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 कवि केदारनाथ अग्रवाल के लिए हंसते-हंसते, बातें करते कैसे हम चढ़ गए धड़ाधड़ बम्बेश्वर के सुभग शिखर पर मुन्ना रह-रह लगा ठोकने तो टुनटुनिया पत्थर बोला — हम तो हैं फ़ौलाद, समझना हमें न तुम मामूली

जंगल में लगी रही आग लगातार तीन दिन, दो रात निकटवर्ती गुफ़ावाला बाघ का खानदान विस्थापित हो गया उस झरने के निकट उसकी गुफ़ा भी दावानल के चपेट में आ गई थी... वो अब किधर भटक रहा होगा ? रात को

ज़िन्दगी में जो कुछ है, जो भी है सहर्ष स्वीकारा है; इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है वह तुम्हें प्यारा है। गरबीली ग़रीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब यह विचार-वैभव सब दृढ़्ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब म

विचार आते हैं लिखते समय नहीं बोझ ढोते वक़्त पीठ पर सिर पर उठाते समय भार परिश्रम करते समय चांद उगता है व पानी में झलमलाने लगता है हृदय के पानी में विचार आते हैं लिखते समय नहीं ...पत्थर ढोते

रात, चलते हैं अकेले ही सितारे। एक निर्जन रिक्त नाले के पास मैंने एक स्थल को खोद मिट्टी के हरे ढेले निकाले दूर खोदा और खोदा और दोनों हाथ चलते जा रहे थे शक्ति से भरपूर। सुनाई दे रहे थे स्वर – बड

मैं तुम लोगों से इतना दूर हूँ तुम्हारी प्रेरणाओं से मेरी प्रेरणा इतनी भिन्न है कि जो तुम्हारे लिए विष है, मेरे लिए अन्न है। मेरी असंग स्थिति में चलता-फिरता साथ है, अकेले में साहचर्य का हाथ है,

मैं उनका ही होता जिनसे मैंने रूप भाव पाए हैं। वे मेरे ही हिये बंधे हैं जो मर्यादाएँ लाए हैं। मेरे शब्द, भाव उनके हैं मेरे पैर और पथ मेरा, मेरा अंत और अथ मेरा, ऐसे किंतु चाव उनके हैं। मैं ऊ

मेरे जीवन की धर्म तुम्ही-- यद्यपि पालन में रही चूक हे मर्म-स्पर्शिनी आत्मीये! मैदान-धूप में-- अन्यमनस्का एक और सिमटी छाया-सा उदासीन रहता-सा दिखता हूँ यद्यपि खोया-खोया निज में डूबा-सा भूला-सा

मुझे नहीं मालूम मेरी प्रतिक्रियाएँ सही हैं या ग़लत हैं या और कुछ सच, हूँ मात्र मैं निवेदन-सौन्दर्य सुबह से शाम तक मन में ही आड़ी-टेढ़ी लकीरों से करता हूँ अपनी ही काटपीट ग़लत के ख़िलाफ़ नित स

मुझे पुकारती हुई पुकार खो गई कहीँ... प्रलम्बिता अंगार रेख-सा खिंचा अपार चर्म वक्ष प्राण का पुकार खो गई कहीं बिखेर अस्थि के समूह जीवनानुभूति की गभीर भूमि में। अपुष्प-पत्र, वक्र-श्याम झाड़-झंखड़ों

जब पांचाली की मृत्यु हो गई, तो युधिष्ठिर ने पांडवों को जवाब क्यों दिया कि वह अन्य पांडवों की तुलना में अर्जुन से अधिक प्रेम करती है? मैंने सुना है कि द्रौपदी सभी पांडवों को समान रूप से प्यार करती थी।

टिंग-टोंग... डोरबेल बजी तो कुछ ही देर बाद किरण ने दरवाज़ा खोला। सामने अमन था। किरण- अमन! अच्छा हुआ तू आ गया। मेरी जान छुड़वा इनसे। अमन को देखते ही राहत भरी सांस लेकर बोली किरण तो उसने हैरानी से पूछ

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अर्जुन की चौथी पत्नी का नाम जलपरी नागकन्या उलूपी था। उन्हीं ने अर्जुन को जल में हानिरहित रहने का वरदान दिया था। महाभारत युद्ध में अपने गुरु भीष्म पितामह को मारने के बाद ब्रह्मा-पुत्र से शापित हो

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कहते हैं कि भगवान शिव के कई पुत्र थे, जैसे गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, भौम आदि। उन्हीं में से एक अयप्पा स्वामी भी थे। अयप्पा स्वामी के जन्म की कथा बड़ी ही रोचक है। केरल के सबरीमाला में भगवान

राष्ट्रीय एकता दिवस पर्व को,हम भारतवासी शान से मनाते हैं।अनेकता में एकता का प्रतीक,हम मिलकर ही सब सिखाते हैं।।राष्ट्रीय एकता दिवस पर्व को,हम आन और शान से मनाते हैं।भाषाएं हो भले अनेक हमारी,राष्ट्रगान

धनतेरस पर धनिया, झाड़ू और नमक क्यों खरीदना चाहिए ? यह चीजें खरीदना शुभ होता है। धनिया खरीद कर क्यारी मे बिखेर दीजिए जैसे जैसे वह बढेगी या कम बढेगी या नही बढेगी उसी तरह यह आपके पास धन आने का सूच

समर्पण: - एक बार नारद जी ने द्वारकाधीश से पूछा- "प्रभु! क्या कारण है की सर्वत्र संसार में राधे-राधे हो रहा है। आपकी महापटरानी 'रुकमणी' और अन्य रानियों को तो ब्रज तक में कोई याद नहीं करता।" कृष

राम तेरी नगरी बस रही है। बस तेरी ही कमी हमें खल रही है। आ जाओ राम ,लगाओ फिर दरबार। जन-जन तुम्हें अब ढूंढ़ रही है। जन-जन तुम्हें अब ढूंढ रही है , धरती है कष्ट में करो उद्धार , फिर से बना दो यहाँ

किस्मत हमारी भाग्य से जुड़ी, या फिर होती ये मेहनत से। जीवन के पहलुओं को उजागर, करते फिर भाग्य या मेहनत से।। मेहनतकश इस जीवन में कुछ, आशा और निराशा का खेल। भाग्य में लिखा होता है अगर, बनता है ये किस्मत

भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात (हे भगवान!) मुझे अन्धका

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