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नीरजा

महादेवी वर्मा

20 अध्याय
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11 पाठक
24 फरवरी 2022 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

‘नीरजा’ में बिलकुल परिपक्व भाषा में एक समर्थ कवि बड़े अधिकार के साथ और बड़े सहज भाव से अपनी बात कहता है। महादेवी जी के अनुसार ‘नीरजा’ में जाकर गीति का तत्त्व आ गया मुझमें और मैंने मानों दिशा भी पा ली है।’’ प्रस्तुत गीत-काव्य ‘नीरजा’ में ‘निहार’ का उपासना-भाव और भी सुस्पष्टता और तन्मयता से जाग्रत हो उठा है। इसमें अपने उपास्य के लिए केवल आत्मा की करुण अधीरता ही नहीं, अपितु हृदय की विह्लल प्रसन्नता भी मिश्रित है। ‘नीरजा’ यदि अश्रुमुख वेदना के कणों से भीगी हुई है, तो साथ ही आत्मानन्द के मधु से मधुर भी है। मानो, कवि की वेदना, कवि की करुणा, अपने उपास्य के चरण–स्पर्श से पूत होकर आकाश-गंगा की भाँति इस छायामय जग को सींचने में ही अपनी सार्थकता समझ रही है। ‘नीरजा’ के गीतों में संगीत का बहुत सुन्दर प्रवाह है। हृदय के अमूर्त भावों को भी, नव–नव उपमाओं एवं रूपकों द्वारा कवि ने बड़ी मधुरता से एक-एक सजीव स्वरूप प्रदान कर दिया है। भाषा सुन्दर, कोमल, मधुर और सुस्निग्ध है। इसके अनेक गीत अपनी मार्मिकता के कारण सहज ही हृदयंगम हो जाते हैं। 

neerja

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पुस्तक के भाग

1

प्रिय इन नयनों का अश्रु-नीर!

23 फरवरी 2022
1
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प्रिय इन नयनों का अश्रु-नीर! दुख से आविल सुख से पंकिल, बुदबुद् से स्वप्नों से फेनिल, बहता है युग-युग अधीर! जीवन-पथ का दुर्गमतम तल अपनी गति से कर सजल सरल, शीतल करता युग तृषित तीर! इसमें उपजा

2

धीरे धीरे उतर क्षितिज से

23 फरवरी 2022
1
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धीरे धीरे उतर क्षितिज से आ वसन्त-रजनी! तारकमय नव वेणीबन्धन शीश-फूल कर शशि का नूतन, रश्मि-वलय सित घन-अवगुण्ठन, मुक्ताहल अभिराम बिछा दे चितवन से अपनी! पुलकती आ वसन्त-रजनी! मर्मर की सुमधुर

3

पुलक पुलक उर, सिहर सिहर तन

23 फरवरी 2022
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पुलक पुलक उर, सिहर सिहर तन, आज नयन आते क्यों भर-भर! सकुच सलज खिलती शेफाली, अलस मौलश्री डाली डाली; बुनते नव प्रवाल कुंजों में, रजत श्याम तारों से जाली; शिथिल मधु-पवन गिन-गिन मधु-कण, हरसिंगार झ

4

तुम्हें बाँध पाती सपने में!

23 फरवरी 2022
2
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तुम्हें बाँध पाती सपने में! तो चिरजीवन-प्यास बुझा लेती उस छोटे क्षण अपने में! पावस-घन सी उमड़ बिखरती, शरद-दिशा सी नीरव घिरती, धो लेती जग का विषाद ढुलते लघु आँसू-कण अपने में! मधुर राग बन विश

5

आज क्यों तेरी वीणा मौन?

23 फरवरी 2022
1
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आज क्यों तेरी वीणा मौन? शिथिल शिथिल तन थकित हुए कर, स्पन्दन भी भूला जाता उर, मधुर कसक सा आज हृदय में आन समाया कौन? आज क्यों तेरी वीणा मौन? झुकती आती पलकें निश्चल, चित्रित निद्रित से तारक

6

श्रृंगार कर ले री सजनि

23 फरवरी 2022
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श्रृंगार कर ले री सजनि! नव क्षीरनिधि की उर्म्मियों से रजत झीने मेघ सित, मृदु फेनमय मुक्तावली से तैरते तारक अमित; सखि! सिहर उठती रश्मियों का पहिन अवगुण्ठन अवनि! हिम-स्नात कलियों पर जलाये जुगन

7

कौन तुम मेरे हृदय में

23 फरवरी 2022
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कौन तुम मेरे हृदय में? कौन मेरी कसक में नित मधुरता भरता अलक्षित कौन प्यासे लोचनों में घुमड़ घिर झरता अपरिचित? स्वर्ण-स्वप्नों का चितेरा नींद के सूने निलय में? कौन तुम मेरे हृदय में? अनुस

8

ओ पागल संसार

23 फरवरी 2022
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ओ पागल संसार! माँग न तू हे शीतल तममय! जलने का उपहार! करता दीपशिखा का चुम्बन, पल में ज्वाला का उन्मीलन; छूते ही करना होगा जल मिटने का व्यापार! ओ पागल संसार! दीपक जल देता प्रकाश भर, दीपक को

9

विरह का जलजात जीवन

23 फरवरी 2022
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विरह का जलजात जीवन, विरह का जलजात! वेदना में जन्म करुणा में मिला आवास; अश्रु चुनता दिवस इसका, अश्रु गिनती रात! जीवन विरह का जलजात! आँसुओं का कोष उर, दृगु अश्रु की टकसाल; तरल जल-कण से बने घन सा

10

विरह का जलजात जीवन

23 फरवरी 2022
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विरह का जलजात जीवन, विरह का जलजात! वेदना में जन्म करुणा में मिला आवास; अश्रु चुनता दिवस इसका, अश्रु गिनती रात! जीवन विरह का जलजात! आँसुओं का कोष उर, दृगु अश्रु की टकसाल; तरल जल-कण से बने घन सा

11

बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ!

23 फरवरी 2022
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बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ! नींद थी मेरी अचल निस्पन्द कण कण में, प्रथम जागृति थी जगत के प्रथम स्पन्दन में, प्रलय में मेरा पता पदचिन्ह जीवन में, शाप हूँ जो बन गया वरदान बन्धन में, कूल

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रुपसि तेरा घन-केश पाश

23 फरवरी 2022
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रुपसि तेरा घन-केश पाश! श्यामल श्यामल कोमल कोमल, लहराता सुरभित केश-पाश! नभगंगा की रजत धार में, धो आई क्या इन्हें रात? कम्पित हैं तेरे सजल अंग, सिहरा सा तन हे सद्यस्नात! भीगी अलकों के छोरों से

13

तुम मुझमें प्रिय, फिर परिचय क्या

23 फरवरी 2022
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तुम मुझमें प्रिय, फिर परिचय क्या! तारक में छवि, प्राणों में स्मृति पलकों में नीरव पद की गति लघु उर में पुलकों की संस्कृति भर लाई हूँ तेरी चंचल और करूँ जग में संचय क्या? तेरा मुख सहास अरूणोदय

14

बताता जा रे अभिमानी

23 फरवरी 2022
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बताता जा रे अभिमानी! कण-कण उर्वर करते लोचन स्पन्दन भर देता सूनापन जग का धन मेरा दुख निर्धन तेरे वैभव की भिक्षुक या कहलाऊँ रानी! बताता जा रे अभिमानी! दीपक-सा जलता अन्तस्तल संचित कर आँसू के

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मधुर-मधुर मेरे दीपक जल

23 फरवरी 2022
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मधुर-मधुर मेरे दीपक जल! युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल प्रियतम का पथ आलोकित कर! सौरभ फैला विपुल धूप बन मृदुल मोम-सा घुल रे, मृदु-तन! दे प्रकाश का सिन्धु अपरिमित, तेरे जीवन का अणु गल-गल पु

16

पथ देख बिता दी रैन

23 फरवरी 2022
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पथ देख बिता दी रैन मैं प्रिय पहचानी नहीं! तम ने धोया नभ-पंथ सुवासित हिमजल से; सूने आँगन में दीप जला दिये झिल-मिल से; आ प्रात बुझा गया कौन अपरिचित, जानी नहीं! मैं प्रिय पहचानी नहीं! धर कनक

17

मैं बनी मधुमास आली

23 फरवरी 2022
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मैं बनी मधुमास आली! आज मधुर विषाद की घिर करुण आई यामिनी, बरस सुधि के इन्दु से छिटकी पुलक की चाँदनी उमड़ आई री, दृगों में सजनि, कालिन्दी निराली! रजत स्वप्नों में उदित अपलक विरल तारावली, जाग स

18

तेरी सुधि बिन क्षण क्षण सूना

23 फरवरी 2022
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तेरी सुधि बिन क्षण क्षण सूना। कम्पित कम्पित, पुलकित पुलकित, परछा‌ईं मेरी से चित्रित, रहने दो रज का मंजु मुकुर, इस बिन श्रृंगार-सदन सूना! तेरी सुधि बिन क्षण क्षण सूना। सपने औ' स्मित, जिसमें

19

दीपक में पतंग जलता क्यों

23 फरवरी 2022
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दीपक में पतंग जलता क्यों? प्रिय की आभा में जीता फिर दूरी का अभिनय करता क्यों पागल रे पतंग जलता क्यों उजियाला जिसका दीपक है मुझमें भी है वह चिनगारी अपनी ज्वाला देख अन्य की ज्वाला पर इतनी ममता

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उर तिमिरमय घर तिमिरमय

23 फरवरी 2022
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उर तिमिरमय घर तिमिरमय चल सजनि दीपक बार ले! राह में रो रो गये हैं रात और विहान तेरे काँच से टूटे पड़े यह स्वप्न, भूलें, मान तेरे; फूलप्रिय पथ शूलमय पलकें बिछा सुकुमार ले! तृषित जीवन में घिर

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