सुख शान्ति और समृद्धि का पर्व है दीपावली ।----- भारतीय जन जीवन और भारतीय संस्कृति में सांस्कृतिक पर्व और हर त्योहार आनन्द मंगल के परिचायक है ।इसी तरह दीपावली तो जन जन के तन मन को आलोकित करते हुए लोक आ
आई है शुभ दीपावली,पूर्ण हो सबकी मंगल कामना।घर घर दीपों की रोशनी,आस्था विश्वास और कामना।।श्रीराम के आगमन पर,अयोध्यावासी दीप जलाते हैं।घर घर धूम मची हुई,हर्षोल्लास से मंगल गाते हैं।।दीपों की पंक्ति सजाक
पौराणिक मान्यता है कि विजयदशमी की तिथि को भगवान श्रीराम ने अत्याचारी रावण का वध किया तो संसार को एक पापात्मा से मुक्ति मिली। लेकिन भगवान श्रीराम के ऊपर ब्रहम हत्या का पाप भी लग गया क्योंकि
सत्य का मार्ग प्रशस्त हो,राह अपनी अडिग रहे।पल पल जुड़ा सत्य से,मार्गदर्शन वही प्रशस्त रहे।।अनुसरण सत्यता का रहे,प्रयास भी वही सफल रहे।सत्य का मार्ग प्रशस्त हो,बुलंदियों को हम छूते रहे।।आदर्श आचरण व्यव
कहाँ दिखता है अपने अन्दर का रावण,कहाँ मरता है अपने अन्दर का रावण,जलाने चले हैं हम पुतले रावण को,रावण,कुम्भकर्ण,मेघनाथ सब मिल जाएँगे,अपने अन्दर तो झाँको।त्रेतायुग में रावण ने हरा माता सीता को,आज हर गली
मां दुर्गा एनर्जी एंपावरमेंट 1.मां दुर्गा 2.शेर सवारी क्यों 3.मां के रूप और मानव चक्र 4.चैत्र नवरात्रि क्यों मनाते हैं 5.मां के रूप विस्तार से 6.कथा 7. SUMMARY TABLE 8.ध्यान 9. अपनी प्रैक्ट
हे पितरों! स्वीकारो नमन हमारा,तुमसे ही है ये अस्तित्व हमारा,देना सदा आशीष हमें तुम,हम हैं छोटा सा अंश तुम्हारा।वैसे तो हर दिन हैं आप,सूक्ष्म रूप में साथ हमारे,पितृ- पक्ष में स्वागत आपका,मिलकर करते हम
प्रकृति प्रेमी देश में,सर्प हैं शिव के गले का हार।श्रावण शुक्ला पँचमी,मनता नाग पंचमी का त्योहार।।विष्णु की शैय्या हैं ये,पृथ्वी के धारण हार।जमुना में कृष्ण को छाया दिए,जब पानी बरसे मूसलाधार।।परीक्षित
काग़ज़ वज़नदार होता हैजब नोट बन जाता हैरौंद डालता हैसारे आदर्श, मानवीयता, रिश्तेनिगल लेता है जीवन मूल्यझोपड़ी से लेकर महलों तकराज करता है वज़नदार काग़ज़ लेकिन उससे भी ज़्यादावज़नदार हो जाता
किसे कहे अपना ,क्या उन्हें जिनसे है खून के रिश्ते या अपना ले उन्हें जो बनकर आये जीवन में फरिशते दौलत देख सब निभाए और कंगाली में हाथ छुड़ाए जरा सोच से मजबुर ए दिल किसे छोड़े किसे अपनाये क
मुशिकले हजार थी , लेकिन तेरी हिम्मत का भी नहीं था जवाब क्या खूब कमाया तुने घर ,गाडी ,बर्तन सब कुछ थे लाजवाब न जाने मेरे दोस्त क्या-क्या रहे होंगे तेरे ख्वाब तेरी हर नसीहत भूल देख ये तेरी दौलत उ
प्रेरित किया है इस घाटी ने,मुझे कविता लिखने को।आज उठा ली है कलम और डायरी,इसके ही सौन्दर्य को कलमबद्ध करने को।।गुजरता हूँ रोज यहाँ से,और निहारता हूँ सौन्दर्य घाटी का।हरे भरे पेड़ देते हैं सुकून ऑंखों को
राम राम दशरत भजे रही न राम की आस पुत्र मोह में पिता तरसे कौन बुझाये प्यास मृत्यु ऐसी बाबरी जिसकी ना ढीली पाश तपोवन की अग्नि है वह पेड़ बसे न घास घायल हृदय को कौन समझाए मौन खड़ी यह भीड़ ब
अति परिचय से अवज्ञा होने लगती है। बहुत तेज हवा से आग भड़क उठती है।। अति बुराई का रूप धारण कर लेती है। उचित की अति अनुचित हो जाती है।। कानून की अति अत्याचार बढाता है। अमृत की अति से विष बन जाता
वृक्षों की परछाई लंबी हो गई हैं । सूर्य का लाल गोला पश्चिम की ओर अस्त होने की प्रक्रिया में तत्पर हो चला है । वृक्षों के साये में धुँधलका घिरने लगा है । नर्मदा के तिलवारा घाट से मीलों दूर, यहाँ से सघन
सुकून को पसंद नहीं, कि समझ ले उसे कोई | बचपन में जब हमें, सुकून की समझ ना थी | जीवन में तब हमारे, सुकून ही सुकून था | ज्यों हुई समझ सुकून की, समझ हो गयी ख़फ़ा | अब चौबीस
बात बहुत पुरानी थी लेकिन नीलम को आज भी याद है।उसकी हल्दी की रस्म चल रही थी तभी उसे कुछ सामान यआद आ गया।वह हल्दी की रस्म निभाकर बाजार जाने के लिए तैयार हो रही थी तभी दादी ने आंगन मे से आवाज दी,"मेरी बन
नदी किनारा, प्यार हमारा, चलते रहते,, साथ, सागर तक,, पर मिलते नही ,, कभी भी किसी पथ पर ,, यह है मेरा जीवन सारा,, हमसफर संग,, नदी किनारा। बेखबर नदी,की, बहती धारा, हमारा जीवन , नदी किनारा,, उसकी
जन्म, प्रकृति का नियम मृत्यु,अमिट,अटल सत्य मानव,बुद्धिजीवी प्राणी समाज,मानव संगठन हार,एक विराम सफलता,प्रगति का अनोखा पायदान विश्वास,जीवन का सहारा। अविश्वास, रिश्ते में लगने वाली दीमक खुशी,
ऐसे एहसास, को,, जो हो बहुत ही खास हो ,, जिसमे हो खुशी बिखेरने का दम,, अंदर ज्वालामुखी का, चाहे हो रहा हो दहन, नम्र से ह्रदय वाला,, कठोर सा दिखने वाला,, जो टूटा हो अंदर से,, बिल्कुल