बुतों को तोड़ कर तुम बुतशिकन हो तो गए लेकिन , दिलों को जोड़ लेने का हुनर तुम जानते होते . रसूले पाक तुमपर और भी ज्यादा करम करते , शरीयत की जुबां तुम लोग भी पहचानते होते . मुझे ये रंज है तुम मुब्तिला हो किसकी साजिश मैं , ख़ुशी होती कि तुम फरजन्द हिन्दुस्तान के होते . ये काबा है ये काशी है ये मथुरा है मदीना है . तेरी आँखों मैं गर आंसू किसी इंसान के होते .दिलों को जोड़ लेने का ................ हमारी हस्तियां अब तक कभी की मिट गई होती , अगर तकरीर गीता की न चर्चे राम के होते .दिलों को जोड़ लेने ......... धर्म प्रकाश चौरसिया ,संस्कृति महिला बाल विकास संस्थान , सकरार ,झांसी