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मेरी डायरी आत्ममंथन अप्रैल 2022 भाग 17 इतिहास समाज और मन की कुछ बातें

27 अप्रैल 2022

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आज मैं तुमसे कुछ इतिहास समाज और अपने मन के उदगारों को व्यक्त करने की कोशिश कर रही हूं।
आज प्रतिलिपि पर ऊंची इमारतों पर लिखने को कहा गया है। ऊंची इमारतें देखने में बहुत लुभावनी होती हैं,हम ऊंची ऊंची इमारतें तो बना रहें हैं इसमें रहने वाले बड़े गर्व से कहते हैं।हम तो पाॅस इलाक़े में रहते हैं वहां कहीं कोई गंदगी नहीं रहती वहां हमें शुद्ध हवा मिलती है। पर क्या हम कभी यह सोचते हैं कि, इन इमारतों की नींव में कितने छोटे छोटे घरों और उन में रहने वाले लोगों की भावनाओं की बलि चढ़ी है।
यह ऊंची इमारतें गर्व से तनकर खड़ी हैं और यह दिखा रहीं हैं कि यहां रहने वाले अमीर लोग हैं।पर क्या इन इमारतों में रहने वालों का दिल भी उतना ही विशाल है जितने बड़े घर में वह रहते हैं?

जितनी ऊंचाई पर वह रहते हैं क्या उतने ही ऊंचे विचारों को भी ग्रहण करने की क्षमता उन में है!!?
शायद नहीं, क्योंकि हम जितनी ऊंचाई पर जाते हैं वहां से जब नीचे देखते हैं तो नीचे की सभी चीजें जरूर से ज्यादा छोटी दिखाई देती हैं।

इसलिए ऊंची ऊंची इमारतों में रहने वाले लोग अपने आसपास रहने वालों को छोटा समझते हैं।

प्राचीन काल में हमारे घर, महल ऊंचे नहीं विशाल होते थे और उनमें रहने वाले लोगों का दिल भी उतना विशाल होता था। क्योंकि बड़े घरों में रहने वाले लोग धरातल पर रहते हैं इसलिए उनकी सोच भी जमीनी होती है वह लोगों को अपने में समेटने की क्षमता रखते हैं उन के घरों में और उन घरों में रहने वाले लोगों के विचार सागर की विशाल होते हैं।

जब हम ज़मीन से जुड़ कर रहते हैं तब सभी को अपने में समेटने की स्थिति में होते हैं जब हम ऊंचाई पर पहुंच जाते हैं। तो  जमीन पर रहने वालों से दूर होते जाते हैं जैसे जैसे हम ऊंचाई पर जाएंगे जमीन से हमारा नाता छूट जाएगा।
पत्थरों से बनी ऊंची इमारतों में रहने वाले लोग भी पत्थर दिल होते जाते हैं क्योंकि वह लोग हकीक़त से दूर रहते हैं उनके आसपास सभी लोग उन्हीं की तरह अमीर होते हैं तो उन्हें कोई दुःखी दीन-हीन दिखाई नहीं देता इसलिए भी उन्हें किसी की परेशानियां नहीं दिखती।

ऊंची-ऊंची इमारतों में रहना बुरा नहीं है पर दूसरों को अपने से कम नहीं आंकना चाहिए।हम चाहें जितना ऊंचे उठें उसमें कोई आपत्ति नहीं है पर अपने विचार, कर्म और वचन को भी ऊंचाई पर लेकर जाएं और ऊंची इमारतों में रहें तब आप पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगेगा।
जो लोग ऊंचे विचार रखते हैं ऊंचे कर्म करते हैं और उनमें वास्तविक योग्यता होती है तो वह बहुत ही विनम्र हो जातें हैं।

ऊंची-ऊंची इमारतें बनाने से हम विकासशील तो कहला सकते हैं पर सुसंस्कारी, व्यवहारिक, और मानवीय संवेदनाओं से युक्त नहीं कहला सकते।
अतः हमें देश को विकसित करने के साथ साथ अपने मानवीय मूल्यों को भी विकसित करना होगा।
आज बहुत सुना दिया तुम्हें तुम यहीं कहोगी की मैं बहुत ज्ञान बांट रहीं हूं पर ऐसा नहीं है यह विचार मेरे मन में उठता है इसलिए आज तुम्हें बता दिया।
कल कुछ और बात करेंगे शुभरात्रि

डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक


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