी, गलती इन्शान कभी कभी मज़बूरी में भी कर देता है जो उसकी नियति में नहीं होती, फिर वाह पश्च्य्ताप की एजी में तब तक जलाते रहता है जब तक उसको क्षमा न मिल जाय, बहुत बढ़िया महोदया, बधाई..... मेरी एक कविता यहाँ रखना चाहूँगा...... “ बेटियाँ “ हर घरों की जान सी होती हैं बेटियाँ कुल की कूलिनता पर सोती हैं बेटियाँ माँ की कोंख पावन करती हैं बेटियाँ आँगन में मुस्कान सी होती हैं बेटियाँ || अपनी गली सिसककर रोती हैं बेटियाँ सौदा नहीं! बाजार में बिकती हैं बेटियाँ तानों की बौछार भी सहती हैं बेटियाँ खुद कलेजा थामकर चलती हैं बेटियाँ || बाप की औलाद ही होती हैं बेटियाँ गर्भ में इन्शान को ढोती है बेटियाँ कलाई थाम भाई की रोती हैं बेटियाँ हवस तेरा शिकार बन जाती हैं बेटियाँ || इज्जत के पहरेदार! लुट जाती है बेटियाँ नंगे बदन अखबार छप जाती है बेटियाँ पता बता, किस घर नहीं होती हैं बेटियाँ अभागों के दरबार मर जाती हैं बेटियाँ || माँ-बहन बन संसार भी रचती हैं बेटियाँ सुहागन का श्रृंगार भी करती हैं बेटियाँ सिंदूर की ज्वाला में जलती हैं बेटियाँ धिक्कार है! बेकफन भी टंगती हैं बेटियाँ || महातम मिश्र

30 जून 2015

डा० सचिन शर्मा

डा० सचिन शर्मा

शिखा जी,बहुत ही अच्छी रचना प्रस्तुत की है आपने..., धन्यवाद.

25 मई 2015

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औरत होने की कैसी सजा रे ?

25 जनवरी 2015
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धुँधला धुँधला है सारा जहां रे , औरत होने की कैसी सजा रे ? दिल के सब अरमां धूं -धूं कर जलते , घूँघट के भीतर कितना धुँआ रे ! .................................. कैसी ले किस्मत दुनिया में आती , खिलने से पहले ही ये है मुरझाती , ये तो हंसकर है सब कुछ सह जाती , अपने आंसू भी खुद ही पी जाती , इसको लगी किसकी

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कन्या-दान -कहानी

29 जनवरी 2015
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PUBLISHED IN ' NATIONAL DUNIYA '' NEWS PAPER ON 23 NOVEMBER 2014 ''नीहारिका का कन्यादान मैं और सीमा नहीं बल्कि तुम और सविता करोगे क्योंकि तुम दोनों को ही नैतिक रूप से ये अधिकार है .'' सागर के ये कहते ही समर ने उसकी ओर आश्चर्य से देखा और हड़बड़ाते हुए

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पाप-पुण्य की कसौटी -एक लघु कथा

16 फरवरी 2015
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पाप-पुण्य की कसौटी -एक लघु कथा प्रभात के घर आज गुरुदेव आने वाले थे .गुरुदेव का सम्मान प्रभात का पूरा परिवार करता है .गुरुदेव ने ज्यों ही उनके मुख्य द्वार पर अपने चरण कमल रखे तभी वहीँ पास में बैठा प्रभात का पालतू कुत्ता बुलेट उन पर जोर जोर से भौकने लगा .गुरुदेव के उज्जवल मस्तक पर क्षण

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''दलित देवो भव:'-कहानी

22 फरवरी 2015
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घर का सैप्टिक टैंक लबालब भर गया था .सारू का दिमाग बहुत परेशान था .कोई सफाईकर्मी नहीं मिल पा रहा था .सैप्टिक टैंक घर के भीतर ऐसी जगह पर था जहाँ से मशीन द्वारा उसकी सफाई संभव न थी .सारू को याद आया कि उसके दोस्त अजय की जानकारी में ऐसे सफाईकर्मी हैं जो सैप्टिक टैंक की सफाई का काम करते हैं .उसने अजय

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मेरी बहन बहन-तेरी बहन प्रेमिका !!!

24 फरवरी 2015
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मेरी बहन बहन ...तेरी बहन प्रेमिका !!! [google se sabhar ] लड़का लड़की ने मिलकर सोचा ''प्रेम ही सब कुछ है '' हम दोनों एक दूजे के बिना मर जायेंगे ! माता -पिता बहन-भाई ये सब क्या खाक साथ निभायेंगें ? वैसे भी हम अपनी भलाई जानते हैं इसीलिए मर्यादा ;नैतिकता; पारिवारिक निय

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''सरनेम गांधी ''

26 फरवरी 2015
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PUBLISHED IN JANVANI'S RAVIVANI -7DECEMBER2014 'पिया गांधी ...'' उपस्थिति दर्ज़ करती मैडम ने कक्षा में ज्यों ही पिया का नाम पुकारा ग्यारहवी की छात्रा पिया हल्का सा हाथ उठाकर ''यस मैडम '' कहते हुए अपनी कुर्सी से खड़ी हो गयी .सभी छात्राएं पिया की ओर द

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बेटी का हक़ -कहानी

14 मार्च 2015
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सेवानिवृत बैंक-अधिकारी आस्तिक ने तौलिये से गीला चेहरा पोंछते हुए अपनी धर्मपत्नी मंजू से कहा - 'हर दहेज़ -हत्या के जिम्मेदार ससुरालवालों से ज्यादा लड़की के मायके वाले होते हैं . तुम मेरी बात मानों या ना मानों पर सच यही है . कितनी ही विवाहित बेटियां मौत के मुंह में जाने से बच जाती यदि उनके मायके वाले

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ऐसी सुहागन से विधवा ही भली .'' -लघु- कथा

17 मार्च 2015
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ऐसी सुहागन से विधवा ही भली .'' -लघु- कथा google se sabhar पति के शव के पास बैठी ,मैली धोती के पल्लू से मुंह ढककर ,छाती पीटती ,गला फाड़कर चिल्लाती सुमन को बस्ती की अन्य महिलाएं ढाढस बंधा रही थी पल्लू के भीतर सुमन की आँखों से एक भी आंसू नहीं ब

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'' जो शहर के इश्क में दीवाने हो गए ''

20 मार्च 2015
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'' जो शहर के इश्क में दीवाने हो गए '' कस्बाई सुकून उनकी किस्मत में है कहाँ ! जो शहर के इश्क में दीवाने हो गए . ********************************************* कैसे बुज़ुर्ग दें उन औलादों को दुआ ! जो छोड़कर तन्हां बेगाने हो गए . ****************************************** दोस्ती में पड़ गयी गहरी बहु

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प्रिय की दृष्टि में प्रेयसी !

22 मार्च 2015
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पीत वसन में लगती हो तुम महारानी मधुमास की ! ओढ़ दुपट्टा रंग गुलाबी लगती कली गुलाब की ! वसन आसमानी कर धारण खिल जाता है गौर वदन ! लाल रंग के वस्त्रों में तुम दहकी लता पलाश की ! हरा रंग तो तुम पर जैसे नयी बहारें लाता है ! हरियाली पीली पड़ जाती रूप तुम्हारा देखकर ! श्वेत वसन में तुम्हें देखकर मुझको ऐ

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'दिल तो दिल है '

26 मार्च 2015
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भोला सा नाज़ुक सा दिल ये कितने सदमे झेलेगा , ग़म से भरकर फट जायेगा कितने सदमे झेलेगा ! ........................................................................... फूल से दिल पर दर्द के पत्थर कैसे वो बच पायेगा ? टुकड़े टुकड़े हो जायेगा जितने सदमे झेलेगा ! ......................................

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ख़राब लड़की -कहानी

28 मार्च 2015
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इक्कीस वर्षीय सांवली -सलोनी रेखा को उसी लड़के ने कानपुर बुलाकर क़त्ल कर दिया जिसने उससे शादी का वादा किया था . लड़के के प्रेम-जाल में फँसी रेखा न केवल क़त्ल की गयी बल्कि अपने शहर में बदनाम भी हो गयी कि वो एक ख़राब लड़की थी .कातिल लड़के के प्रति लोगों की बड़ी सहानुभूति थी कि 'रेखा ने पहले मर्यादाओं

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सबसे सुन्दर लड़का -लघु कथा

4 अप्रैल 2015
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वो खूबसूरत लड़की जब सड़क पर चलती थी तब अपने में ही खोई रहती . उसको खबर न होती कि कोई लड़का उसका पीछा कर रहा है . एक दिन एक संकरी गली में उस पीछा करने वाले लड़के ने आगे आकर उसका रास्ता रोक लिया .वो घबराई .उसकी नीली झील सी आँखों में आंसू भर आये .उसने हाथ जोड़कर कहा - ''मुझे जाने दो '' .यदि किसी ने म

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श्री राम ने क्यों लिया एक -पत्नी व्रत !

14 अप्रैल 2015
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श्री राम ने क्यों लिया एक पत्नी व्रत ?-एक विवेचन मर्यादा पुरुषोतम श्री राम का जीवन चरित युगों-युगों से सम्पूर्ण मानव-जाति के लिए अनुकरणीय रहा है .श्री राम के चरित का हर पक्ष उज्ज्वल है .एक पुत्र ,पति ,भ्राता और राजा को किन जीवन मूल्यों , आदर्शो , व् मर्यादाओं का पालन जीवन-पर्यंत करना चाहिए -व

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''कॉलेज जाना है या शादी ब्याह में !''

17 अप्रैल 2015
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''माँ मैं कौन सी पोशाक पहनूं ?'' चिया ने चहकते हुए माँ से पूछा तो माँ ने उदासीन भाव से कहा -'' कुछ भी जो शालीन हो वो पहन लो . चिया ने आर्टिफिशल ज्वेलरी दिखाते हुए माँ से पूछा -'' माँ ये माला का सैट कैसा लगेगा मुझ पर ? माँ ने उड़ती-उड़ती नज़र चिया की ज्वेलरी पर डाली और सुस्त से स्वर मे

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किसान रैली ने हिला दी मोदी सरकार

21 अप्रैल 2015
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Rahul Gandhi, Sonia Gandhi and Manmohan Singh at the kisan rally पिछले लोकसभा चुनाव [मई २०१४] में बीजेपी के हाथों भारी पराजय की चोट खाई कॉंग्रेस पार्टी १९ अप्रैल २०१५ को दिल्ली में हुई ''किसान -खेतिहर मजदूर रैली '' में पहली बार अपने पुराने रंग मे

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खोखली उदारवादिता -लघु कथा

24 अप्रैल 2015
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गौतम उदारतावादी स्वर में बोला -''लिव-इन कोई गलत व्यवस्था नहीं...आखिर कब तक वही पुराने..घिसे-पिटे सिस्टम पर समाज चलता रहेगा ..विवाह ....इससे भी क्या होता है ? गले में पट्टा डाल दिया बीवी के नाम का और मियां जी घूम रहे है इधर-उधर मुंह मारते हुए .'' सुरेश असहमति में सिर हिलाता हुआ बोला -''

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'मार झपट्टा मौत अभी खुली चुनौती आज है !'

27 अप्रैल 2015
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बेमौसम हुई बरसात ने किसानों की फसलों के साथ -साथ उनके अरमानों को तबाह कर डाला ;जिसके कारण रोज़ हमारे अन्न-दाता मौत को गले लगा रहें हैं और अचानक आये भूकम्प ने नेपाल सहित भारत के कई राज्यों में हज़ारों मासूमों की ज़िंदगी लील ली . तो क्या हम मौत के ऐसे तांडव के सामने घुटने टेक दें ? नहीं हमे मौत को ही

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''हो रही मोहब्बतें ख़ाक के सुपुर्द हैं ! ''

5 मई 2015
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पिछले शुकवार की रात [१ मई २०१५] को महाराष्ट्र से आ रहे जमातियों से बड़ौत रेलवे स्टेशन पर कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा बदसलूकी और जमातियों के पक्ष में आये सम्प्रदाय विशेष के उग्र समर्थकों द्वारा थाने व् रेलवे स्टेशन पर किये गए हिंसक प्रदर्शन ने कांधला [शामली] कसबे के अमन-चैन को तहस-नहस कर डाला . कांध

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जीवन-यात्रा

7 मई 2015
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जीवन-यात्रा मशहूर उद्योगपति की पत्नी और दो किशोर पुत्रों की माँ हेम जब भी एकांत में बैठती तब उसकी आँखों के सामने विवाह के पूर्व की घटना का एक-एक दृश्य घूमने लगता .कॉलेज में उस दिन वो सरस से आखिरी बार मिली थी .उसने सरस से कहा था कि -'' चलो भाग चलते हैं वरना मेरे पिता जी मेरा विवाह कहीं और कर देंगे

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खुदा नहीं मगर ''माँ' खुदा से कम नहीं होती !

8 मई 2015
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''हमारी हर खता को मुस्कुराकर माफ़ कर देती ; खुदा नहीं मगर ''माँ' खुदा से कम नहीं होती ! ............................................................... ''हमारी आँख में आंसू कभी आने नहीं देती ; कि माँ की गोद से बढकर कोई जन्नत नहीं होती ! ........................................................

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नारी दुर्गा है ''चिकनी -चमेली '' नहीं !

10 मई 2015
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HUU LAA PAR THIRKE KADAM नारी दुर्गा है ''चिकनी -चमेली '' नहीं ! ''हू ला ला'' पर थिरके कदम ''शीला-मुन्नी'' पर निकले है दम नैतिकता का है ये पतन दूषित हो गया अंतर्मन ओ फनकारों करो कुछ शर्म शालीन नगमों का कर लो सृजन फिर से सजा दो लबो पर हर दम वन्देमातरम .....वन्देमातरम ! नारी का मान घटाओ नहीं प्राणी

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खट्टी -मीठी यादें !

13 मई 2015
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खट्टी -मीठी यादें ! टूटे फूटे वादे ,कभी ताने और फरियादें , इनसे ही बन जाती हैं खट्टी मीठी यादें . फूलों के जैसे हँसना ,आँखों से मोती झरना , मरते मरते जीना ,कभी जीते जीते मरना , ऐसे जुड़ते जाते किस्से ये सीधे सादे .

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''खुले हाकिम की मक्कारी ''

16 मई 2015
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खुले हाक़िम की मक्कारी गिरें साज़िश की दीवारें , हमारे मुल्क की किस्मत हमारे हाथ में होंगी ! ............................................. हमारे साथ गद्दारी नहीं अब और कर सकते , हिला देंगें तेरी सत्ता के इज़्ज़त खाक में होगी ! .............................................. हमें मजबूर कहकर आग सीने

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मोदी :राष्ट्रनायक नहीं खलनायक !

19 मई 2015
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जब तक केंद्रीय सत्ता में नहीं थे ये भारत में जन्म लेने पर शर्म आती थी इन्हें ! ............................................... सत्ता में आते ही चमत्कार कर डाला भारत को तीन सौ पैंसठ दिन में विश्व की महाशक्ति बना डाला ! ................................................. एक वर्ष में तीस से

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''माँ'

22 मई 2015
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कोई बला जब हम पर आई , माँ को खुद पर लेते देखा ! हुआ हादसा साथ हमारे , माँ को बहुत तड़पते देखा ! ...................................... हो तकलीफ हमें न कोई , साँझ-सवेरे खटते देखा ! कभी नहीं संकट के आगे , हमनें माँ को झुकते देखा ! ....................................... ऊपर-नीचे अंदर-ब

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विरोध -प्रदर्शन

24 मई 2015
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शहर में हुए छोटी बच्ची के साथ बलात्कार के विरोध-प्रदर्शन हेतु विपक्षी पार्टी ने पाँच-पाँच सौ रूपये में झोपड़-पट्टी में रहने वाले परिवारों की महिलाओं को छह घंटे के लिए किराये पर लिया था . विपक्ष के पार्टी कार्यालय से पार्टी द्वारा वितरित वस्त्र धारण कर व् हाथों में बैनर लेकर , दिए गए नार

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सरोजा -कहानी

25 मई 2015
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मैंने जब से होश संभाला था तब से अपने संयुक्त परिवार में बुआ को ऐसा पाया जैसे सारी चंचलता त्याग कर गंगा मैय्या शांत भाव से बही जा रही हो . बुआ न ज्यादा बोलती और न ही आस-पड़ोस वाली औरतों के तानों का पलट कर जवाब देती .माँ और चाची ही उनके तानों पर भड़क जाती थी और ये कहकर कि ''जिस पर पड़ती है उसका

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फिर से जन्म लेकर आऊंगा !

27 मई 2015
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हुए न लक्ष्य पूर्ण किन्तु मृत्यु द्वार आ गयी , देखकर मृत्यु को हाय ! ज़िंदगी घबरा गयी , हूँ नहीं विचलित मगर मैं , मृत्यु से टकराउँगा ! लक्ष्य पूरे करने फिर से जन्म लेकर आऊंगा ! ..................................... छोड़ दूंगा प्राण पर प्रण नहीं तोड़ूँगा मैं , अपनी लक्ष्य-प्राप्ति से मुंह नहीं म

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मैं नहीं लिखता कोई मुझसे लिखाता है !

2 जून 2015
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मैं नहीं लिखता ; कोई मुझसे लिखाता है ! कौन है जो भाव बन ; उर में समाता है ! .................................... कौंध जाती बुद्धि- नभ में विचार -श्रृंखला दामिनी , तब रची जाती है कोई रम्य-रचना कामिनी , प्रेरणा बन कर कोई ये सब कराता है ! मैं नहीं लिखता ; कोई मुझसे लिखता है ! ........................

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बदनाम रानियां -कहानी

6 जून 2015
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बगल में बस की सीट पर बैठी खूबसूरत युवती द्वारा मोबाइल पर की जा रही बातचीत से मैं इस नतीजे पर पहुँच चूका था कि ये ज़िस्म फ़रोशी का धंधा करती है .एक रात के पैसे वो ऐसे तय कर रही थी जैसे हम सेकेंड हैण्ड स्कूटर के लिए भाव लगा रहे हो .टाइट जींस व् डीप नेक की झीनी कुर्ती में उसके ज़िस्म का उभरा हुआ हर अंग

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सबसे सुन्दर प्रिया !

8 जून 2015
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गुलाबी फूल हरी बेल पर अत्याधिक आकर्षक ! ................................. ओस की बूँदें हरे पत्तों पर अत्याधिक मोहक ! ................................. जल की फुहार चमकती हुई धुप में अत्याधिक उज्ज्वल ! .................................. लेकिन सबसे सुन्दर तुम हो प्रिया गाम्भीर्य लिए चंचल ! शिखा कौशि

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बलात्कारी..पति ?-कहानी

11 जून 2015
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पंचायत अपना फैसला सुना चुकी थी .नीला के बापू -अम्मा , छोटे भाई-बहन बिरादरी के आगे घुटने टेककर पंचायत का निर्णय मानने को विवश हो चुके थे .निर्णय की जानकारी होते ही नीला ने उस बंद -दमघोंटू कोठरी की दीवार पर अपना सिर दे मारा था और फिर तड़प उठी थी उसके असहनीय दर्द से .चार दिन पहले तक उसका जीवन कितनी आ

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पितृ सत्ता के समक्ष लो राम गया हार !

17 जून 2015
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पितृ सत्ता के समक्ष लो राम गया हार ! भूतल में समाई सिया उर कर रहा धिक्कार देवी अहिल्या को लौटाया नारी का सम्मान अपनी सिया का साथ न दे पाया किन्तु राम है वज्र सम ह्रदय मेरा करता हूँ मैं स्वीकार ! पितृ सत्ता के समक्ष ........ वध किया अनाचारी का बालि हो या रावण नारी को म

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फहरती रहे फहरती रहे सनातन धर्म पताका !

19 जून 2015
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[youtube]http://www.youtube.com/watch?v=9rNvtLoP1zY[/youtube] फहरती रहे फहरती रहे सनातन धर्म पताका ! करती रहे करती रहे कल्याण मानवता का ! भगवा रंग पताका लगती हम सबको मनभावन , भक्ति रस उर में भर देती निर्मल है अति पावन , मध्य में अंकित ॐ का दर्

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समर -भूमि से वीर नहीं करते हैं कभी पलायन !

21 जून 2015
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घाव लगें जितनें भी तन पर कहलाते आभूषण , वीर का लक्ष्य करो शीघ्र ही शत्रु -दल का मर्दन , अडिग -अटल हो करते रहते युद्ध -धर्म का पालन , समर -भूमि से वीर नहीं करते हैं कभी पलायन ! ................................................................ युद्ध सदा लड़ते हैं योद्धा बुद्धि -बाहु बल से ,

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मानस के रचनाकार में भी पुरुष अहम् भारी

24 जून 2015
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सात कांड में रची तुलसी ने ' मानस ' ; आठवाँ लिखने का क्यों कर न सके साहस ? आठवे में लिखा जाता सिया का विद्रोह ; पर त्यागते कैसे श्री राम यश का मोह ? लिखते अगर तुलसी सिया का वनवास ; घटती राम-महिमा उनको था विश्वास . अग्नि परीक्षा और शुचिता प्रमाणन ; पूर्ण कहाँ इनके बिना होती

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वो लड़की.... रौद दी जाती है अस्मत जिसकी

27 जून 2015
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वो लड़की रौंद दी जाती है अस्मत जिसकी , करती है नफरत अपने ही वजूद से जिंदगी हो जाती है बदतर उसकी मौत से . वो लड़की रौद दी जाती है अस्मत जिसकी , घिन्न आती है उसे अपने ही जिस्म से , नहीं चाहती करना अपनों का सामना , वहशियत की शिकार बनकर लाचार घबरा जाती है हल्की सी आहट से .

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वैदेही सोच रही मन में

3 जुलाई 2015
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वैदेही सोच रही मन में यदि प्रभु यहाँ मेरे होते !! वैदेही सोच रही मन में यदि प्रभु यहाँ मेरे होते , लव-कुश की बाल -लीलाओं का आनंद प्रभु संग में लेते . जब प्रभु बुलाते लव -कुश को आओ पुत्रों समीप जरा , घुटने के बल चलकर जाते हर्षित हो जाता ह्रदय मेरा , फैलाकर बांहों का घेरा लव

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शुभकामनाओं की प्रबल आकांक्षा है !

10 जुलाई 2015
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मेरी लघु-कथाओं का प्रथम संग्रह अंजुमन प्रकाशन [इलाहाबाद ] से शीघ्र ही प्रकाशित हो रहा है .आप सभी की शुभकामनाओं की प्रबल आकांक्षा है ! https://www.facebook.com/anjumanpublication?pnref=lhc -डॉ. शिखा कौशिक 'नूतन'

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वो भरे हुंकार तो वसुधा भी थर-थर कांपती !

16 जुलाई 2015
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शोषणों की आग जब रक्त को उबालती , शंख लेकर हाथ में वो फूंक देता क्रांति , उसको साधारण समझना है भयानक भ्रान्ति , वो भरे हुंकार तो वसुधा भी थर-थर कांपती ! ........................................................................ हम सामान्य -जन समक्ष श्री राम का आदर्श है , एक वनवासी कुचलता लंकेश का मह

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मानस के रचनाकार में भी पुरुष अहम् भारी

24 जून 2015
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सात कांड में रची तुलसी ने ' मानस ' ; आठवाँ लिखने का क्यों कर न सके साहस ? आठवे में लिखा जाता सिया का विद्रोह ; पर त्यागते कैसे श्री राम यश का मोह ? लिखते अगर तुलसी सिया का वनवास ; घटती राम-महिमा उनको था विश्वास . अग्नि परीक्षा और शुचिता प्रमाणन ; पूर्ण कहाँ इनके बिना होती

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मैं ऐसे मित्र नहीं चाहता !

27 मार्च 2016
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देख दुःखों में डूबा मुझको ;जिनके उर आनंद मनें ,किन्तु मेरे रह समीप ;मेरे जो हमदर्द बनें ,ढोंग मित्रता का किंचिंत ऐसा न मुझको भाता !मैं ऐसे मित्र नहीं चाहता ! सुन्दर -मँहगे उपहारों से ;भर दें जो झोली मेरी ,,पर संकट के क्षण में जो ;आने में करते देरी ,तुम्हीं बताओ कैसे रखूँ उनसे मैं नेह का नाता !मैं ऐस

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