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सरोजा -कहानी

25 मई 2015

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मैंने जब से होश संभाला था तब से अपने संयुक्त परिवार में बुआ को ऐसा पाया जैसे सारी चंचलता त्याग कर गंगा मैय्या शांत भाव से बही जा रही हो . बुआ न ज्यादा बोलती और न ही आस-पड़ोस वाली औरतों के तानों का पलट कर जवाब देती .माँ और चाची ही उनके तानों पर भड़क जाती थी और ये कहकर कि ''जिस पर पड़ती है उसका दिल ही जानता है .'' उनकी जुबानों पर ताला लगा देती .बुआ को केवल तब मुस्कुराते देखा जब पिता जी उनकी बचपन की शरारतों का जिक्र करते .माँ बताती जब मैं पैदा हुई तब बुआ ने हाई-स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की थी .बस उसके बाद से ही पिता जी को उनके विवाह की चिंता सताने लगी थी क्योंकि दादा-दादी तो पहले ही स्वर्ग सिधार चुके थे .एक -डेढ़ साल में जाकर रिश्ता तय हो पाया था .विवाह में पिता जी ने अपनी हैसियत के अनुसार खर्च किया था पर विवाह के एक साल बाद तक जब गौना न हुआ तो सारी बिरादरी में बुआ को लेकर अनर्गल बातें शुरू हो गयी .पिता जी बुआ के ससुराल गए और सारी स्थिति से उन लोगों को परिचित कराया .फूफा के बड़े भाई साहब ने बताया कि फूफा तो विवाह करना ही नहीं चाहते थे .वे तो जन-सेवा को ही अपने जीवन का उद्देश्य मानते हैं. विवाह तो घर वालों के दबाव में आकर कर लिया पर अब बुआ को वहां बुलाये जाने के पक्ष में नहीं हैं .खैर पिता जी के जोर देने पर उन्होंने बुआ को वहां बुलवा लेने का आश्वासन दिया .पिता जी ने घर आकर जब सारी स्थिति बतलाई उस दिन से बुआ का मान इस संयुक्त परिवार में मानों घट ही गया . माँ-पिता जी भले ही बुआ को कितना भरोसा दिला देते कि तुम हमारे लिए वही 'सरोजा' हो जो विवाह से पूर्व थी पर बुआ जानती थी कि विवाहित लड़की का पीहर में रहना उसकी गरिमा कम कर देता है .न केवल समाज की दृष्टि में वरन स्वयं उस लड़की की खुद की नज़रों में भी .एक अनजाना अपराध-बोध उसे घेर लेता है कि वो भाई-भाभी पर एक बोझ बन गयी है .उसके कारण पूरा परिवार समाज में नीची दृष्टि से देखा जा रहा है . बहरहाल बुआ के जेठ जी ने अपना कहा निभाया और विवाह के करीब ढाई साल बाद बुआ की विदाई हो पाई .अभी बुआ को ससुराल गए तीन महीने भी नहीं हुए थे कि एक दिन उनके जेठ जी अचानक हमारे घर आ पधारे .उनके चेहरे पर मायूसी थी .पिता जी से हाथ जोड़कर बोले -'' माफ़ी चाहता हूँ पर मेरे छोटे भाई पर अब मेरा बस नहीं .कहता है या तो यह रहेगी यहाँ पर या मैं . अपने विवाह को मात्र औचारिकता की संज्ञा देता है .बहुत समझाया पर मानता ही नहीं .आप अपनी बिटिया को यहीं ले आये .मैं नहीं चाहता कि वो घुट-घुट कर वहां रहे .वो तो गाय है .एक शब्द भी नहीं बोलती पति के खिलाफ.... पर मैं समझता हूँ .'' उनकी बात पर चाचा भड़क गए थे और लाल-पीले होते हुए बोले थे -'' भाई जी ! पगला गए हैं क्या दामाद जी ?सात-फेरे लेकर हमारी सरोजा को जो जीवन भर साथ निभाने के सात वचन दिए थे उनका कोई मोल नहीं ..कहते हैं औपचारिकता मात्र था विवाह !!!हमारी सरोजा के जीवन के साथ ऐसा खिलवाड़ कैसे कर सकते हैं वे ? जन-सेवा तो गांधी जी ने भी की थी पर कस्तूरबा जी को त्याग तो नहीं दिया था !'' पिता जी बेबस होते हुए बोले थे -'' चुप हो जा छोटे ..ईश्वर की यही मर्ज़ी है तो ले आते हैं अपनी सरोजा को यही !'' बुआ बुझे दिल से वापस आ तो गयी थी पर फूफा की कोई बुराई करे उनके सामने ये उन्हें कभी अच्छा नहीं लगा .हर करवा-चौथ पर व्रत रखती और फूफा का फोटो देखकर व्रत खोल लेती .आस-पड़ोस की महिलाएं व्यंग्य करती -''ये कैसी सुहागन हैं !'' तो चुपचाप अपने कमरे में चली जाती .पिता जी अपने को जिम्मेदार मानते बुआ के दुखी जीवन के लिए तो बस इतना कहती -'' भाई जी आपने तो अच्छा देखकर ही चुना होगा इन्हें ..ये तो मेरे पूर्व-जन्म के कर्म हैं जो इनकी सेवा का सुख न मिला .'' चाचा के जोर देने पर बुआ ने आगे की पढाई पूरी की और प्राथमिक-विद्यालय में शिक्षिका लग गयी . मेरे बाद जब भाई पैदा हुआ तो माँ ने बुआ की गोद में देते हुए कहा था -'' ये तेरा ही बालक है ...इच्छा तो ये थी कि तेरे बालकों को खिलावे पर भगवान की मर्ज़ी !'' बुआ ने बाँहों में भाई को लेते हुए उसका माथा चूम लिया था और उनकी आँखें नम हो गयी थी मानों बरसों से सूखी जमीन पर बरखा की कुछ बूंदे टपक गयी हो ..कितने कठोर ह्रदय थे फूफा जिन्होंने बुआ की इच्छाओं-अभिलाषाओं को निर्ममता से कुचल डाला था अपने कथित जन-सेवा के संकल्प रुपी पत्थरों से . अख़बारों से ज्ञात हुआ कि फूफा एम.एल.ए का चुनाव लड़ेंगें .अखबार मेज पर पटकते हुए चाचा बोले थे -''इस सब के लिए ही तो सरोजा को वनवासिनी बना डाला दामाद जी ने !'' आग तो पिता जी के मन में भी लगी थी जब उनके मित्र रामेश्वर बाबू ने बताया था कि '' दामाद जी ने नामांकन -पत्र में 'वैवाहिक-स्थिति का कॉलम व् पत्नी के नाम का कॉलम '' खाली छोड़ दिया है .'' बुआ को पता चला तो गंभीर भावों के साथ अपने कमरे में चली गयी जैसे अग्नि-परीक्षा देने के लिए माता सीता अग्नि में प्रवेश कर रही हो .पिता जी ने मुझे व् भाई को पीछे भेजा था .दस वर्षीय भाई ने जाते ही बुआ से पूछा था -'' बुआ फूफा जी को पकड़ कर लाऊँ क्या यहाँ ?'' बुआ उसके सिर पर स्नेह से हाथ फेरते हुए बोली थी -'' इतनी परवाह करता है बुआ की ..मेरा होता तो ..!'' ये कहते-कहते बुआ रो पड़ी थी और मैं व् भाई उनसे लिपट कर तब तक रोते रहे थे जब तक वे ही चुप नहीं हो गयी थी . फूफा एम.एल.ए. बनें ,फिर सी.एम. बने पर बुआ का नाम अपने साथ नहीं जोड़ा .मेरे विवाह पर अपने गहने माँ को थमाते हुए बुआ ने कहा था -'' भाई जी ने बड़े स्नेह से बनवाए थे पर मेरे किसी काम न आ सके ...संध्या पहनेगी तो लगेगा जैसे मैं ही नए रूप में सज-संवर रही हूँ .'' माँ की रुलाई छूट गयी थी और चाची की आँखें भी भर आई थी .माँ हाथ जोड़कर बुआ के सामने काफी देर खड़ी रही थी और बुआ ने उन्हें गले लगा लिया था . मेरी विदाई पर बुआ ने बस इतना कहा था -'' ससुराल में धीरज से काम लेना .ससुराल में बसने का सुख सबको नहीं मिलता लाडो .'' ससुराल में रचते-बसते दो साल कब बीत गए पता ही नहीं चला .एक दिन न्यूज चैनल पर देखा कि फूफा की पार्टी ने उन्हें पी.एम. पद का उम्मीदवार बनाया .फूफा को मुस्कुराकर फूलों की मालाएं पहनते देखकर दिल कड़वा हो गया और आँखें बंद करते ही दिखा ''जैसे बुआ कंटक पथ पर नग्न पग अकेली बढ़ी जा रही है .' एम.पी. का चुनाव लड़ने के लिए ,चुनाव-आयोग के कड़े निर्देशों के कारण इस बार फूफा ने बुआ का नाम ''नामांकन -पत्र के पत्नी के कॉलम '' में भरा तो दुनिया भर की मीडिया ने हमारे घर को घेर लिया .पिता जी ने यह कहकर कि -'' फूफा को पी.एम. बनाने की आस लिए बुआ चार-धाम की यात्रा पर चली गयी हैं '' मीडिया से पीछा छुडाया .जबकि हम सभी जानते थे कि शिक्षिका के पद से रिटायर्ड हो चुकी बुआ के चार-धाम तो उनका वही कमरा है जिसमे भगवान के अतिरिक्त यदि कोई फोटो है तो फूफा का ही है .बुआ ने तो अग्नि के चारों ओर लिए गए सातों वचन व् सातों फेरों का बंधन बखूबी निभाया पर फूफा ने एक कदम भी चलना मुनासिब न समझा . शिखा कौशिक 'नूतन'
ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

अति सुन्दर लेखन और बहुत अच्छी कहानी...बधाई !

10 जून 2015

शब्दनगरी संगठन

शब्दनगरी संगठन

शिखा जी, अति सुन्दर लेखन और बहुत अच्छी कहानी...धन्यवाद !

26 मई 2015

पुष्पा पी. परजिया

पुष्पा पी. परजिया

काश उस सन्नारिको साथ लेकर देश सेवा की होती ... काश उसके दर्दको समझा होता ....

25 मई 2015

शालिनी कौशिक एडवोकेट

शालिनी कौशिक एडवोकेट

jashoda ben ke charitr ka yatharth hi prastut kar diya hai aapne .

25 मई 2015

विजय कुमार शर्मा

विजय कुमार शर्मा

बहुत अच्छा विषय है । कहानी बिल्कुल वर्तमान प्रधानमंत्री के जीवन से मेल खाती है

25 मई 2015

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औरत होने की कैसी सजा रे ?

25 जनवरी 2015
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धुँधला धुँधला है सारा जहां रे , औरत होने की कैसी सजा रे ? दिल के सब अरमां धूं -धूं कर जलते , घूँघट के भीतर कितना धुँआ रे ! .................................. कैसी ले किस्मत दुनिया में आती , खिलने से पहले ही ये है मुरझाती , ये तो हंसकर है सब कुछ सह जाती , अपने आंसू भी खुद ही पी जाती , इसको लगी किसकी

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कन्या-दान -कहानी

29 जनवरी 2015
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PUBLISHED IN ' NATIONAL DUNIYA '' NEWS PAPER ON 23 NOVEMBER 2014 ''नीहारिका का कन्यादान मैं और सीमा नहीं बल्कि तुम और सविता करोगे क्योंकि तुम दोनों को ही नैतिक रूप से ये अधिकार है .'' सागर के ये कहते ही समर ने उसकी ओर आश्चर्य से देखा और हड़बड़ाते हुए

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पाप-पुण्य की कसौटी -एक लघु कथा

16 फरवरी 2015
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पाप-पुण्य की कसौटी -एक लघु कथा प्रभात के घर आज गुरुदेव आने वाले थे .गुरुदेव का सम्मान प्रभात का पूरा परिवार करता है .गुरुदेव ने ज्यों ही उनके मुख्य द्वार पर अपने चरण कमल रखे तभी वहीँ पास में बैठा प्रभात का पालतू कुत्ता बुलेट उन पर जोर जोर से भौकने लगा .गुरुदेव के उज्जवल मस्तक पर क्षण

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''दलित देवो भव:'-कहानी

22 फरवरी 2015
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घर का सैप्टिक टैंक लबालब भर गया था .सारू का दिमाग बहुत परेशान था .कोई सफाईकर्मी नहीं मिल पा रहा था .सैप्टिक टैंक घर के भीतर ऐसी जगह पर था जहाँ से मशीन द्वारा उसकी सफाई संभव न थी .सारू को याद आया कि उसके दोस्त अजय की जानकारी में ऐसे सफाईकर्मी हैं जो सैप्टिक टैंक की सफाई का काम करते हैं .उसने अजय

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मेरी बहन बहन-तेरी बहन प्रेमिका !!!

24 फरवरी 2015
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मेरी बहन बहन ...तेरी बहन प्रेमिका !!! [google se sabhar ] लड़का लड़की ने मिलकर सोचा ''प्रेम ही सब कुछ है '' हम दोनों एक दूजे के बिना मर जायेंगे ! माता -पिता बहन-भाई ये सब क्या खाक साथ निभायेंगें ? वैसे भी हम अपनी भलाई जानते हैं इसीलिए मर्यादा ;नैतिकता; पारिवारिक निय

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''सरनेम गांधी ''

26 फरवरी 2015
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PUBLISHED IN JANVANI'S RAVIVANI -7DECEMBER2014 'पिया गांधी ...'' उपस्थिति दर्ज़ करती मैडम ने कक्षा में ज्यों ही पिया का नाम पुकारा ग्यारहवी की छात्रा पिया हल्का सा हाथ उठाकर ''यस मैडम '' कहते हुए अपनी कुर्सी से खड़ी हो गयी .सभी छात्राएं पिया की ओर द

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बेटी का हक़ -कहानी

14 मार्च 2015
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सेवानिवृत बैंक-अधिकारी आस्तिक ने तौलिये से गीला चेहरा पोंछते हुए अपनी धर्मपत्नी मंजू से कहा - 'हर दहेज़ -हत्या के जिम्मेदार ससुरालवालों से ज्यादा लड़की के मायके वाले होते हैं . तुम मेरी बात मानों या ना मानों पर सच यही है . कितनी ही विवाहित बेटियां मौत के मुंह में जाने से बच जाती यदि उनके मायके वाले

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ऐसी सुहागन से विधवा ही भली .'' -लघु- कथा

17 मार्च 2015
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ऐसी सुहागन से विधवा ही भली .'' -लघु- कथा google se sabhar पति के शव के पास बैठी ,मैली धोती के पल्लू से मुंह ढककर ,छाती पीटती ,गला फाड़कर चिल्लाती सुमन को बस्ती की अन्य महिलाएं ढाढस बंधा रही थी पल्लू के भीतर सुमन की आँखों से एक भी आंसू नहीं ब

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'' जो शहर के इश्क में दीवाने हो गए ''

20 मार्च 2015
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'' जो शहर के इश्क में दीवाने हो गए '' कस्बाई सुकून उनकी किस्मत में है कहाँ ! जो शहर के इश्क में दीवाने हो गए . ********************************************* कैसे बुज़ुर्ग दें उन औलादों को दुआ ! जो छोड़कर तन्हां बेगाने हो गए . ****************************************** दोस्ती में पड़ गयी गहरी बहु

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प्रिय की दृष्टि में प्रेयसी !

22 मार्च 2015
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पीत वसन में लगती हो तुम महारानी मधुमास की ! ओढ़ दुपट्टा रंग गुलाबी लगती कली गुलाब की ! वसन आसमानी कर धारण खिल जाता है गौर वदन ! लाल रंग के वस्त्रों में तुम दहकी लता पलाश की ! हरा रंग तो तुम पर जैसे नयी बहारें लाता है ! हरियाली पीली पड़ जाती रूप तुम्हारा देखकर ! श्वेत वसन में तुम्हें देखकर मुझको ऐ

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'दिल तो दिल है '

26 मार्च 2015
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भोला सा नाज़ुक सा दिल ये कितने सदमे झेलेगा , ग़म से भरकर फट जायेगा कितने सदमे झेलेगा ! ........................................................................... फूल से दिल पर दर्द के पत्थर कैसे वो बच पायेगा ? टुकड़े टुकड़े हो जायेगा जितने सदमे झेलेगा ! ......................................

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ख़राब लड़की -कहानी

28 मार्च 2015
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इक्कीस वर्षीय सांवली -सलोनी रेखा को उसी लड़के ने कानपुर बुलाकर क़त्ल कर दिया जिसने उससे शादी का वादा किया था . लड़के के प्रेम-जाल में फँसी रेखा न केवल क़त्ल की गयी बल्कि अपने शहर में बदनाम भी हो गयी कि वो एक ख़राब लड़की थी .कातिल लड़के के प्रति लोगों की बड़ी सहानुभूति थी कि 'रेखा ने पहले मर्यादाओं

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सबसे सुन्दर लड़का -लघु कथा

4 अप्रैल 2015
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वो खूबसूरत लड़की जब सड़क पर चलती थी तब अपने में ही खोई रहती . उसको खबर न होती कि कोई लड़का उसका पीछा कर रहा है . एक दिन एक संकरी गली में उस पीछा करने वाले लड़के ने आगे आकर उसका रास्ता रोक लिया .वो घबराई .उसकी नीली झील सी आँखों में आंसू भर आये .उसने हाथ जोड़कर कहा - ''मुझे जाने दो '' .यदि किसी ने म

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श्री राम ने क्यों लिया एक -पत्नी व्रत !

14 अप्रैल 2015
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श्री राम ने क्यों लिया एक पत्नी व्रत ?-एक विवेचन मर्यादा पुरुषोतम श्री राम का जीवन चरित युगों-युगों से सम्पूर्ण मानव-जाति के लिए अनुकरणीय रहा है .श्री राम के चरित का हर पक्ष उज्ज्वल है .एक पुत्र ,पति ,भ्राता और राजा को किन जीवन मूल्यों , आदर्शो , व् मर्यादाओं का पालन जीवन-पर्यंत करना चाहिए -व

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''कॉलेज जाना है या शादी ब्याह में !''

17 अप्रैल 2015
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''माँ मैं कौन सी पोशाक पहनूं ?'' चिया ने चहकते हुए माँ से पूछा तो माँ ने उदासीन भाव से कहा -'' कुछ भी जो शालीन हो वो पहन लो . चिया ने आर्टिफिशल ज्वेलरी दिखाते हुए माँ से पूछा -'' माँ ये माला का सैट कैसा लगेगा मुझ पर ? माँ ने उड़ती-उड़ती नज़र चिया की ज्वेलरी पर डाली और सुस्त से स्वर मे

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किसान रैली ने हिला दी मोदी सरकार

21 अप्रैल 2015
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Rahul Gandhi, Sonia Gandhi and Manmohan Singh at the kisan rally पिछले लोकसभा चुनाव [मई २०१४] में बीजेपी के हाथों भारी पराजय की चोट खाई कॉंग्रेस पार्टी १९ अप्रैल २०१५ को दिल्ली में हुई ''किसान -खेतिहर मजदूर रैली '' में पहली बार अपने पुराने रंग मे

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खोखली उदारवादिता -लघु कथा

24 अप्रैल 2015
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गौतम उदारतावादी स्वर में बोला -''लिव-इन कोई गलत व्यवस्था नहीं...आखिर कब तक वही पुराने..घिसे-पिटे सिस्टम पर समाज चलता रहेगा ..विवाह ....इससे भी क्या होता है ? गले में पट्टा डाल दिया बीवी के नाम का और मियां जी घूम रहे है इधर-उधर मुंह मारते हुए .'' सुरेश असहमति में सिर हिलाता हुआ बोला -''

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'मार झपट्टा मौत अभी खुली चुनौती आज है !'

27 अप्रैल 2015
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बेमौसम हुई बरसात ने किसानों की फसलों के साथ -साथ उनके अरमानों को तबाह कर डाला ;जिसके कारण रोज़ हमारे अन्न-दाता मौत को गले लगा रहें हैं और अचानक आये भूकम्प ने नेपाल सहित भारत के कई राज्यों में हज़ारों मासूमों की ज़िंदगी लील ली . तो क्या हम मौत के ऐसे तांडव के सामने घुटने टेक दें ? नहीं हमे मौत को ही

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''हो रही मोहब्बतें ख़ाक के सुपुर्द हैं ! ''

5 मई 2015
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पिछले शुकवार की रात [१ मई २०१५] को महाराष्ट्र से आ रहे जमातियों से बड़ौत रेलवे स्टेशन पर कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा बदसलूकी और जमातियों के पक्ष में आये सम्प्रदाय विशेष के उग्र समर्थकों द्वारा थाने व् रेलवे स्टेशन पर किये गए हिंसक प्रदर्शन ने कांधला [शामली] कसबे के अमन-चैन को तहस-नहस कर डाला . कांध

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जीवन-यात्रा

7 मई 2015
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जीवन-यात्रा मशहूर उद्योगपति की पत्नी और दो किशोर पुत्रों की माँ हेम जब भी एकांत में बैठती तब उसकी आँखों के सामने विवाह के पूर्व की घटना का एक-एक दृश्य घूमने लगता .कॉलेज में उस दिन वो सरस से आखिरी बार मिली थी .उसने सरस से कहा था कि -'' चलो भाग चलते हैं वरना मेरे पिता जी मेरा विवाह कहीं और कर देंगे

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खुदा नहीं मगर ''माँ' खुदा से कम नहीं होती !

8 मई 2015
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''हमारी हर खता को मुस्कुराकर माफ़ कर देती ; खुदा नहीं मगर ''माँ' खुदा से कम नहीं होती ! ............................................................... ''हमारी आँख में आंसू कभी आने नहीं देती ; कि माँ की गोद से बढकर कोई जन्नत नहीं होती ! ........................................................

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नारी दुर्गा है ''चिकनी -चमेली '' नहीं !

10 मई 2015
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HUU LAA PAR THIRKE KADAM नारी दुर्गा है ''चिकनी -चमेली '' नहीं ! ''हू ला ला'' पर थिरके कदम ''शीला-मुन्नी'' पर निकले है दम नैतिकता का है ये पतन दूषित हो गया अंतर्मन ओ फनकारों करो कुछ शर्म शालीन नगमों का कर लो सृजन फिर से सजा दो लबो पर हर दम वन्देमातरम .....वन्देमातरम ! नारी का मान घटाओ नहीं प्राणी

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खट्टी -मीठी यादें !

13 मई 2015
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खट्टी -मीठी यादें ! टूटे फूटे वादे ,कभी ताने और फरियादें , इनसे ही बन जाती हैं खट्टी मीठी यादें . फूलों के जैसे हँसना ,आँखों से मोती झरना , मरते मरते जीना ,कभी जीते जीते मरना , ऐसे जुड़ते जाते किस्से ये सीधे सादे .

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''खुले हाकिम की मक्कारी ''

16 मई 2015
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खुले हाक़िम की मक्कारी गिरें साज़िश की दीवारें , हमारे मुल्क की किस्मत हमारे हाथ में होंगी ! ............................................. हमारे साथ गद्दारी नहीं अब और कर सकते , हिला देंगें तेरी सत्ता के इज़्ज़त खाक में होगी ! .............................................. हमें मजबूर कहकर आग सीने

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मोदी :राष्ट्रनायक नहीं खलनायक !

19 मई 2015
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जब तक केंद्रीय सत्ता में नहीं थे ये भारत में जन्म लेने पर शर्म आती थी इन्हें ! ............................................... सत्ता में आते ही चमत्कार कर डाला भारत को तीन सौ पैंसठ दिन में विश्व की महाशक्ति बना डाला ! ................................................. एक वर्ष में तीस से

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''माँ'

22 मई 2015
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कोई बला जब हम पर आई , माँ को खुद पर लेते देखा ! हुआ हादसा साथ हमारे , माँ को बहुत तड़पते देखा ! ...................................... हो तकलीफ हमें न कोई , साँझ-सवेरे खटते देखा ! कभी नहीं संकट के आगे , हमनें माँ को झुकते देखा ! ....................................... ऊपर-नीचे अंदर-ब

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विरोध -प्रदर्शन

24 मई 2015
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शहर में हुए छोटी बच्ची के साथ बलात्कार के विरोध-प्रदर्शन हेतु विपक्षी पार्टी ने पाँच-पाँच सौ रूपये में झोपड़-पट्टी में रहने वाले परिवारों की महिलाओं को छह घंटे के लिए किराये पर लिया था . विपक्ष के पार्टी कार्यालय से पार्टी द्वारा वितरित वस्त्र धारण कर व् हाथों में बैनर लेकर , दिए गए नार

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सरोजा -कहानी

25 मई 2015
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मैंने जब से होश संभाला था तब से अपने संयुक्त परिवार में बुआ को ऐसा पाया जैसे सारी चंचलता त्याग कर गंगा मैय्या शांत भाव से बही जा रही हो . बुआ न ज्यादा बोलती और न ही आस-पड़ोस वाली औरतों के तानों का पलट कर जवाब देती .माँ और चाची ही उनके तानों पर भड़क जाती थी और ये कहकर कि ''जिस पर पड़ती है उसका

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फिर से जन्म लेकर आऊंगा !

27 मई 2015
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हुए न लक्ष्य पूर्ण किन्तु मृत्यु द्वार आ गयी , देखकर मृत्यु को हाय ! ज़िंदगी घबरा गयी , हूँ नहीं विचलित मगर मैं , मृत्यु से टकराउँगा ! लक्ष्य पूरे करने फिर से जन्म लेकर आऊंगा ! ..................................... छोड़ दूंगा प्राण पर प्रण नहीं तोड़ूँगा मैं , अपनी लक्ष्य-प्राप्ति से मुंह नहीं म

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मैं नहीं लिखता कोई मुझसे लिखाता है !

2 जून 2015
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मैं नहीं लिखता ; कोई मुझसे लिखाता है ! कौन है जो भाव बन ; उर में समाता है ! .................................... कौंध जाती बुद्धि- नभ में विचार -श्रृंखला दामिनी , तब रची जाती है कोई रम्य-रचना कामिनी , प्रेरणा बन कर कोई ये सब कराता है ! मैं नहीं लिखता ; कोई मुझसे लिखता है ! ........................

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बदनाम रानियां -कहानी

6 जून 2015
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बगल में बस की सीट पर बैठी खूबसूरत युवती द्वारा मोबाइल पर की जा रही बातचीत से मैं इस नतीजे पर पहुँच चूका था कि ये ज़िस्म फ़रोशी का धंधा करती है .एक रात के पैसे वो ऐसे तय कर रही थी जैसे हम सेकेंड हैण्ड स्कूटर के लिए भाव लगा रहे हो .टाइट जींस व् डीप नेक की झीनी कुर्ती में उसके ज़िस्म का उभरा हुआ हर अंग

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सबसे सुन्दर प्रिया !

8 जून 2015
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गुलाबी फूल हरी बेल पर अत्याधिक आकर्षक ! ................................. ओस की बूँदें हरे पत्तों पर अत्याधिक मोहक ! ................................. जल की फुहार चमकती हुई धुप में अत्याधिक उज्ज्वल ! .................................. लेकिन सबसे सुन्दर तुम हो प्रिया गाम्भीर्य लिए चंचल ! शिखा कौशि

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बलात्कारी..पति ?-कहानी

11 जून 2015
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पंचायत अपना फैसला सुना चुकी थी .नीला के बापू -अम्मा , छोटे भाई-बहन बिरादरी के आगे घुटने टेककर पंचायत का निर्णय मानने को विवश हो चुके थे .निर्णय की जानकारी होते ही नीला ने उस बंद -दमघोंटू कोठरी की दीवार पर अपना सिर दे मारा था और फिर तड़प उठी थी उसके असहनीय दर्द से .चार दिन पहले तक उसका जीवन कितनी आ

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पितृ सत्ता के समक्ष लो राम गया हार !

17 जून 2015
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पितृ सत्ता के समक्ष लो राम गया हार ! भूतल में समाई सिया उर कर रहा धिक्कार देवी अहिल्या को लौटाया नारी का सम्मान अपनी सिया का साथ न दे पाया किन्तु राम है वज्र सम ह्रदय मेरा करता हूँ मैं स्वीकार ! पितृ सत्ता के समक्ष ........ वध किया अनाचारी का बालि हो या रावण नारी को म

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फहरती रहे फहरती रहे सनातन धर्म पताका !

19 जून 2015
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[youtube]http://www.youtube.com/watch?v=9rNvtLoP1zY[/youtube] फहरती रहे फहरती रहे सनातन धर्म पताका ! करती रहे करती रहे कल्याण मानवता का ! भगवा रंग पताका लगती हम सबको मनभावन , भक्ति रस उर में भर देती निर्मल है अति पावन , मध्य में अंकित ॐ का दर्

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समर -भूमि से वीर नहीं करते हैं कभी पलायन !

21 जून 2015
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घाव लगें जितनें भी तन पर कहलाते आभूषण , वीर का लक्ष्य करो शीघ्र ही शत्रु -दल का मर्दन , अडिग -अटल हो करते रहते युद्ध -धर्म का पालन , समर -भूमि से वीर नहीं करते हैं कभी पलायन ! ................................................................ युद्ध सदा लड़ते हैं योद्धा बुद्धि -बाहु बल से ,

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मानस के रचनाकार में भी पुरुष अहम् भारी

24 जून 2015
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सात कांड में रची तुलसी ने ' मानस ' ; आठवाँ लिखने का क्यों कर न सके साहस ? आठवे में लिखा जाता सिया का विद्रोह ; पर त्यागते कैसे श्री राम यश का मोह ? लिखते अगर तुलसी सिया का वनवास ; घटती राम-महिमा उनको था विश्वास . अग्नि परीक्षा और शुचिता प्रमाणन ; पूर्ण कहाँ इनके बिना होती

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वो लड़की.... रौद दी जाती है अस्मत जिसकी

27 जून 2015
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वो लड़की रौंद दी जाती है अस्मत जिसकी , करती है नफरत अपने ही वजूद से जिंदगी हो जाती है बदतर उसकी मौत से . वो लड़की रौद दी जाती है अस्मत जिसकी , घिन्न आती है उसे अपने ही जिस्म से , नहीं चाहती करना अपनों का सामना , वहशियत की शिकार बनकर लाचार घबरा जाती है हल्की सी आहट से .

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वैदेही सोच रही मन में

3 जुलाई 2015
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वैदेही सोच रही मन में यदि प्रभु यहाँ मेरे होते !! वैदेही सोच रही मन में यदि प्रभु यहाँ मेरे होते , लव-कुश की बाल -लीलाओं का आनंद प्रभु संग में लेते . जब प्रभु बुलाते लव -कुश को आओ पुत्रों समीप जरा , घुटने के बल चलकर जाते हर्षित हो जाता ह्रदय मेरा , फैलाकर बांहों का घेरा लव

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शुभकामनाओं की प्रबल आकांक्षा है !

10 जुलाई 2015
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मेरी लघु-कथाओं का प्रथम संग्रह अंजुमन प्रकाशन [इलाहाबाद ] से शीघ्र ही प्रकाशित हो रहा है .आप सभी की शुभकामनाओं की प्रबल आकांक्षा है ! https://www.facebook.com/anjumanpublication?pnref=lhc -डॉ. शिखा कौशिक 'नूतन'

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वो भरे हुंकार तो वसुधा भी थर-थर कांपती !

16 जुलाई 2015
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शोषणों की आग जब रक्त को उबालती , शंख लेकर हाथ में वो फूंक देता क्रांति , उसको साधारण समझना है भयानक भ्रान्ति , वो भरे हुंकार तो वसुधा भी थर-थर कांपती ! ........................................................................ हम सामान्य -जन समक्ष श्री राम का आदर्श है , एक वनवासी कुचलता लंकेश का मह

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मानस के रचनाकार में भी पुरुष अहम् भारी

24 जून 2015
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सात कांड में रची तुलसी ने ' मानस ' ; आठवाँ लिखने का क्यों कर न सके साहस ? आठवे में लिखा जाता सिया का विद्रोह ; पर त्यागते कैसे श्री राम यश का मोह ? लिखते अगर तुलसी सिया का वनवास ; घटती राम-महिमा उनको था विश्वास . अग्नि परीक्षा और शुचिता प्रमाणन ; पूर्ण कहाँ इनके बिना होती

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मैं ऐसे मित्र नहीं चाहता !

27 मार्च 2016
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देख दुःखों में डूबा मुझको ;जिनके उर आनंद मनें ,किन्तु मेरे रह समीप ;मेरे जो हमदर्द बनें ,ढोंग मित्रता का किंचिंत ऐसा न मुझको भाता !मैं ऐसे मित्र नहीं चाहता ! सुन्दर -मँहगे उपहारों से ;भर दें जो झोली मेरी ,,पर संकट के क्षण में जो ;आने में करते देरी ,तुम्हीं बताओ कैसे रखूँ उनसे मैं नेह का नाता !मैं ऐस

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