मेरी डायरी आज मैं कुछ अपने मन की बात तुमसे करूंगी उसे सुनकर हंसना नहीं!!
आज सुबह से तबीयत कुछ ठीक नहीं है इसलिए कुछ भी लिखने का मन नहीं कर रहा है। मैंने कुछ रचनाएं पढ़ी उन पर अपने विचारों को व्यक्त किया आज सिर्फ पढ़ने का मन कर रहा है। आज पूरे दिन मैं यही काम करूंगी।
आज प्रतिलिपि ने नाॅर्दर्न लाइट्स के विषय पर लिखने के लिए कहा।यह उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव पर होने वाली सूर्य के प्रकाश का चमत्कार है। ऐसा आलौकिक नज़ारा देखने वालों के दिलों को सम्मोहित कर देता है। इसके बारे में सिर्फ पढ़ा है कभी देखा नहीं और शाय़द भविष्य में कभी देखने का मौका भी न मिले क्योंकि ऐसा सौभाग्य हर व्यक्ति के जीवन में नहीं आता।
पर इस मनोरम दृश्य के विषय में लिखीं बातें पढ़कर या सुनकर इसके अद्भुत सौंदर्य के विषय में जाना जा सकता है।
प्राकृतिक सौंदर्य कहीं का भी हो हमारे मन-मस्तिष्क में जादू का असर दिखाता है क्योंकि जब मन-मस्तिष्क में ऊर्जा का संचार होता है तो शरीर में स्फूर्ति जागृत होती है जब हमारी दृष्टि प्रकृति के सौंदर्य का रस पान करतीं हैं तो मन प्रफुल्लित हो जाता है।ऐसी स्थिति में मन से नकारात्मक सोच बाहर निकल जाती है और हम सिर्फ़ खुशी का अनुभव करतें हैं।
यह देखा गया है कि,जब हम नकारात्मक प्रभाव से ग्रस्त होते हैं तो हमारा शरीर भी शिथिल हो जाता है। परंतु जब मन में उत्साह जाग्रति होता है तो शरीर में शक्ति का संचार होता है तब हम अपने प्रत्येक कार्य को ख़ुशी ख़ुशी करते हैं हमें गुस्सा भी नहीं आता।यह प्राकृतिक सौंदर्य का प्रभाव होता है, हमें प्राकृतिक सौंदर्य के रसपान के लिए उत्तरी ध्रुव या दक्षिणी ध्रुव जाने की भी आवश्यकता नहीं है।हम अपने शहर के ही किसी शान्त स्थान पर उगते सूर्य और अस्त होते सूर्य का प्रकाश देखकर खुशी का अनुभव कर सकते हैं। क्योंकि हर व्यक्ति पहाड़ी क्षेत्रों में जाकर उन प्राकृतिक नज़ारों से देख सकें ऐसे हर किसी के लिए सम्भव नहीं है।
इसलिए हमें जो जहां मिलें उसे ही ग्रहण कर लेना चाहिए।
आज के विषय पर रावत जी ने, संगीता जी ने, अनुराधा जी, भावना जी ने, रजनी जी ने, निधि जी ने जो रचनाएं लिखीं पढ़कर मन प्रफुल्लित हो गया।शाम तक अभी और लोगों की रचनाएं पढूंगी।
मैं अपने मनोभावों को व्यक्त करते हुए इतना ही कहना चाहूंगी कि, हमें जो मिलें उसी में खुशियों को तलाशना चाहिए। क्योंकि सभी को उनके कर्मों का पूरा फल मिले ऐसा जरूरी नहीं है यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है।इस विषय पर ज्यादा सोचने से कुछ हासिल नहीं होता बल्कि अपने शरीर पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है।
कुछ लोगों की किस्मत अच्छी होती है जो थोड़ा सा प्रयास करके सब कुछ प्राप्त कर लेते हैं और कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्हें अपनी मेहनत का ही फल प्राप्त नहीं होता।
इसलिए अब मैंने इस विषय पर सोचना ही छोड़ दिया है अब तो यहीं सोचती हूं कि,अपना कर्म ईमानदारी से करो आगे ईश्वर की जो मर्जी होगी वह होगा।
मैं कोई उपदेश नहीं दे रही हूं बल्कि अपने मन के उदगारों को व्यक्त कर रही हूं जो यथार्थ है।
आज इतना ही कल फिर मिलेंगे।
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक