- मुक्ति दाता - ( लघु कथा )
रायपुर से 10 किमी दूर राखी गांव में एक गरीब किसान की 2 एकड़ ज़मीन 2 लाख रुपिए प्रति एकड़ के भाव से खरीदकर विजय बहुत ख़ुश था । वह जानता था कि कुछ सालों में इस ज़मीन की क़ीमत आसमान छूने लगेगी । और हुआ भी वही 2 साल के जाते जाते नया रायपुर को विकसित करने की घोषणा हो गई । और इसके बाद वहां की ज़ामीनें महंगी बिकने लगीं।
विजय का सिर्फ एक ही लड़का अमर पूरी तरह से बिगड़ चुका था । उसकी दोस्ती मवालियों के साथ ही थी, लड़का सुबह घर से निकलता तो रात सोने के लिए ही आता था । इसलिए वह अपने लड़के के लिए आर्थिक व्यवस्था कर रहा था ताकि लड़का जीवन भर भी कोई काम न करे तो भी उसे भीख मांगना न पड़े । साल भर बाद वह अपनी ज़मीन को देखने गया तो पाया कि वह इलाका अब भी कुछ उजाड़ ही था और अब भी अंधेरों से घिरा था । लेकिन उसकी ज़मीन पर कुछ लोग कब्ज़ा करके वहां दारू भट्टी चला रहे थे । उनको ज़मीन खाली करने उसने कहा तो जवाब मिला कि अब ये ज़मीन हमारी हो गई है । आपसे जो बनता है कर लीजिए। घर पहुंचने के बाद न जाने कैसे ज़मीन में अवैध कब्ज़े वाली बात अपने मवाली पुत्र अमर को बता दी । अगले दिन उसका पुत्र अपने दस साथियों के साथ ज़मीन खाली कराने राखी गांव पहुंच गया । पहले तो दोनों तरफ़ से तू तू मैं मैं हुई । उसके बाद दोनों तरफ़ से गोलियां चलने लगीं । इस गोली बारी में उसका पुत्र अमर मारा गया । बाद में प्रशासन ने सारे कब्ज़ाधारियों को गिरफ़्तार कर लिया और ज़मीन विजय के हाथ आ गई यानी सही मालिक के पास आ गई । लेकिन उसके बाद ज़मीन को बेचकर अथाह पैसा बनाने की इच्छा को विजय ने त्याग दिया। उसने ज़मीन को एक स्वयंसेवी संस्था “ राम नाम सत्य है”को मुक्ति धाम बनाने और मुक्ति धाम को संचालित करने के लिए दान में दे दी । वह इस ज़मीन को दान देकर बहुत ही ख़ुश है । उसे इस बात की ख़ुशी है कि अब उस इलाके में हर वक़्त अंधेरा नहीं रहेगा । गाहे ब गाहे दाह संस्कार के कारण वहां रौशनी होती रहेगी । स्वयंसेवी संस्था वालों ने उस मुक्तिधाम का नाम *अमर मुक्ति धाम * रख दिया था । उसने भी फ़ैसला कर लिया था कि उसका भी अंतिम क्रिया उसी मुक्तिधाम में हो । उसे इस बात की भी ख़ुशी थी कि अब उसके किसी भी वंशज को पैसों के लिए किसी के पास हाथ फ़ैलाना नहीं पड़ेगा क्यूंकि अब खुद अमर ही "मुक्ति दाता " बन चुका है।
( समाप्त )