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मुक्तक

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मुक्तक  तर्ज : कोई दीवाना कहता है  बेदर्दी बड़ा बेईमान मौसम बारिश का आया  विरह की ज्वाला को जिसने और है धधकाया  तेरी यादों के आंसू में डुबो जाता है जान ए मन  दिल के तारों ने ह

दिल के बजाय जिस्म से इश्क करने लगे हैं लोग  जिस्म के गहरे समंदर में इश्क ढूंढने लगे हैं लोग  किसी जमाने में इश्क इबादत हुआ करता था "हरि" अब इश्क को कमीना, कमबख्त कहने लगे हैं लोग  इश्क

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