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श्री राम ने क्यों लिया एक -पत्नी व्रत !

14 अप्रैल 2015

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श्री राम ने क्यों लिया एक पत्नी व्रत ?-एक विवेचन मर्यादा पुरुषोतम श्री राम का जीवन चरित युगों-युगों से सम्पूर्ण मानव-जाति के लिए अनुकरणीय रहा है .श्री राम के चरित का हर पक्ष उज्ज्वल है .एक पुत्र ,पति ,भ्राता और राजा को किन जीवन मूल्यों , आदर्शो , व् मर्यादाओं का पालन जीवन-पर्यंत करना चाहिए -वह श्री राम के चरित का विश्लेषण कर भारतीय मनीषी सदैव से जन सामान्य के समक्ष प्रस्तुत करते रहे हैं .श्री राम के चरित का जो सबसे उज्ज्वल पक्ष है वो है -नारी जाति के सम्मान को पुनर्स्थापित करना . इस सन्दर्भ में ''देवी अहिल्ला का उद्धार '' प्रसंग से भी अधिक महत्वपूर्ण है श्री राम द्वारा आजीवन ''एक पत्नी-व्रत '' का कठोरता से पालन .श्री राम ने जिस युग में इस व्रत का कठोरता से पालन किया उस युग में इसकी कल्पना भी अन्य किसी पुरुष से नहीं की जा सकती थी .बहुपत्नी-विवाह शासक वर्ग ,धनी एवं अभिजात वर्ग के पुरुषों के लिए प्रतिष्ठा का विषय था .संपत्ति के अंतर्गत उस काल में मात्र धन , भूमि , सेना ही नहीं आती थी स्त्री भी सम्मिलित थी .युद्ध विजयी राजा को पराजित राजा विवश होकर अपनी स्त्रियाँ भी समर्पित कर देता था अथवा वे बलात छीन ली जाती थी .यह विजयी राजा के ऐश्वर्य व् प्रतिष्ठा में चार-चाँद जड़ने जैसा था .ऐसे युग में श्री राम जब एक पत्नी व्रत लेते हैं तब उसके कारणों पर चिंतन-मनन करना आवश्यक हो जाता है जबकि स्वयं उनके धर्मचारी व् वैभवशाली पिता राजा दशरथ के तीन महारानियों -माता कौशल्या , माता कैकयी ,माता सुमित्रा के अतिरिक्त साढ़े तीन सौ रानियाँ थी . इस सन्दर्भ में यह दृष्टव्य है - ''एतावद्नीतार्थ्मुक्त्वा ................कृतांजलि:'' [अर्थात -माता से इस प्रकार अपना अभिप्राय बताकर श्री राम ने अपनी अन्य साढ़े तीन सौ माताओं की ओर दृष्टिपात किया और उनको भी कौशल्या की ही भांति शोकाकुल पाया .''अयोध्या कांड -एकोन चत्वारिंश:सर्ग:, श्लोक -३६-३७ '' ] श्री राम के एक पत्नी व्रत लेने के सम्बन्ध में जो सामान्य रूप से व् बहुमान्य कारण प्रत्यक्ष दिखाई देता है वह है -नारी के मानवी अस्तित्व को मान्यता प्रदान करना .उसे संपत्ति से एक गरिमामयी मानवी रूप में स्थापित करना क्योंकि श्री राम जन्म के कारणों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारण -''रावण द्वारा स्त्रियों पर किये जाने वाले अत्याचार ''; था .यथा- ''उत्साद्यती लोकंस्त्रीन........मनुषेभ्य:परंतप '' [बाल कांड -षोडश:सर्ग:, श्लोक-७ पृष्ठ -६७ ] [ शत्रुओं को संताप देने देव ! वह रावण तीनों लोकों को पीड़ा देता और स्त्रियों का भी अपहरण कर लेता है , अब उसका वध मनुष्य के हाथ से ही निश्चित हुआ है ] यह कारण जगत-विदित है किन्तु श्री राम चरित का गहराई से विश्लेषण करें तो यह ''एक पत्नी व्रत '' का मुख्य कारण नहीं ठहरता क्योंकि यदि एक समय पर एक भार्या को सम्मान देना श्री राम के मर्यादित जीवन का आदर्श मात्र होता तो भगवती सीता के वैकुंठ गमन के पश्चात् वे किसी अन्य श्रेष्ठ कुल की राजकुमारी को सिंहासन पर अपने वाम भाग की अधिकारिणी के रूप में प्रतिष्ठित कर सकते थे . यहाँ श्री राम के अलौकिक रूप ;जिसके अनुसार श्री नारायण की एक मात्र वाम भगिनी माता लक्ष्मी ही हैं ,को तर्क रूप में प्रस्तुत करना व्यर्थ है क्योंकि हम यहाँ मानव रूप में अवतरित राजा रामचंद्र के चरित का विश्लेषण कर रहे हैं न कि ब्रह्म स्वरुप प्रभु राम का .यज्ञ संपन्न करने जैसे महत्वपूर्ण धार्मिक कार्यो के समय भी श्री राम ने माता सीता की स्वर्णमयी प्रतिमा को ही अपने वाम भाग में प्रतिष्ठित किया .यथा - ''कांचनी मम पत्नी च दीक्षयाम ज्ञान्क्ष्च कर्मणि '' [उत्तर काण्ड -द्विनवतितम:सर्ग:, श्लोक-२५ ,पृष्ठ -८०१ ] ''न सीतायाम परम .............जानकी कांचनी भवत:''[उत्तर काण्ड -एकोंशततम:सर्ग: पृष्ठ-८१३,श्लोक-८] [उन्होंने (श्री राम )सीता के सिवा दूसरी किसी स्त्री से विवाह नहीं किया . प्रत्येक यज्ञ में जब धर्मपत्नी की आवश्यकता होती श्री रघुनाथ जी सीता की स्वर्णमयी प्रतिमा बनवा लिया करते थे ] एक पत्नी व्रत पर ऐसी दृढ़ता श्री राम के चरित में कैसे आई ? इसके लिए हमें ''रामायण'' के सबसे क्रूर व् कुटिल प्रसंग पर दृष्टिपात करना होगा अर्थात रानी कैकेयी का राजा दशरथ से श्री राम के स्थान पर श्री भरत का राज्यभिषेक व् श्री राम को चौदह वर्षों का कठोर वनवास का वर मांगने का प्रसंग .इस प्रसंग में जब श्री राम वनवास हेतु माता कौशल्या से आज्ञा लेने उनके समीप जाते हैं तब श्री राम ह्रदय पर शैशव काल से लगे माता के अपमान रुपी आघातों की परतें एक एक कर उतरने लगती हैं .बालक राम की माता कौशल्या उनके पिता राजा दशरथ की ज्येष्ठ पत्नी थी पर उन्हें राजा दशरथ की अन्य रानियों विशेषकर रानी कैकेयी के कारण जीवन भर अपमान-गरल पीना पड़ा .श्री राम को चौदह वर्षों का वनवास दिए जाने पर माता कौशल्या का ह्रदय चीत्कार कर उठता है . तब उनके उर की व्यथा प्रकट हुए बिना नहीं रहती .वे कहती हैं - ''त्वयि ...मरन्येवाही ''[श्लोक-४१ , अयोध्या कांड , विंश: सर्ग: .पृष्ठ-२३९ ] [तात !तुम्हारे निकट रहने पर भी इस प्रकार सौतों से तिरस्कृत रही हूँ , फिर तुम्हारे परदेस चले जाने पर मेरी क्या दशा होगी ? उस दशा में मेरा मरण तो निश्चित है ] इसी सन्दर्भ में माता कौशल्या पति द्वारा रानी कैकेयी की तुलना में अपनी उपेक्षा किये जाने की वेदना अभिव्यक्त करते हुए कहती हैं- ''अत्यन्तं निग्रिहॆतस्मि.............वाप्य्थ्वावारा '' [उपरोक्त ,श्लोक-४२ ] [पति की ओर से मुझे सदा अत्यंत तिरस्कार अथवा कड़ी फटकार ही मिली है ,प्यार और सम्मान कभी नहीं प्राप्त हुआ है .मैं कैकेयी की दासियों के बराबर अथवा उनसे भी गयी बीती समझी जाती हूँ ] सौत ककेयी के राजमहल में वर्चस्व की व्याख्या करते हुए माता कौशल्या श्री राम से कहती हैं - ''यो हि माम् सेवते .........जानो नाभिभाश्ते ''[उपरोक्त ,श्लोक-४३ ] [जो कोई मेरी सेवा में रहता या मेरा अनुसरण करता है ,वह भी कैकेयी के बेटे को देखकर चुप हो जाता है ,मुझसे बात नहीं करता ] सौत के ऐसे आतंक से डरी माता कौशल्या श्री राम वनगमन पर अपनी मार्मिक दशा का उद्घाटन करते श्री राम से कहती हैं - ''नित्य क्रोध्तया .....दुर्गता '' [उपरोक्त ,श्लोक-४४ ] [बेटा इस दुर्गति में पड़कर मैं सदा क्रोधी स्वाभाव के कारण कटुवचन बोलने वाले उस कैकेयी के मुख को कैसे देख सकूंगी ] सौतिया डाह से भयाक्रांत माता कौशल्या जब श्री राम के साथ ही वनगमन का प्रस्ताव रखती हैं तब उनके ह्रदय की वेदना को क्या श्री राम ने आज और अभी जाना था ?- ''आसां राम सपत्नीनाम .........पितार्पेक्षाया '' [अयोध्या काण्ड , चतुर्विंश: सर्ग: ,श्लोक -१९ ,२० ] [बेटा राम ! अब मुझसे इन सौतों के बीच में नहीं रहा जायेगा .काकुत्स्थ !यदि पिता की आज्ञा का पालन करने की इच्छा से तुमने वन जाने का ही निश्चय किया है तो मुझे भी वन वासिनी हरिणी की भांति वन में ही ले चलो] विचारणीय है कि जन्म से वनगमन के मध्य श्री राम ने अपनी बाल्यावस्था ,किशोरावस्था व् प्रारंभिक युवावस्था में माता के प्रति जो सौतेली माताओं का [विशेषकर रानी कैकेयी ] जो व्यव्हार देखा क्या उसने ही श्री राम ह्रदय में एक पत्नी व्रत का बीज रोप दिया था ?सौतेली माता द्वारा निज जननी का अपमान कौन संतान सहन कर सकती है ? निश्चित रूप से श्री राम द्वारा इसी असहनीय स्थिति ने एक पत्नी व्रत हेतु प्रेरित किया होगा क्योंकि जीवन के इसी भाग में मानव सर्वाधिक उत्साही प्रवर्ति वाला व् अन्याय के विरूद्ध सक्रिय होता है . सौतेली माताओं के निज जननी के साथ दुर्व्यवहार के अतिरिक्त जो दूसरा कारण श्री राम द्वारा एक पत्नी व्रत लिए जाने का प्रकट होता है वो है -महान पिता राजा दशरथ द्वारा राम माता के साथ उपेक्षापूर्ण बर्ताव किया जाना .राजा दशरथ की यह स्वीकारोक्ति श्री राम जननी के प्रति किये गए उनके उपेक्षा पूर्ण बर्ताव को ही प्रदर्शित करती है - ''यदि सत्यम ............कृते तव '' [द्वादश:सर्ग: श्लोक-६७,६८ ,६९ ] [यदि कहूं कि श्री राम को वनवास देकर मैंने सत्य का पालन किया है .........यदि राम वन को चले गए तो कौशल्या मुझे क्या कहेगी ?उसका ऐसा महँ अपकार करके मैं उसे क्या उत्तर दूंगा ?हाय !जिसका पुत्र मुझे सबसे अधिक प्रिय है , वह प्रिय वचन बोलने वाली कौशल्या जब जब दासी , सखी , पत्नी , बहिन और माता की भांति मेरा प्रिय करने की इच्छा से मेरी सेवा में उपस्थित होती थी तब तब उस सत्कार पाने योग्य देवी का भी मैंने तेरे[कैकेयी] ही कारण कभी सत्कार नहीं किया ] निश्चित रूप से श्री राम के बाल व् किशोर ह्रदय पर धर्माचारी पिता द्वारा निज जननी के साथ किये गए इस भेदभाव पूर्ण व्यव्हार का व्यापक प्रभाव पड़ा होगा .''इतना महान पिता भी निजी जीवन में क्यों आदर्शों व् मर्यादाओं की उपेक्षा का दोषी बन जाता है ?क्या विराट व्यक्तित्व को बहुपत्नी रखने का दंड अपनों की दृष्टि में ही गिरकर चुकाना नहीं पड़ता ?''-क्या इसका विश्लेषण श्री राम ने नहीं किया होगा ? कितने लाचार हो उठते हैं राजा दशरथ रानी कैकेयी के समक्ष ! राजा दशरथ को न केवल महारानी कौशल्या की दृष्टि में अपितु रानी सुमित्रा की दृष्टि में भी दोषी बन जाने का डर सताने लगता है - ''विप्रकारम च ........विश्व शिष्यती'' [उपरोक्त ,श्लोक-७१ ] [श्री राम के अभिषेक का निवारण और उनका वन की और प्रस्थान देखकर निश्चय ही सुमित्रा भयभीत हो जाएगी फिर वह कैसे मेरा विश्वास करेगी ? ] संभव है ऐसी विवशता से टकराते पिता को श्री राम बाल्यावस्था से देखते रहे हो .कौन बालक अपने महान पिता के जीवन के इस विवश-अध्याय से शिक्षा न लेगा ? एक अन्य तथ्य पर भी ध्यानाकर्षण इस विषय में उपयोगी होगा .जब रानी कैकेयी की दासी मंथरा उन्हें श्री राम के राज्य अभिषेक का समाचार सुनती है तब वे हर्षित होकर आनंदमग्न हो जाती हैं .यथा - ''अतीव सा संतुष्ट कैकेयी ..........राज्येभिशेक्श्यति'' [अयोध्या कांड ,श्लोक ३२ ,३३ ,३४ , ३५ ] [कैकेयी मन ही मन अत्यंत संतुष्ट हुई .विस्मित विमुग्ध हो मुस्कुराते हुए उसने कुब्जा को पुरस्कार के रूप में एक बहुत सुन्दर दिव्य आभूषण प्रदान किया .कुब्जा को वह आभूषण देकर हर्ष से भरी रमणी शिरोमणि कैकेयी ने पुन: मंथरा से इस प्रकार कहा -मन्थरे यह तूने मुझे बड़ा ही प्रिय समाचार सुनाया .तूने मेरे लिए जो यह प्रिय संवाद सुनाया उसके लिए मैं तेरा और कौन सा उपकार करूं ? मैं भी राम और भरत में कोई भेद नहीं समझती .अत:यह जानकर कि राजा श्री राम का अभिषेक होने वाला है ,मुझे बड़ी ख़ुशी हुई है ] श्री राम के प्रति ऐसे स्नेही भाव रखने वाली रानी कैकेयी को जब मंथरा सचेत करती है कि श्री राम का राज्याभिषेक हो जाने से उनकी माता महारानी कौशल्या का मान बढ़ जायेगा तब रानी कैकेयी के उद्गार देखिये - 'एवमुक्त्वा .........भारतं क्षिप्र्मद्याभिशेचाये'' [अयोध्या कांड ,नवम सर्ग ,श्लोक-१ , २ ,पृष्ठ-२०० ] [मंथरा के ऐसा कहने पर कैकेयी का मुख क्रोध से तमतमा उठा .वह लम्बी और गरम साँस खींचकर इसप्रकार बोली-कुब्जे ! मैं श्री राम को शीघ्र ही यहाँ से वन में भेजूंगी और तुरंत ही युवराज के पद पर भरत का अभिषेक करुँगी ] ''एष में जीवित..........य्द्य्भिशिच्य्ते '' [उपरोक्त ,श्लोक ५९ ,पृष्ठ-२०३ ] [यदि श्री राम का राज्याभिषेक हुआ तो यह मेरे जीवन का अंत होगा ] ध्यातव्य है कि सौतिया दाह रानी कैकेयी के ममतामयी भावों पर हावी हो गया था .यथा - ''एकाहमपि .....मृत्र्मम''[द्वादश सर्ग ,श्लोक-४८ अयोध्या कांड ] [यदि एक दिन भी महारानी कौशल्या को राजमाता होने के नाते दूसरे लोगों से अपने को हाथ जोड़वाती देख लूंगी तो उसी समय मैं अपने लिए मर जाना ही अच्छा समझूँगी ] क्या श्री राम के व्यक्तित्व निर्माण के समय राजा दशरथ की रानियों अर्थात माताओं के पारस्परिक संबंधों का प्रभाव नहीं पड़ा होगा ? क्या वे बाल्यअवस्था से यह अनुभव नहीं करते होंगे कि माता कैकेयी का व्यव्हार उनके प्रति कैसा है और उनकी जननी के प्रति कैसा ? राजा दशरथ का श्री राम के प्रति स्नेह जगत विदित है .चरों पुत्रों में सर्वाधिक प्रेम वे ज्येष्ठ पुत्र श्री राम को ही करते थे किन्तु श्री राम की जननी की तुलना में उनका प्रेम छोटी रानी कैकेयी के प्रति अधिक था . .यथा- 'सवृद्ध्स्तारुनी ........प्राणेभ्योअपिगरियसि ''[श्लोक-२३ अयोध्या कांड ,दशम:सर्ग, पृष्ठ-२०५ ] [राजा बूढ़े थे और उनकी वह पत्नी [कैकेयी] तरुणी थी ,अत:वे उसे अपने प्राणों से भी बढ़कर मानते थे ] राजा दशरथ के द्वारा अधिक मान देने के कारन ही रानी कैकेयी घमंड में भरकर अपने से बड़ी रानियों को अपमानित करने से भी नहीं चूकती थी .श्री राम के राज्याभिषेक हेतु मंत्र उसे इसी दुराचरण की स्मृति दिलाती है - 'दर्पान्निराकृता पूर्वं .................याप्येत ''[श्लोक 37 ,अयोध्या कांड ,अष्टम:सर्ग:] [तुमने पहले पति का अत्यंत प्रेम प्राप्त होने के कारण घमंड में आकर जिनका अनादर किया था ,वे ही तुम्हारी सौत श्री राम माता कौशल्या पुत्र की राज्य प्राप्ति से परम सौभाग्यशालिनी हो उठी हैं .अब वे तुमसे बैर का बदला क्यों नहीं लेंगी ?] राजमहल हो अथवा साधारण घरपरिवार जहाँ भी एक पुरुष ने कई विवाह किये हैं उनके साथ वह समान व्यवहार करने में असफल रहता है .इसके दुष्परिणाम स्त्रियों के साथ साथ उसकी संतानों को भी आजीवन भोगने पड़ते हैं .श्री राम ने इन परस्थितियों को समीप से देखा-भोगा था .एक आदर्श चरित्र के निर्माण में उसके जीवन की परिस्थितियाँ अहम् भूमिका निभाती हैं .समीप से निज जननी की व्यथा ,महान पिता की विवशताओं व् वर्चस्व के छिन जाने के प्रति सशंकित रानी कैकेयी के असंतुलित आचरण की जड़ में श्री राम ने बहुपत्नी विवाह को ही कारण पाया होगा . बहुपत्नी विवाह के दुष्परिणामों से बचने व् आने वाली पीढ़ियों को एक आदर्श प्रदान करने हेतु ही श्री राम ने एक पत्नी व्रत लिया और आजीवन उसका कठोरता से पालन किया .श्री राम के मुखारविंद से निकले ये उद्गार ['शूर्पणखा-प्रसंग'' में] उनके द्वारा लिए गए एक पत्नी व्रत की महत्ता को प्रदर्शित करते हैं.देखें- ''कृतदारोअस्मि ......ससपत्नता ''[श्लोक-२,अरण्य कांड ,अष्टादश:: सर्ग:] [आदरणीय देवी ! मैं विवाह कर चुका हूँ .यह मेरी प्यारी पत्नी विद्यमान है .तुम जैसी स्त्रियों के लिए तो सौत का रहना अत्यंत दुखदायी ही होगा ] 'राम:सीता:...सुन्दरी ''[अध्यात्म रामायण ,पंचम सर्ग:,पृष्ठ-११७] [तब रामचंद्र जी ने नेत्रों से सीता जी की ओर संकेत करके मुस्कुराकर कहा -हे सुन्दरी ! मेरी तो यह भार्या मौजूद है ,जिसको त्यागना असंभव है .इसके रहते हुए तुम जन्म भर सौत डाह से जलती हुई किस प्रकार रह सकोगी ?] कितनी गूढता से श्री राम सपत्नी डाह को समझ चुके थे ! सीता जी से विवाह के समय एक पत्नी व्रत के प्रति चाहे श्री राम का झुकाव मात्र रहा हो किन्तु जीवन में घटित दुर्घटनाओं ने उन्हें इस व्रत पालन पर दृढ रहने की शक्ति प्रदान की .''झुकाव मात्र'' मैंने इसलिए कहा है क्योंकि ''श्रीरामचरित मानस '' के अरण्य-कांड में श्री लक्ष्मण जी द्वारा कहे गए ये वचन प्रमाणित करते हैं कि श्री राम द्वारा लिए गए एक पत्नी व्रत का संज्ञान उनके अनुज तक को नहीं था तभी तो श्री लक्ष्मण शूर्पणखा से कहते हैं- ''सुन्दरि सुनु मैं उन्ह कर दासा ,पराधीन नहि तोर सुवासा , प्रभु समर्थ कोसलपुर राजा ,जो कछु करहि उनहि सब छाजा '' [श्री रामचरितमानस,पृष्ठ-५७५ ,आहूजा प्रकाशन ] निश्चित रूप से यदि श्री लक्ष्मण को श्री राम के एक पत्नी व्रत का संज्ञान नहीं था .यदि वे इस से परिचित होते तो शूर्पणखा को पुन:प्रणय निवेदन हेतु श्री राम के समक्ष नहीं भेजते . श्री राम की एक पत्नी व्रत के प्रति दृढ़ता शनै शनै ही सशक्त होती गयी होगी ..बाल्यावस्था में निज जननी का अन्य सौतों द्वारा अनादर ,सौतिया डाह के कारण स्नेहमयी माता कैकेयी का कटु आचरण ,पिता का माता कैकेयी द्वारा किया गया तिरस्कार व् पिता का एक रानी के प्रति अधिक मोह हो जाने के कारण निज जननी की उपेक्षा व् पिता की विवशताओं का प्रत्यक्ष दर्शन आदि कारणों ने श्री राम को एक पत्नी व्रत पर अटल रहने हेतु संबल प्रदान किया .निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि श्री राम के एक पत्नी व्रत धारण के मूल में राजा दशरथ के बहुपत्नी विवाह के दुष्परिणाम ही रहे होंगे . [शोध ग्रन्थ-श्री मद वाल्मीकीय रामायण[गीता प्रेस ] ,अध्यात्म रामायण[गीता प्रेस ] ,श्री राम चरित मानस [आहूजा प्रकाशन ] डॉ शिखा कौशिक ''नूतन ''
डॉ. शिखा कौशिक

डॉ. शिखा कौशिक

हार्दिक धन्यवाद शालिनी जी व् विजय जी उत्साहवर्धन हेतु

15 अप्रैल 2015

विजय कुमार शर्मा

विजय कुमार शर्मा

एक उत्कृष्य विश्लेषण

14 अप्रैल 2015

शालिनी कौशिक एडवोकेट

शालिनी कौशिक एडवोकेट

बहुत सही विश्लेषण किया है शिखा जी आपने .आभार

14 अप्रैल 2015

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औरत होने की कैसी सजा रे ?

25 जनवरी 2015
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धुँधला धुँधला है सारा जहां रे , औरत होने की कैसी सजा रे ? दिल के सब अरमां धूं -धूं कर जलते , घूँघट के भीतर कितना धुँआ रे ! .................................. कैसी ले किस्मत दुनिया में आती , खिलने से पहले ही ये है मुरझाती , ये तो हंसकर है सब कुछ सह जाती , अपने आंसू भी खुद ही पी जाती , इसको लगी किसकी

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कन्या-दान -कहानी

29 जनवरी 2015
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PUBLISHED IN ' NATIONAL DUNIYA '' NEWS PAPER ON 23 NOVEMBER 2014 ''नीहारिका का कन्यादान मैं और सीमा नहीं बल्कि तुम और सविता करोगे क्योंकि तुम दोनों को ही नैतिक रूप से ये अधिकार है .'' सागर के ये कहते ही समर ने उसकी ओर आश्चर्य से देखा और हड़बड़ाते हुए

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पाप-पुण्य की कसौटी -एक लघु कथा

16 फरवरी 2015
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पाप-पुण्य की कसौटी -एक लघु कथा प्रभात के घर आज गुरुदेव आने वाले थे .गुरुदेव का सम्मान प्रभात का पूरा परिवार करता है .गुरुदेव ने ज्यों ही उनके मुख्य द्वार पर अपने चरण कमल रखे तभी वहीँ पास में बैठा प्रभात का पालतू कुत्ता बुलेट उन पर जोर जोर से भौकने लगा .गुरुदेव के उज्जवल मस्तक पर क्षण

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''दलित देवो भव:'-कहानी

22 फरवरी 2015
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घर का सैप्टिक टैंक लबालब भर गया था .सारू का दिमाग बहुत परेशान था .कोई सफाईकर्मी नहीं मिल पा रहा था .सैप्टिक टैंक घर के भीतर ऐसी जगह पर था जहाँ से मशीन द्वारा उसकी सफाई संभव न थी .सारू को याद आया कि उसके दोस्त अजय की जानकारी में ऐसे सफाईकर्मी हैं जो सैप्टिक टैंक की सफाई का काम करते हैं .उसने अजय

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मेरी बहन बहन-तेरी बहन प्रेमिका !!!

24 फरवरी 2015
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मेरी बहन बहन ...तेरी बहन प्रेमिका !!! [google se sabhar ] लड़का लड़की ने मिलकर सोचा ''प्रेम ही सब कुछ है '' हम दोनों एक दूजे के बिना मर जायेंगे ! माता -पिता बहन-भाई ये सब क्या खाक साथ निभायेंगें ? वैसे भी हम अपनी भलाई जानते हैं इसीलिए मर्यादा ;नैतिकता; पारिवारिक निय

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''सरनेम गांधी ''

26 फरवरी 2015
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PUBLISHED IN JANVANI'S RAVIVANI -7DECEMBER2014 'पिया गांधी ...'' उपस्थिति दर्ज़ करती मैडम ने कक्षा में ज्यों ही पिया का नाम पुकारा ग्यारहवी की छात्रा पिया हल्का सा हाथ उठाकर ''यस मैडम '' कहते हुए अपनी कुर्सी से खड़ी हो गयी .सभी छात्राएं पिया की ओर द

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बेटी का हक़ -कहानी

14 मार्च 2015
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सेवानिवृत बैंक-अधिकारी आस्तिक ने तौलिये से गीला चेहरा पोंछते हुए अपनी धर्मपत्नी मंजू से कहा - 'हर दहेज़ -हत्या के जिम्मेदार ससुरालवालों से ज्यादा लड़की के मायके वाले होते हैं . तुम मेरी बात मानों या ना मानों पर सच यही है . कितनी ही विवाहित बेटियां मौत के मुंह में जाने से बच जाती यदि उनके मायके वाले

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ऐसी सुहागन से विधवा ही भली .'' -लघु- कथा

17 मार्च 2015
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ऐसी सुहागन से विधवा ही भली .'' -लघु- कथा google se sabhar पति के शव के पास बैठी ,मैली धोती के पल्लू से मुंह ढककर ,छाती पीटती ,गला फाड़कर चिल्लाती सुमन को बस्ती की अन्य महिलाएं ढाढस बंधा रही थी पल्लू के भीतर सुमन की आँखों से एक भी आंसू नहीं ब

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'' जो शहर के इश्क में दीवाने हो गए ''

20 मार्च 2015
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'' जो शहर के इश्क में दीवाने हो गए '' कस्बाई सुकून उनकी किस्मत में है कहाँ ! जो शहर के इश्क में दीवाने हो गए . ********************************************* कैसे बुज़ुर्ग दें उन औलादों को दुआ ! जो छोड़कर तन्हां बेगाने हो गए . ****************************************** दोस्ती में पड़ गयी गहरी बहु

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प्रिय की दृष्टि में प्रेयसी !

22 मार्च 2015
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पीत वसन में लगती हो तुम महारानी मधुमास की ! ओढ़ दुपट्टा रंग गुलाबी लगती कली गुलाब की ! वसन आसमानी कर धारण खिल जाता है गौर वदन ! लाल रंग के वस्त्रों में तुम दहकी लता पलाश की ! हरा रंग तो तुम पर जैसे नयी बहारें लाता है ! हरियाली पीली पड़ जाती रूप तुम्हारा देखकर ! श्वेत वसन में तुम्हें देखकर मुझको ऐ

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'दिल तो दिल है '

26 मार्च 2015
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भोला सा नाज़ुक सा दिल ये कितने सदमे झेलेगा , ग़म से भरकर फट जायेगा कितने सदमे झेलेगा ! ........................................................................... फूल से दिल पर दर्द के पत्थर कैसे वो बच पायेगा ? टुकड़े टुकड़े हो जायेगा जितने सदमे झेलेगा ! ......................................

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ख़राब लड़की -कहानी

28 मार्च 2015
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इक्कीस वर्षीय सांवली -सलोनी रेखा को उसी लड़के ने कानपुर बुलाकर क़त्ल कर दिया जिसने उससे शादी का वादा किया था . लड़के के प्रेम-जाल में फँसी रेखा न केवल क़त्ल की गयी बल्कि अपने शहर में बदनाम भी हो गयी कि वो एक ख़राब लड़की थी .कातिल लड़के के प्रति लोगों की बड़ी सहानुभूति थी कि 'रेखा ने पहले मर्यादाओं

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सबसे सुन्दर लड़का -लघु कथा

4 अप्रैल 2015
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वो खूबसूरत लड़की जब सड़क पर चलती थी तब अपने में ही खोई रहती . उसको खबर न होती कि कोई लड़का उसका पीछा कर रहा है . एक दिन एक संकरी गली में उस पीछा करने वाले लड़के ने आगे आकर उसका रास्ता रोक लिया .वो घबराई .उसकी नीली झील सी आँखों में आंसू भर आये .उसने हाथ जोड़कर कहा - ''मुझे जाने दो '' .यदि किसी ने म

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श्री राम ने क्यों लिया एक -पत्नी व्रत !

14 अप्रैल 2015
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श्री राम ने क्यों लिया एक पत्नी व्रत ?-एक विवेचन मर्यादा पुरुषोतम श्री राम का जीवन चरित युगों-युगों से सम्पूर्ण मानव-जाति के लिए अनुकरणीय रहा है .श्री राम के चरित का हर पक्ष उज्ज्वल है .एक पुत्र ,पति ,भ्राता और राजा को किन जीवन मूल्यों , आदर्शो , व् मर्यादाओं का पालन जीवन-पर्यंत करना चाहिए -व

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''कॉलेज जाना है या शादी ब्याह में !''

17 अप्रैल 2015
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''माँ मैं कौन सी पोशाक पहनूं ?'' चिया ने चहकते हुए माँ से पूछा तो माँ ने उदासीन भाव से कहा -'' कुछ भी जो शालीन हो वो पहन लो . चिया ने आर्टिफिशल ज्वेलरी दिखाते हुए माँ से पूछा -'' माँ ये माला का सैट कैसा लगेगा मुझ पर ? माँ ने उड़ती-उड़ती नज़र चिया की ज्वेलरी पर डाली और सुस्त से स्वर मे

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किसान रैली ने हिला दी मोदी सरकार

21 अप्रैल 2015
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Rahul Gandhi, Sonia Gandhi and Manmohan Singh at the kisan rally पिछले लोकसभा चुनाव [मई २०१४] में बीजेपी के हाथों भारी पराजय की चोट खाई कॉंग्रेस पार्टी १९ अप्रैल २०१५ को दिल्ली में हुई ''किसान -खेतिहर मजदूर रैली '' में पहली बार अपने पुराने रंग मे

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खोखली उदारवादिता -लघु कथा

24 अप्रैल 2015
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गौतम उदारतावादी स्वर में बोला -''लिव-इन कोई गलत व्यवस्था नहीं...आखिर कब तक वही पुराने..घिसे-पिटे सिस्टम पर समाज चलता रहेगा ..विवाह ....इससे भी क्या होता है ? गले में पट्टा डाल दिया बीवी के नाम का और मियां जी घूम रहे है इधर-उधर मुंह मारते हुए .'' सुरेश असहमति में सिर हिलाता हुआ बोला -''

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'मार झपट्टा मौत अभी खुली चुनौती आज है !'

27 अप्रैल 2015
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बेमौसम हुई बरसात ने किसानों की फसलों के साथ -साथ उनके अरमानों को तबाह कर डाला ;जिसके कारण रोज़ हमारे अन्न-दाता मौत को गले लगा रहें हैं और अचानक आये भूकम्प ने नेपाल सहित भारत के कई राज्यों में हज़ारों मासूमों की ज़िंदगी लील ली . तो क्या हम मौत के ऐसे तांडव के सामने घुटने टेक दें ? नहीं हमे मौत को ही

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''हो रही मोहब्बतें ख़ाक के सुपुर्द हैं ! ''

5 मई 2015
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पिछले शुकवार की रात [१ मई २०१५] को महाराष्ट्र से आ रहे जमातियों से बड़ौत रेलवे स्टेशन पर कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा बदसलूकी और जमातियों के पक्ष में आये सम्प्रदाय विशेष के उग्र समर्थकों द्वारा थाने व् रेलवे स्टेशन पर किये गए हिंसक प्रदर्शन ने कांधला [शामली] कसबे के अमन-चैन को तहस-नहस कर डाला . कांध

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जीवन-यात्रा

7 मई 2015
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जीवन-यात्रा मशहूर उद्योगपति की पत्नी और दो किशोर पुत्रों की माँ हेम जब भी एकांत में बैठती तब उसकी आँखों के सामने विवाह के पूर्व की घटना का एक-एक दृश्य घूमने लगता .कॉलेज में उस दिन वो सरस से आखिरी बार मिली थी .उसने सरस से कहा था कि -'' चलो भाग चलते हैं वरना मेरे पिता जी मेरा विवाह कहीं और कर देंगे

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खुदा नहीं मगर ''माँ' खुदा से कम नहीं होती !

8 मई 2015
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''हमारी हर खता को मुस्कुराकर माफ़ कर देती ; खुदा नहीं मगर ''माँ' खुदा से कम नहीं होती ! ............................................................... ''हमारी आँख में आंसू कभी आने नहीं देती ; कि माँ की गोद से बढकर कोई जन्नत नहीं होती ! ........................................................

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नारी दुर्गा है ''चिकनी -चमेली '' नहीं !

10 मई 2015
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HUU LAA PAR THIRKE KADAM नारी दुर्गा है ''चिकनी -चमेली '' नहीं ! ''हू ला ला'' पर थिरके कदम ''शीला-मुन्नी'' पर निकले है दम नैतिकता का है ये पतन दूषित हो गया अंतर्मन ओ फनकारों करो कुछ शर्म शालीन नगमों का कर लो सृजन फिर से सजा दो लबो पर हर दम वन्देमातरम .....वन्देमातरम ! नारी का मान घटाओ नहीं प्राणी

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खट्टी -मीठी यादें !

13 मई 2015
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खट्टी -मीठी यादें ! टूटे फूटे वादे ,कभी ताने और फरियादें , इनसे ही बन जाती हैं खट्टी मीठी यादें . फूलों के जैसे हँसना ,आँखों से मोती झरना , मरते मरते जीना ,कभी जीते जीते मरना , ऐसे जुड़ते जाते किस्से ये सीधे सादे .

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''खुले हाकिम की मक्कारी ''

16 मई 2015
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खुले हाक़िम की मक्कारी गिरें साज़िश की दीवारें , हमारे मुल्क की किस्मत हमारे हाथ में होंगी ! ............................................. हमारे साथ गद्दारी नहीं अब और कर सकते , हिला देंगें तेरी सत्ता के इज़्ज़त खाक में होगी ! .............................................. हमें मजबूर कहकर आग सीने

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मोदी :राष्ट्रनायक नहीं खलनायक !

19 मई 2015
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जब तक केंद्रीय सत्ता में नहीं थे ये भारत में जन्म लेने पर शर्म आती थी इन्हें ! ............................................... सत्ता में आते ही चमत्कार कर डाला भारत को तीन सौ पैंसठ दिन में विश्व की महाशक्ति बना डाला ! ................................................. एक वर्ष में तीस से

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''माँ'

22 मई 2015
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कोई बला जब हम पर आई , माँ को खुद पर लेते देखा ! हुआ हादसा साथ हमारे , माँ को बहुत तड़पते देखा ! ...................................... हो तकलीफ हमें न कोई , साँझ-सवेरे खटते देखा ! कभी नहीं संकट के आगे , हमनें माँ को झुकते देखा ! ....................................... ऊपर-नीचे अंदर-ब

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विरोध -प्रदर्शन

24 मई 2015
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शहर में हुए छोटी बच्ची के साथ बलात्कार के विरोध-प्रदर्शन हेतु विपक्षी पार्टी ने पाँच-पाँच सौ रूपये में झोपड़-पट्टी में रहने वाले परिवारों की महिलाओं को छह घंटे के लिए किराये पर लिया था . विपक्ष के पार्टी कार्यालय से पार्टी द्वारा वितरित वस्त्र धारण कर व् हाथों में बैनर लेकर , दिए गए नार

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सरोजा -कहानी

25 मई 2015
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मैंने जब से होश संभाला था तब से अपने संयुक्त परिवार में बुआ को ऐसा पाया जैसे सारी चंचलता त्याग कर गंगा मैय्या शांत भाव से बही जा रही हो . बुआ न ज्यादा बोलती और न ही आस-पड़ोस वाली औरतों के तानों का पलट कर जवाब देती .माँ और चाची ही उनके तानों पर भड़क जाती थी और ये कहकर कि ''जिस पर पड़ती है उसका

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फिर से जन्म लेकर आऊंगा !

27 मई 2015
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हुए न लक्ष्य पूर्ण किन्तु मृत्यु द्वार आ गयी , देखकर मृत्यु को हाय ! ज़िंदगी घबरा गयी , हूँ नहीं विचलित मगर मैं , मृत्यु से टकराउँगा ! लक्ष्य पूरे करने फिर से जन्म लेकर आऊंगा ! ..................................... छोड़ दूंगा प्राण पर प्रण नहीं तोड़ूँगा मैं , अपनी लक्ष्य-प्राप्ति से मुंह नहीं म

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मैं नहीं लिखता कोई मुझसे लिखाता है !

2 जून 2015
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मैं नहीं लिखता ; कोई मुझसे लिखाता है ! कौन है जो भाव बन ; उर में समाता है ! .................................... कौंध जाती बुद्धि- नभ में विचार -श्रृंखला दामिनी , तब रची जाती है कोई रम्य-रचना कामिनी , प्रेरणा बन कर कोई ये सब कराता है ! मैं नहीं लिखता ; कोई मुझसे लिखता है ! ........................

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बदनाम रानियां -कहानी

6 जून 2015
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बगल में बस की सीट पर बैठी खूबसूरत युवती द्वारा मोबाइल पर की जा रही बातचीत से मैं इस नतीजे पर पहुँच चूका था कि ये ज़िस्म फ़रोशी का धंधा करती है .एक रात के पैसे वो ऐसे तय कर रही थी जैसे हम सेकेंड हैण्ड स्कूटर के लिए भाव लगा रहे हो .टाइट जींस व् डीप नेक की झीनी कुर्ती में उसके ज़िस्म का उभरा हुआ हर अंग

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सबसे सुन्दर प्रिया !

8 जून 2015
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गुलाबी फूल हरी बेल पर अत्याधिक आकर्षक ! ................................. ओस की बूँदें हरे पत्तों पर अत्याधिक मोहक ! ................................. जल की फुहार चमकती हुई धुप में अत्याधिक उज्ज्वल ! .................................. लेकिन सबसे सुन्दर तुम हो प्रिया गाम्भीर्य लिए चंचल ! शिखा कौशि

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बलात्कारी..पति ?-कहानी

11 जून 2015
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पंचायत अपना फैसला सुना चुकी थी .नीला के बापू -अम्मा , छोटे भाई-बहन बिरादरी के आगे घुटने टेककर पंचायत का निर्णय मानने को विवश हो चुके थे .निर्णय की जानकारी होते ही नीला ने उस बंद -दमघोंटू कोठरी की दीवार पर अपना सिर दे मारा था और फिर तड़प उठी थी उसके असहनीय दर्द से .चार दिन पहले तक उसका जीवन कितनी आ

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पितृ सत्ता के समक्ष लो राम गया हार !

17 जून 2015
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पितृ सत्ता के समक्ष लो राम गया हार ! भूतल में समाई सिया उर कर रहा धिक्कार देवी अहिल्या को लौटाया नारी का सम्मान अपनी सिया का साथ न दे पाया किन्तु राम है वज्र सम ह्रदय मेरा करता हूँ मैं स्वीकार ! पितृ सत्ता के समक्ष ........ वध किया अनाचारी का बालि हो या रावण नारी को म

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फहरती रहे फहरती रहे सनातन धर्म पताका !

19 जून 2015
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[youtube]http://www.youtube.com/watch?v=9rNvtLoP1zY[/youtube] फहरती रहे फहरती रहे सनातन धर्म पताका ! करती रहे करती रहे कल्याण मानवता का ! भगवा रंग पताका लगती हम सबको मनभावन , भक्ति रस उर में भर देती निर्मल है अति पावन , मध्य में अंकित ॐ का दर्

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समर -भूमि से वीर नहीं करते हैं कभी पलायन !

21 जून 2015
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घाव लगें जितनें भी तन पर कहलाते आभूषण , वीर का लक्ष्य करो शीघ्र ही शत्रु -दल का मर्दन , अडिग -अटल हो करते रहते युद्ध -धर्म का पालन , समर -भूमि से वीर नहीं करते हैं कभी पलायन ! ................................................................ युद्ध सदा लड़ते हैं योद्धा बुद्धि -बाहु बल से ,

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मानस के रचनाकार में भी पुरुष अहम् भारी

24 जून 2015
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सात कांड में रची तुलसी ने ' मानस ' ; आठवाँ लिखने का क्यों कर न सके साहस ? आठवे में लिखा जाता सिया का विद्रोह ; पर त्यागते कैसे श्री राम यश का मोह ? लिखते अगर तुलसी सिया का वनवास ; घटती राम-महिमा उनको था विश्वास . अग्नि परीक्षा और शुचिता प्रमाणन ; पूर्ण कहाँ इनके बिना होती

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वो लड़की.... रौद दी जाती है अस्मत जिसकी

27 जून 2015
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वो लड़की रौंद दी जाती है अस्मत जिसकी , करती है नफरत अपने ही वजूद से जिंदगी हो जाती है बदतर उसकी मौत से . वो लड़की रौद दी जाती है अस्मत जिसकी , घिन्न आती है उसे अपने ही जिस्म से , नहीं चाहती करना अपनों का सामना , वहशियत की शिकार बनकर लाचार घबरा जाती है हल्की सी आहट से .

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वैदेही सोच रही मन में

3 जुलाई 2015
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वैदेही सोच रही मन में यदि प्रभु यहाँ मेरे होते !! वैदेही सोच रही मन में यदि प्रभु यहाँ मेरे होते , लव-कुश की बाल -लीलाओं का आनंद प्रभु संग में लेते . जब प्रभु बुलाते लव -कुश को आओ पुत्रों समीप जरा , घुटने के बल चलकर जाते हर्षित हो जाता ह्रदय मेरा , फैलाकर बांहों का घेरा लव

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शुभकामनाओं की प्रबल आकांक्षा है !

10 जुलाई 2015
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मेरी लघु-कथाओं का प्रथम संग्रह अंजुमन प्रकाशन [इलाहाबाद ] से शीघ्र ही प्रकाशित हो रहा है .आप सभी की शुभकामनाओं की प्रबल आकांक्षा है ! https://www.facebook.com/anjumanpublication?pnref=lhc -डॉ. शिखा कौशिक 'नूतन'

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वो भरे हुंकार तो वसुधा भी थर-थर कांपती !

16 जुलाई 2015
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शोषणों की आग जब रक्त को उबालती , शंख लेकर हाथ में वो फूंक देता क्रांति , उसको साधारण समझना है भयानक भ्रान्ति , वो भरे हुंकार तो वसुधा भी थर-थर कांपती ! ........................................................................ हम सामान्य -जन समक्ष श्री राम का आदर्श है , एक वनवासी कुचलता लंकेश का मह

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मानस के रचनाकार में भी पुरुष अहम् भारी

24 जून 2015
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सात कांड में रची तुलसी ने ' मानस ' ; आठवाँ लिखने का क्यों कर न सके साहस ? आठवे में लिखा जाता सिया का विद्रोह ; पर त्यागते कैसे श्री राम यश का मोह ? लिखते अगर तुलसी सिया का वनवास ; घटती राम-महिमा उनको था विश्वास . अग्नि परीक्षा और शुचिता प्रमाणन ; पूर्ण कहाँ इनके बिना होती

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मैं ऐसे मित्र नहीं चाहता !

27 मार्च 2016
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देख दुःखों में डूबा मुझको ;जिनके उर आनंद मनें ,किन्तु मेरे रह समीप ;मेरे जो हमदर्द बनें ,ढोंग मित्रता का किंचिंत ऐसा न मुझको भाता !मैं ऐसे मित्र नहीं चाहता ! सुन्दर -मँहगे उपहारों से ;भर दें जो झोली मेरी ,,पर संकट के क्षण में जो ;आने में करते देरी ,तुम्हीं बताओ कैसे रखूँ उनसे मैं नेह का नाता !मैं ऐस

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