सूर्य में कितनी ऊर्जा है ये उसे नहीं पता ,चन्द्रमा में कितनी शीतलता है ये उसे नहीं पता ,फूल अपनी सुगंध से अवगत नहीं है ,हीरा अपने मूल्य से अंजान है .स्वयं का धैर्य धरती नहीं समझती , अम्बर की विशालता वो क्या जाने ?" साहसी इंसान की गर कोई औकात ना होती , तो हिमालय की बुलंदी से कभी भी बात न होती ." अंतरिक्ष पर किसने कदम रखे ? सागर किसने बांधा ?राम, कृष्ण को किसने जन्म दिया ? हे पूजनीय प्रकृति स्वरूपा ! तुम विराट सामर्थ्य की स्वामिनी हो ,तुम हो तो जीवन की सुंदरता है ,तुम हो तो प्रकृति की नैसर्गिकता है ,तुम हो तो रिस्ते हैं ,तुम्हारे बिना संसार की कल्पना संभव नहीं , नार्यस्तु पूजयन्ते तत्र रमन्ते देवता , हे मातृशक्ति नारी ! तुम अबला नहीं हो ,तुम बेबस ,असहाय नहीं हो, तुम सबला हो .तुम समर्पण नहीं विजय की प्रतीक हो ,तुम्हारे अस्तित्व की अहमियत का जमाने को अहसास हो . तुम्हारा जीवन घुट घुटकर मरने के लिए नहीं है शोषित मर्यादा रूपी कायरता को त्यागो ,तुम्हारा पवित्र जीवन तुम्हें आगे बढ़ने के लिए आवाज दे रहा है .