27 अप्रैल 2015
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हमारे हाथ में है जो कलम वो सच ही लिखेगी , कलम के कातिलों से इस तरह करी बगावत है !D
शालिनी जी , ओम प्रकाश जी व् शब्दनगरी संगठन -सभी का हार्दिक धन्यवाद .
28 अप्रैल 2015
अति सुन्दर रचना...कविता का शीर्षक भी बहुत अच्छा लगा....आभार !
28 अप्रैल 2015
* बहुत कम ही लोग...कृपया इसे इस प्रकार पढ़ लें I
28 अप्रैल 2015
खौफ नहीं तेरे आने का तुझसे नज़र मिला लेंगें , 'नूतन' को झुककर न करनी अब कोई फरियाद है...शिखा जी, बहुत-बहुत सुन्दर लिखती हैं आप I शालिनी जी, विजय भाई और आप जैसे रचनाकारों से जुड़कर गर्व महसूस करता हूँ I आकाशवाणी कानपुर से एक उद्घोषक के तौर पर पिछले २२ वर्षों से सेवाएं प्रदान करते हुए देखा है कि बहुत काम ही लोग होते हैं सच्चे रचनाकार...और आप सभी में वो इंद्रधनुषी रंग हैं...आभार !
28 अप्रैल 2015
बड़े बड़े फौलाद आये लेकिन पकृति के आगे सब बेबस हैं और उनके लिए जो जिजीविषा ज़िंदगी जीने के काम आती है वह आपकी अभिव्यक्ति में मौजूद है .बहुत सार्थक अभिव्यक्ति .आभार
27 अप्रैल 2015