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मान्यता

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मुशिकले हजार थी , लेकिन तेरी हिम्मत का भी नहीं था जवाब क्या खूब कमाया तुने घर ,गाडी ,बर्तन सब कुछ थे लाजवाब न जाने मेरे दोस्त क्या-क्या रहे होंगे तेरे ख्वाब तेरी हर नसीहत भूल देख ये तेरी दौलत उ

प्रेरित किया है इस घाटी ने,मुझे कविता लिखने को।आज उठा ली है कलम और डायरी,इसके ही सौन्दर्य को कलमबद्ध करने को।।गुजरता हूँ रोज यहाँ से,और निहारता हूँ सौन्दर्य घाटी का।हरे भरे पेड़ देते हैं सुकून ऑंखों को

राम राम दशरत भजे रही न राम की आस पुत्र मोह में पिता तरसे कौन बुझाये प्यास मृत्यु ऐसी बाबरी जिसकी ना ढीली पाश तपोवन की अग्नि है वह पेड़ बसे न घास  घायल हृदय को कौन समझाए मौन खड़ी यह भीड़ ब

अति परिचय से अवज्ञा होने लगती है। बहुत तेज हवा से आग भड़क उठती है।। अति बुराई का रूप धारण कर लेती है। उचित की अति अनुचित हो जाती है।। कानून की अति अत्याचार बढाता है। अमृत की अति से विष बन जाता

वृक्षों की परछाई लंबी हो गई हैं । सूर्य का लाल गोला पश्चिम की ओर अस्त होने की प्रक्रिया में तत्पर हो चला है । वृक्षों के साये में धुँधलका घिरने लगा है । नर्मदा के तिलवारा घाट से मीलों दूर, यहाँ से सघन

सुकून को पसंद नहीं, कि समझ ले उसे कोई |   बचपन में जब हमें, सुकून की समझ ना थी |   जीवन में तब हमारे, सुकून ही सुकून था | ज्यों हुई समझ सुकून की,   समझ हो गयी ख़फ़ा |   अब चौबीस

बात बहुत पुरानी थी लेकिन नीलम को आज भी याद है।उसकी हल्दी की रस्म चल रही थी तभी उसे कुछ सामान यआद आ गया।वह हल्दी की रस्म निभाकर बाजार जाने के लिए तैयार हो रही थी तभी दादी ने आंगन मे से आवाज दी,"मेरी बन

नदी किनारा, प्यार हमारा, चलते रहते,, साथ, सागर तक,, पर मिलते नही ,, कभी भी किसी पथ पर ,, यह है मेरा जीवन  सारा,, हमसफर संग,, नदी किनारा। बेखबर नदी,की, बहती धारा, हमारा जीवन , नदी किनारा,, उसकी

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जन्म, प्रकृति का नियम मृत्यु,अमिट,अटल सत्य मानव,बुद्धिजीवी प्राणी समाज,मानव संगठन हार,एक  विराम सफलता,प्रगति का अनोखा पायदान विश्वास,जीवन का सहारा। अविश्वास, रिश्ते में लगने वाली दीमक खुशी,

ऐसे एहसास, को,, जो हो बहुत ही खास हो ,, जिसमे हो खुशी बिखेरने का दम,, अंदर ज्वालामुखी का, चाहे  हो रहा हो दहन, नम्र  से ह्रदय  वाला,, कठोर सा दिखने वाला,, जो टूटा हो अंदर से,, बिल्कुल

दादा,दादी,नाना नानी,मामा,मामी,काका,काकी,जाने कितने,रिश्ते  जीवित होते थे,,जब छुट्टियो के दिन होते थे,।एक मेला सा सजता था,घर घर लगता था,,जब पीढियो के अंतर का नेह  प्यार, व संस्कारो का स्

धर्म की परिभाषा देना न तो सहज है और न ही सुलभ। परन्तु इसको सरल बनाते है संत। भगवान के भक्त ही हमें भगवान की ओर उन्मुख करते है। संत ही मानव जीवन के लिए जहाज रूपी साधन है, जो भवसागर रूपी संसार से पार लग

इक तूफान उठा है भारी, संभल कर बडा ही है विनाशकारी, जाने कब कब किस किस से,, क्या क्या ले जाएगा,, भूखा है बहुत,, देखना,, शायद अमीर बन ,, गरीब  की रोटी ले जाएगा,, हो न हो दावानल सा है यह,, देखना,,

वैजयंती माला के सम्बन्ध में प्राचीन ग्रन्थों काफी महिमा का बखान किया गया है। यह माला धरा ने श्रीकृष्ण को भेंट में दी थी, अतः श्रीकृष्ण को यह माला अत्यन्त प्रिय थी। यह माला वैजयंती के बीजों से बनती है।

माडी गुजराती का शब्द है, माडी का हिन्दी में अर्थ होता है माता। माता को ही माडी कहते हैं।सतयुग की समाप्ति के समय दैत्य अमरूवा महान प्रतापी मायावी और वरदानी था। उसके अत्याचार से सृष्टि में हाहाकार मच गय

ज्येष्ठ मास हिंदू वर्ष का तीसरा महीना है. इस महीने में सूर्यदेव अपने रौद्र रूप में होते हैं अर्थात इस महीने में गर्मी अपने चरम पर होती है. वैसे तो फागुन माह की विदाई के साथ ही गर्मी शुरू हो जाती है. च

वो पथ का पडा जो पत्थर, तुझको पुकारता है, कहता है मुझे चुपके से, क्या मुझको निहारता है,? आ हटा दे आकर मुझको, तेरा भाग्य पुकारता है, तू देख गम न करना, कि यह पत्थर आ खडा है, यही श्रम तेरे को चुनौती, तू

आदि शक्ति मां जगदम्बे का ही रूप है देवी दुर्गा। सामान्यतः देवी दुर्गा दो रूपों में जानी जाती हैं, एक में वे दस भुजा वाली तथा दूसरे में अष्ट भुजा रूप में हैं। देवी का वाहन सिंह या बाघ हैं तथा असुर या द

श्रीराम भक्त हनुमान साक्षात एवं जाग्रत देव हैं। हनुमानजी की भक्ति जितनी सरल है उतनी ही कठिन भी। कठिन इसलिए की इसमें व्यक्ति को उत्तम चरित्र और मंदिर में पवित्रता रखना जरूरी है अन्यथा इसके दुष्परिणाम भ

सुबह की शुरूवात जैसी होती है बाकि दिन भी उसी अनुसार बीतता है ऐसे में जरूरी है कि सुबह को बेहतर बनाया जाया .. शास्त्रों में सुबह के समय उठते ही कुछ विशेष कार्य करने की सलाह ही दी गई है। मान्यता है कि अ

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