मुट्ठी भर आसमां और इच्छाओं का मंदिर है,
जिसमें रहते सब सुखपूर्वक से वही तो परिवार है,
खेलकूद में बीत जाता बचपन संग साथ में कट जाता सफर,
बांट लेते सब दुखों को और खुश होते थोड़े से मैं,
कम थी आमदनी पर दिल होता था अपनों का बड़ा,
आलीशान महल नहीं दो तीन कमरों में कर लेते थे गुजारा,
क्योंकि पैसों से अनमोल था हमारा परिवार,
जिसमें न रिश्तों में तकरार थी न परिवार में क्लेश,
जो आता सब मैं बंट जाता ऐसा होता था संयुक्त परिवार,
बच्चों की शिक्षा हो बड़ों का काम,
सबको मिलता था बराबर सम्मान,
मिलजुल सब साथ होते थे बड़े और मिलता था भरपूर प्यार,
परिवार से अनमोल दुनिया में कुछ नहीं,
परिवार है तो आंगन की खुशियां है,
परिवार है साथ तो दुख भी लगता थोड़ा,
न साथ परिवार होता तो रिश्तों में अपनापन नहीं होता,
न बड़े छोटो का करता सम्मान,
बिगड़ जाते बच्चे अगर बड़ो का सिर पर आशीर्वाद नहीं होता।