मैंने कल अपनी डायरी में अपने घर काम करने वाली कमली की बातों का जिक्र किया था।
उसकी बात सुनकर मैं उसके चेहरे को ध्यान से देखने लगी। मैंने उससे कहा क्या जिस लड़के से तुम्हारे पति ने तुम्हारे बेटी की शादी तय की है वह वास्तव में जुआरी शराबी ही है यह तुम बिना जानकारी के ही कह रही हो"?? मैंने उसके मन की बात जानने के लिए उससे पूछा "भाभी जी जुआ घर में कीर्तन करने वाले लोग तो जाएंगे नहीं इसमें जानने समझने वाली कौन सी बात है"कमली ने बहुत सहजता से जवाब दिया।
वह कुछ देर सोचने के बाद फिर बोली"भाभी जी यह समाज बहुत बुरा है अगर किसी आदमी पर एक बार गलत काम का ठप्पा लग गया तो वह कभी मिटता नहीं है।वह आदमी कितना ही शरीफ़ क्यों न बन जाए और अगर लोग बार बार उसे ताने मारते रहेंगे तो वह फिर से बुरे रास्ते पर चला जाता है।यह मैं अपने जीवन में और अपने आसपास लोगों के जीवन में देखा है और भाभी जी किसी की कोई लत कभी छुटती नहीं है।
कुछ दिनों के लिए अच्छा बनने का ढोंग कोई कर भले ले लेकिन हमेशा के लिए अच्छा बन नहीं सकता जो व्यक्ति जैसा होता है वैसी ही रहता है।
अगर किसी को बदलना होता है तो बचपन में ही बदल जाता है। बड़े होने पर कोई नहीं बदलता बहुत कम लोग होत हैं जो बड़ी उम्र में बदल जावें हैं।" बूढ़ा तोता राम राम नहीं पढ़ता है भाभी"
इतना कहकर कमली अपने काम में लग गईं।
मैं वहां बैठी उसकी बातों पर विचार करने लगी कमली के शब्द मेरे कानों में गूंजने लगे हर व्यक्ति अपनी आदतों को आसानी से नहीं छोड़ता उस पर विचार करना समय बर्बाद करना है।
बात तो सही है किसी व्यक्ति का स्वभाव कैसा होगा इसका पता बचपन में ही चल जाता है।
अब यदि माता-पिता सतर्क हैं तो अपने बच्चों की गलत आदतों को उसी समय बदलने कि कोशिश करते हैं और जो माता-पिता छोटी छोटी बातों को नज़रंदाज़ कर देते हैं तो वह आगे चलकर व्यक्ति के जीवन को ही प्रभावित कर देते हैं।
अब कमली काम करके जा चुकी है मैं कमली के विषय में सोच रहीं हूं कि उस अनपढ़ औरत ने कितनी आसानी से समझदारी का परिचय दिया की हम जब व्यक्ति की आदतों को नहीं बदल सकते तो उस बात पर विचार करना बेइमानी है।
इसलिए हमें हमेशा यह सोच विचार कर निर्णय लेना चाहिए कि वह व्यक्ति कैसा है उसकी संगति कैसी है और वह कैसे वातावरण में पला बढ़ा है।
क्योंकि यह बातें बहुत मामूली सी लगती हैं पर हैं बहुत ही सारगर्भित।
यह बातें हमें हमारा इतिहास भी बताता है कि व्यक्ति की शिक्षा दीक्षा उसके चरित्र का निर्माण करती है। हमारे समाज में ऐसी धारणा पहले भी विद्यमान थी और आज भी है कि जो व्यक्ति समाज की नज़रों में एक बार ग़लत साबित हो जाता है तो फिर लोग उसके प्रति जीवनपर्यंत वैसी ही धारणा बनाएं रखतें है कुछ अपवादों को छोड़कर कर।
अब आज इतना ही फिर कल कुछ और बातें करूंगी मेरी बातें पढ़कर आप हंसेंगे जरूर फिर भी मैं इन्हें अपनी डायरी में लिख रहीं हूं क्योंकि मुझे यह बात सही लग रहीं है।
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक