आज मैं अपनी डायरी में कल के अपने विचारों को आगे बढ़ाते हुए स्वयं से परिचर्चा करूंगी। क्योंकि जब हम स्वयं से परिचर्चा करते हैं तो उस समय हम मन से स्वतंत्र रहते हैं। हमें सामने वाले की नाराज़गी की डर नहीं होता हम खुलकर स्वयं से वाद-विवाद कर सकते हैं और मेरा विचार है कि इस प्रकार की परिचर्चा से हमारे अंदर के गुण, अवगुण, अच्छे बुरे विचार,हमारी खुबियां, हमारी दूरदर्शिता, हमारी क्षमता आदि के विषय में हम अच्छे से जान लेते हैं।
क्योंकि मेरा मानना है कि, हमें निंदक नियरे रखना ही चाहिए लेकिन यदि हम स्वयं अपनी आलोचना करना प्रारंभ करें तो हम अपनी कमियों और अच्छाईयों को बहुत अच्छे से जानने लगेगें।
हमारा शुभचिंतक हमेशा हर स्थान पर हमारे साथ नहीं रह सकता की वह हमे हमारी कमियां या अच्छाइयां बताता रहें।
इसलिए यह सबसे अच्छा तरीका है कि हम स्वयं अपनी आलोचना अर्थात निंदा और प्रसंशा करें।
ऐसा करने से हम अपने साथ साथ दूसरों का भी मार्गदर्शन कर सकते हैं।
इसके साथ आज मेरे मन में यह विचार बार बार आ रहा है कि हम अपने मनोभावों को व्यक्त करने में संकोच क्यों करते हैं।माना की यह आसान नहीं है ऐसा करने से हमें कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
पर यदि हम अपने मन के उदगारों को व्यक्त नहीं करेंगे तो भी हम परेशान रहेंगे और हमारे अंदर आक्रोश पनपने लगेगा जो आगे चलकर हमारे और हमारे अपनो के लिए घातक सिद्ध हो सकता है।
आज के लोगों में सबसे बड़ी कमी यह है कि वह अपने स्वार्थ के लिए ऐसे व्यक्ति की भी प्रशंसा करते हैं जिनमें कोई गुण होता ही नहीं।
मेरे कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि आप किसी की प्रसंशा न कीजिए परंतु किसी की झूठी तारीफ भी न कीजिए की वह व्यक्ति गलत को ही सही समझने लगे यह उसके लिए भी ठीक नहीं होगा।
क्योंकि सत्य हमेशा सत्य ही रहेगा वह झूंठ नहीं बन सकता।
यहां मैं बाहर के लोगों की बात नहीं कर रहीं हूं पहले हम अपने घर में रहने वालों की झूठी तारीफ करना बंद करें और हम स्वयं अपनी आलोचना करें अपनी और अपनो की गलतियों को नज़रंदाज़ ना करें उसे जितना सम्भव हो सकें सुधारें फिर हममें स्वयं आत्मविश्वास जागने लगेगा और हम अपने साथ साथ दूसरों की आलोचना संयम और शालीनतापूर्वक कर सकते हैं।
यह मेरे व्यक्तिगत विचार हैं क्योंकि पहले मैं स्वयं अपने आपसे प्रश्न करती हूं फिर अगर उसका सही उत्तर मिल गया तो ठीक है नहीं तो मैं किसी ऐसे व्यक्ति से उस प्रश्न का उत्तर पूछतीं हूं जो मेरा हितैषी है और मुंह पर सच बोलने की हिम्मत रखता हो।आज इतना ही आगे इस पर कल कुछ और परिचर्चा होगी।
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
25/4/2022