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मुन्ना की अम्मा

6 अप्रैल 2022

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    जीजी.....   जीजी  दरवाजा तो खोलो कब से मैं बाहर  खड़ी हूंl
" बहु देख तो जरा बाहर ,  मुन्ना की अम्मा आई है  कब से गला फाड़े जा रही है, दरवाजा खोल दे........ और हां रास्ते के कपड़े हटा लेना कहीं छू न जाए... और बाहर बैठने को बोल देना मैं पूजा करके वहीं आती हूंl"
" जी  मां जी"
" बहुरिया बड़ी देर लगा दी दरवाजा खोलने में"
" चाची आओ बैठो,   मैं रसोई में थी तो आवाज नहीं गई और माजी   भी पूजा घर में हैl  आप आओ बैठो माजी भी आती होगीl
( इतना कहकर  शशि दरी  बिछाने लगी)
अरे!  बहुरिया का कर रही है, मैं तो यह जमीन में ही बैठूंगीl
जमीन  चमक रही है  कांच के माफीक.... फिर  दरी क्यों  ला रहीl
" कोई बात नहीं चाची दरी में बैठो"
" ना ना ना तेरी सास आ जाएगी तो बवाल मचा देगी, मैं यही ठीक हूं..... और तू अपनी सुना, त्यौहार में मायके गई थी कि नहीं?""
" नहीं चाची नहीं जा पाई ....आप अपनी बताओ घर में सब कुशल मंगल तो है ना"
" अब तो से का छिपाना ......गरीब के घर तो देवता भी झांकने नहीं आते हैंl
बड़ा लड़का शराब में चला गया ,आदमी बीमारी में, अब एक  बचा है वह भी दिन रात  पिए   धूत रहता है...... बड़की बहूरिया ने दूसरा ब्याह रचा लिया और छुटकी भी दिन रात  झगड़ते रहती हैl""
अब क्या करें बिचारी?.... आदमी जो मजदूरी लाता है सब दारू में लगा देता है.... दाल रोटी चले भी तो कैसे?
अभी तक मजदूरी करके थोड़ा बहुत  मैं भी कमा लेती थी... पर जब से  मुन्ना के बाबू मरे हैं अब मुझ से नहीं होता हैl
हाथों में ताकत ही नहीं रह गई है दिन-रात  बदन  दुखता रहता है बस भगवान भरोसे गुजारा चल रहा हैl
( बातचीत के दौरान ही  सासू मांआ जाती है और  बहू रसोई में चली जाती है)
" का  मुन्नाकी अम्मा कैसे आना हुआ"
" बस  जीजी होली थी ना.... तो त्योहारी लेने चली आई... का का बनाया त्यौहार मेंl"
" ज्यादा नहीं ....बस  गुजिया बनाई है,  अब मेरे से पकवान ना बनाए जाते, त्यौहार था सो नाम कर लिया थोड़ा बहुत बना करके.... बैठो मैं जा कर ले आती हूं"
( रसोई में)
" त्योहार आते ही त्योहारी याद आ जाती है, अभी एक काम कह दो  तो बहाने बनाने लगेगी,  हाथ दुखता है पैर दुखता है..... अभी हफ्ते भर पहले मिले थे कहा घर पर जाकर चावल साफ कर देना तो मना कर दियाl.......
काम करती है  तो पैसे भी  लेती है ऊपर से कपड़े लते अलग सेl"
" जाओ डिब्बे से  4 गुजिया निकाल कर दे दो उसे बिना लिए तो जाएगी नहीं, मैं कपड़े सुखाने जा रही हूं फिर जल्दी से खाना लगाना बड़ी तेज भूख लगी है"
" जी  मां जी"
" चाची यह लो गुजिया"
" बहुरिया थोड़ा अचार हो तो  दे देना , सूखी दाल रोटी गले में  अटकती है"
( बहू  भीतर जाकर अचार निकाल ने लगती है तभी सासू मां आ जाती है)
"  यह  अचार किसके लिए ले जा रही  हो?
"  मुन्ना की अम्मा मांग रही थी"
" इसे रख दो अभी ही तो बनाया है ताजा है"
वो स्टोर रूम में एक डिब्बा रखा है अचार का ...पुराना हो गया है ,उसे कोई खाता भी नहीं... वही दे दोl
इनका क्या है मांग कर ही तो पेट भरना रहता है काम-धाम तो कुछ करना नहींI
( बहु मन मारकर स्टोर रूम से अचार लाकर मुन्ना की अम्मा को दे देती है)
" जीती रहो बहुरिया.... कोई साड़ी छोड़ी हो तो दे दो ....अब साड़ियां फट गई है सिल सिल कर पहनती हूंl
बिटिया भी आने वाली है उसे भी कुछ देने को चाहिएI
( तभी सासू मां आ जाती है)
" अभी पिछले महीने ही तो दी थी साड़ी इतनी जल्दी तो मैं भी नहीं छोड़ती   तुम तो घर घर जाती हो कहीं और से ले लेनाl"
( मुन्ना  की अम्मा बुझे मन से अपनी पोटली लेकर चली जाती है, पर  बहू को अच्छा नहीं लगता.... घर में कितनी सारी साड़ियां बेकार पड़ी है 1 ,2  दे देती तो क्या कुछ घट जाता .....  वह दरवाजा बंद करने के लिए पीछे पीछे जाती है)
"चाची कल शनिवार है शाम को सासू मां मंदिर जाएंगी आप आ जाना मैं आपको कुछ कपड़े दे दूंगी"
" ठीक है बहुरिया"
( इधर  मुन्ना की अम्मा घर आती है घर पर  पड़ोसन बैठी हुई है, वो पोटली में से गुजिया निकालकर अपनी बहू को  दो गुजिया दे देती है)
" ले बहुरिया खा   ले एक तेरा और   एक मेरे पोते का वह भी पेट में भूखा होगा.... और यह एक बिटवा के लिए रख देनाl"
( फिर आखरी गुजिया को तोड़कर  पड़ोसन को देती है दूसरा टुकड़ा अपने मुंह में डालकर पानी पीकर सो जाती हैl
अगला दिन इसी बेचैनी में बीत जाता है कि कब शाम हो और मैं कपड़े लेने जाऊं)
" बहुरिया  मैं कपड़े लेने जा रही हूं अपना ख्याल रखना शाम को घर से बाहर मत जाना"
(  इधर शशि के घर पर)
" आओ चाची आपकी ही राह देख रही थी, कुछ पुराने कपड़े निकाल कर के रखे हैं जल्दी से ले लो नहीं तो सासु मां आ जाएंगे फिर नाराज होंगी".....
यह देखो मेरी और मेरी बहन के लहंगे हैं स्कूल में फंक्शन के लिए  लिया था, अब कोई पहनता नहीं  आपके काम के हो तो ले लोl और यह लो 2 साड़ियां हैं  फटी साड़ियां नहीं पहनना आपl"
" लहंगे तो बहुत सुंदर है बहुरिया एक बहू को और एक बेटी को दूंगी, अगले महीने देवर के घर शादी है कपड़े भी नहीं है शादी में पहनने के लिए....... दोनों खुश हो जाएंगेl
साड़ी मेरे काम आ जाएगी Iअच्छा ठीक है अब मैं चलती हूंI"
( घरlघर पर कपड़े बहू  और बेटीको दिखाती है उनमें से एक एक लहंगा दोनों ले लेती हैं और बहुत खुश होती हैं...... फिर थोड़ी देर में उदास हो जाती है )
"यह तो काम प्रयोजन में पहनेंगे पर अभी पहनने के लिए कुछ नहीं लाई अम्मा.... मेरी साड़ी भी आंचल के पास फट गई है     सिलाई तो  करली है पर सामने पड़ता है तो अच्छा नहीं लगता"
( वह अपने  लिए रखी  साड़ियां भी बेटी और बहू को दे देती है और  स्वयं पुरानी साड़ी में संतोष करके रह जाती है)
             एक महीने बाद...................
( फिर वही शाम, फिर वही घर ,फिर वही  मुन्नाकी अम्मा, फिर वही  शशि)
" बहुरिया कुछ साड़ियां छोड़ी हो तुमने तो दे दो,  फटी साड़ी नहीं पहनी जाती अब "
" चाची अभी पिछले महीने ही तो दो साड़ी दी थी फिर फटी साड़ी क्यों पहनती हो"
" क्या बताऊं बिटिया साड़ी लहंगा में लेकर गई थी  सब बहू और बेटी ले ली.... उनके पास भी पहनने को कुछ नहीं था मैं बढ़िया साड़ी  पहनुऔर बहू फटी पहने यह तो अच्छा नहीं लगता......
तुम भले दिल की हो तो तुमसे मांग  लेती हूं, तुम दे देती हो बाकी सब तो दूर  से ही  दुत्कार देती हैl तुमसे लगाव है तो हिम्मत पड़ जाती हैl अब  किससे- किससे रोवे अपनी हालत के बारे मेंl फिर हमारी तो भगवान भी नहीं सुनते दूसरा कौन सुनेl
( उसकी बातें सुनकर शशि की आत्मा दुखित हो जाती है और आंखें द्रवित ..... वह सोचने लगती है कि आखिर समाज में इतनी  अ समानता क्यों है, क्यों यह खाई पटती नहीं, क्या इनके कष्ट दूर करने का कोई रास्ता नहीं, मैं किस तरह से इनकी मदद कर सकती हूं? तभी भीतर से सासू मां की आवाज आती हैl)
" कौन आया है बहू"
" चाची आई है   कुछ साड़ियां चाहिए उन्हें"
" इनका तो रोज का काम हो गया है, जब देखो तब मुंह उठाए चली आती है.... जैसी  यहां कपड़ों का भंडार लगा  होl
अभी एक काम  कह दो तो दिखाई ना देंगे....... नीची जाति के लोग हैं मांगने में भी शर्म नहीं आतीl......... कह दो उससे अभी कपड़े छूटे नहीं है कुछ दिनों बाद आएगीl
( वहीं   शशि ने मदद  करने का दृढ़ निश्चय कर लिया था  तो वह बिना कुछ जवाब दिए अपने कमरे में चली जाती है वहां अलमारी से कुछ घरेलू  तो कुछ नई साड़ियां एक  थैली में डालकर ले आती है)
" लो चाची यह कुछ साड़ियां है तुम्हें जब जरूरत पड़े तो मुझसे मांग लेना संकोच मत करना मुझसे जो कुछ बन पड़ेगा जरूर करूंगी"
( शशि के इस कार्य से  सासू मां नाराज होकर अंदर  चली जाती हैं और अनाप-शनाप कहने लगती हैl
वही मुन्ना की अम्मा के चेहरे में अपार खुशी, और शशि के चेहरे में आत्म संतुष्टि के भाव झलक रहे थेl शशि दरवाजे पर खड़े खड़े तब तक उसे निहारती रही जब तक कि वह आंखों से ओझल नहीं हो गईl)


"


Dr.k. S .Chandel

Dr.k. S .Chandel

बहुत खूब । आप अच्छा लिखती है ।

6 मई 2022

इन्दू गुप्ता

इन्दू गुप्ता

7 मई 2022

धन्यवाद सर

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नई राह
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जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती, स्त्री विशेष कहानियों का संग्रह है यह पुस्तक lइसमें नारी के संघर्ष, प्रेम ,तिरस्कार और साहस जैसे विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला गया हैl
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6 अप्रैल 2022
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