आए निष्ठुर शहर में छूट गया वो गाँव . वो नदिया में तैरना वो बरगद की छाँव मन के छोटे लोग हैं ,लेकिन बडे मकान . पैसा ही रिश्ता यहां पैसा ही भगवान . निज स्वार्थों में लग रहे इंसानों के दांव............. छोड़ दिया जब गाँव तो छूट गये माँ बाप .दादा दादी के लिये मुन्नी करें विलाप . उठकर प्रातःकाल से किसके छुऐँगे पाँव...... .
.घर की दीवारें यहां लगती हैं अब जेल . चेहरों पे चेहरा लिये लोग यहां बेमेल . हर पल याद आता मुझे अपना प्यारा गाँव .आए निष्ठुर शहर में ..........