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मेरी डायरी आत्ममंथन अप्रैल 2022 भाग 3 इतिहास, समाज और मन की कुछ बातें

14 अप्रैल 2022

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मेरी डायरी आत्ममंथन इतिहास, समाज और मन की कुछ बातें भाग 3

डायरी के पिछले पन्नों पर मैंने नैतिक मूल्यों की बात की थी जो प्राचीन काल में हमारी शिक्षा प्रणाली के विशेष अंग थे जिनकी शिक्षा प्रत्येक विद्यार्थी को बचपन से ही दी जाती थी।
जिससे आगे चलकर वह बालक जब समाज का निर्माण करने के लिए आगे आए तो अपने नैतिक मूल्यों और आदर्शों को समाज में स्थापित करके अपने देश,समाज और स्वयं के स्वाभिमान और गौरव को बढ़ाने का कार्य करें।
इतिहास के पन्नों पर वर्णित तथ्य हमारे विचार और व्यवहार में बदलाव का कार्य करते हैं।
इतिहास में घटित घटनाओं का विश्लेषण करने से हमारे सम्मुख जो दृश्य उपस्थित होते हैं उन्हें पढ़कर या सुनकर हमें यह सरलता से ज्ञात हो सकता है कि, हमें अपने जीवन में खुशियों को बनाए रखने के लिए क्या कार्य करना चाहिए और क्या नहीं।
मैं यहां बहुत गूढ़ रहस्यों पर चर्चा नहीं कर रहीं हूं साधारण सी बात कर रही हूं।
मैंने अप्रैल माह में इतिहास, समाज और अपने मन की बातों को क्यों उठाया है इसका एक विशेष कारण है।
मैंने मार्च में तीन दिनों तक डायरी नहीं लिखीं उस समय घर में मेहमानों का आगमन हुआ था।
29मार्च को मेरे घर में काम करने वाली कमली बहुत देर से आईं मुझे गुस्सा तो बहुत आया था।
परंतु घर में मेहमान थे इसलिए उसे कुछ नहीं कहा दूसरे दिन वह फिर देर से आईं उस समय आए हुए मेहमान अयोध्या घुमने गए हुए थे।
इसलिए घर में मैं अकेली थी तो मेरा गुस्सा फूट पड़ा। मैंने उससे गुस्से में पूछा" कमली घर में मेहमान आए हुए हैं काम बढ़ गया है और तू है कि इधर रोज देर से आ रही है क्या बात है क्या तुझे यहां कोई परेशानी है"!??
"कैसी बात करती है भाभी जी आपसे मुझे कोई परेशानी नहीं है परेशानी तो मुझे अपने मर्द से है,"कमली ने गुस्से में कहा

"क्यों उसने ऐसा क्या कर दिया है?? मैंने पूछा
उसके बाद उसने जो बताया उसे सुनकर मैं आश्चर्यचकित रह गई कि हम लोग स्वयं को पढ़ा लिखा और बहुत समझदार समझते हैं अपने आपको विद्वान समझते हैं क्या वाकई हम ऐसे हैं??
उसने मुझे बताया भाभी मेरे मर्द ने जुआ खेलते हुए मेरी बेटी का ब्याह एक जुआरी से तय कर दिया।
यह सुनते ही मैं तो गुस्से में पागल हो गई और मैंने कहा तू बाप है की सौदागर जो तुने अपने बेटी का सौदा कर दिया जैसे द्रौपदी के पति ने किया था।
और पूरा जीवन उस महारानी को दुख भोगना पड़ा तूने पैसे के लालच में बेटी का सौदा किया और नाम दिया शादी का और वह शराब जुआरी किसी और के हाथों मेरी बेटी को बेच सकता है।
भाभी जी जब कोई शौक लालच बन जात है तो वह शौक़ नहीं रहत पाप होई जात है।
हमारे मर्द का जुआ का शौक़ अब लालच बन गवा है इसलिए हम कह दिहन की अब हम हमार बेटी तोहार साथ नहीं रहेंगे तुम अपने रास्ते हम अपने रास्ते जब तोहार दिमाग ठीक हो जाए तब आना
कमली की बात सुनकर मैं सोचने पर बाध्य हो गई की यह तो उसने बिल्कुल सही कहा की जब कोई भी शौक या आदत जरूरत से ज्यादा हो जाए तो वह हमारे लिए घातक हो सकती है
आगे उससे क्या बात हुई इसका उल्लेख कर करूंगी

डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक

3/4/2022


भारती

भारती

बहुत ही मार्मिक चित्रण

14 अप्रैल 2022

Kanchan Shukla

Kanchan Shukla

20 अप्रैल 2022

बहुत बहुत आभार आपका

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रचनाएँ
दैनदिंनी अप्रैल 2022
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इस डायरी में अपने मन के विचारों को व्यक्त करने की कोशिश की हे
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