प्रीत गली अति सांकरी नहीं स्वार्थ की रीत . नयन भरे अंसुआ झरे ,रस्ता देखे मीत . काहे बाट निहारती क्यों मन हुआ अधीर . काहे बांधे बाँधना ,कैसी मन में पीर . खोए मन का चैन तू कैसी लगन लगाय , विरहा के बिरवा तले क्यों जी रही जलाय , सावन की रैना ढलीं ,रोरो बीते मास . तुम्हरे आवन का शगुन ,तब आये मधुमास . मेरी गुमसुम भोर है और चुपचुप है शाम .जाने किस क्षण हो गया जीवन तेरे नाम . इक इच्छा मन में रही कर लेते दो बात ,समय आखिरी है प्रिये निस्तेज हो रहा गात . टूटे तार सितार के दर्द बोलते गीत ...........