अपनी व्यथा को अपनी कहानी बना,
रोज उतारती थी कोरे कागजों पर,
आज बन गये वो मेरी पहचान,
शब्दों के तीर जब चुभने लगे उन लोगों को,
तब उन कहानी में अपना दर्द महसूस करने लगे लोग,
किताबें लिख रही थी वो एक के बाद एक,
बना अपने दर्द को अपनी दवा उकेर रही पन्नों पर,
बन रहे वो किसी की प्रेरणा तो दे रहे किसी को दर्द,
किसी की पहचान बन गये किसी की कहानी,
सचमुच हर शब्दों की पंक्तियों में कवि की संवेदना थी,
यह महसूस करने वाले वहीं लोग जो देते थे उसको जख्म,
किताबें स्याही छोड़ती गई दर्द उसकी दवा बन गये,
उसकी व्यथा उसके दर्द करोड़ों लोगों की जिंदगी।