न कोई साथ था न कोई मेरा बना सहारा,
फिर मेरी दोस्ती कलम और डायरी से हुई,
जो थे दिल के जज्बात, दर्द सब लिख लेती उसमें,
कभी कभी पहली बारिश पहली मुलाकात,
तो कभी चेहरे पर आई उदासी की कहानी,
तो कभी कुछ अल्फाज जो दिल को बहलाते थे,
तो कभी अपने ज़ख्म और अपना दर्द,
मेरी डायरी कब मेरी सहेली बन गई,
और कब मेरा पहला प्यार एहसास नहीं,
क्योंकि उसमें लिखे हर अल्फाज़ मुझे देते सांत्वना थे,
तो कभी अपने दर्द को हल्का करने का बनते थे जरिया,
तो कभी दिल की बात लिखने का बन जाते माध्यम,
कुछ अलग सा जुड़ाव था मुझे मेरी सहेली से,
हर रोज एक पन्ने पर नयी कहानी लिखती,
तो कभी पुराने पन्नों को पढ़ दिल को तसल्ली देती,
कुछ बातों में मिठास थी तो कुछ में कड़वाहट ,
पर सब आईने की भांति सच सत्य और कटु था,
उसमें न शब्दों की मिलावट थी न दिखावे का अंश,
जो लिखा वो सब खुद का अनुभव पूर्ण लेख है।