shabd-logo
Shabd Book - Shabd.in

सांध्यगीत

महादेवी वर्मा

14 अध्याय
0 व्यक्ति ने लाइब्रेरी में जोड़ा
1 पाठक
24 फरवरी 2022 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

सांध्यगीत महादेवी वर्मा का चौथा कविता संग्रह हैं। इसमें 1934 से 1936 ई० तक के रचित गीत हैं। 1936 में प्रकाशित इस कविता संग्रह के गीतों में नीरजा के भावों का परिपक्व रूप मिलता है। यहाँ न केवल सुख-दुख का बल्कि आँसू और वेदना, मिलन और विरह, आशा और निराशा एवं बन्धन-मुक्ति आदि का समन्वय है। वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक मानी जाती हैं। आधुनिक हिन्दी की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है। कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” भी कहा है। महादेवी ने स्वतंत्रता के पहले का भारत भी देखा और उसके बाद का भी। वे उन कवियों में से एक हैं |  

sandhyagit

0.0(0)

पुस्तक के भाग

1

प्रिय! सान्ध्य गगन

23 फरवरी 2022
1
0
0

प्रिय ! सान्ध्य गगन मेरा जीवन! यह क्षितिज बना धुँधला विराग, नव अरुण अरुण मेरा सुहाग, छाया सी काया वीतराग, सुधिभीने स्वप्न रँगीले घन! साधों का आज सुनहलापन, घिरता विषाद का तिमिर सघन, सन्ध्या क

2

प्रिय मेरे गीले नयन बनेंगे आरती

23 फरवरी 2022
0
0
0

प्रिय मेरे गीले नयन बनेंगे आरती! श्वासों में सपने कर गुम्फित, बन्दनवार वेदना- चर्चित, भर दुख से जीवन का घट नित, मूक क्षणों में मधुर भरुंगी भारती! दृग मेरे यह दीपक झिलमिल, भर आँसू का स्नेह रह

3

क्या न तुमने दीप बाला

23 फरवरी 2022
0
0
0

क्या न तुमने दीप बाला? क्या न इसके शीन अधरों- से लगाई अमर ज्वाला? अगम निशि हो यह अकेला, तुहिन-पतझर-वात-बेला, उन करों की सजल सुधि में पहनता अंगार-माला! स्नेह माँगा औ’ न बाती, नींद कब, कब क्ला

4

रागभीनी तू सजनि निश्वास

23 फरवरी 2022
0
0
0

रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले! लोचनों में क्या मदिर नव? देख जिसकी नीड़ की सुधि फूट निकली बन मधुर रव! झूलते चितवन गुलाबी- में चले घर खग हठीले! रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!

5

अश्रु मेरे माँगने जब

23 फरवरी 2022
0
0
0

अश्रु मेरे माँगने जब नींद में वह पास आया! अश्रु मेरे माँगने जब नींद में वह पास आया! स्वप्न सा हँस पास आया! हो गया दिव की हँसी से शून्य में सुरचाप अंकित; रश्मि-रोमों में हुआ निस्पन्द तम भी

6

क्यों वह प्रिय आता पार नहीं

23 फरवरी 2022
0
0
0

क्यों वह प्रिय आता पार नहीं! शशि के दर्पण देख देख, मैंने सुलझाये तिमिर-केश; गूँथे चुन तारक-पारिजात, अवगुण्ठन कर किरणें अशेष; क्यों आज रिझा पाया उसको मेरा अभिनव श्रृंगार नहीं? स्मित से कर

7

जाने किस जीवन की सुधि ले

23 फरवरी 2022
0
0
0

जाने किस जीवन की सुधि ले लहराती आती मधु-बयार! रंजित कर ले यह शिथिल चरण, ले नव अशोक का अरुण राग, मेरे मण्डन को आज मधुर, ला रजनीगन्धा का पराग; यूथी की मीलित कलियों से अलि, दे मेरी कबरी सँवार।

8

शून्य मन्दिर में बनूँगी

23 फरवरी 2022
0
0
0

शून्य मन्दिर में बनूँगी आज मैं प्रतिमा तुम्हारी! अर्चना हों शूल भोले, क्षार दृग-जल अर्घ्य हो ले, आज करुणा-स्नात उजला दु:ख हो मेरा पुजारी! नूपुरों का मूक छूना, सरद कर दे विश्व सूना, यह अगम

9

प्रिय-पथ के यह मुझे अति प्यारे ही हैं

23 फरवरी 2022
0
0
0

प्रिय-पथ के यह मुझे अति प्यारे ही हैं हीरक सी वह याद बनेगा जीवन सोना, जल जल तप तप किन्तु खरा इसको है होना! चल ज्वाला के देश जहाँ अङ्गारे ही हैं! तम-तमाल ने फूल गिरा दिन पलकें खोलीं मैंने दुख

10

रे पपीहे पी कहाँ

23 फरवरी 2022
0
0
0

रे पपीहे पी कहाँ? खोजता तू इस क्षितिज से उस क्षितिज तक शून्य अम्बर, लघु परों से नाप सागर; नाप पाता प्राण मेरे प्रिय समा कर भी कहाँ? हँस डुबा देगा युगों की प्यास का संसार भर तू, कण्ठगत लघु

11

विरह की घडियाँ हुई अलि

23 फरवरी 2022
0
0
0

विरह की घडियाँ हुई अलि मधुर मधु की यामिनी सी! दूर के नक्षत्र लगते पुतलियों से पास प्रियतर, शून्य नभ की मूकता में गूँजता आह्वान का स्वर, आज है नि:सीमता लघु प्राण की अनुगामिनी सी! एक स्पन्दन कह

12

शलभ मैं शापमय वर हूँ!

23 फरवरी 2022
0
0
0

शलभ मैं शापमय वर हूँ! किसी का दीप निष्ठुर हूँ! ताज है जलती शिखा चिनगारियाँ श्रृंगारमाला; ज्वाल अक्षय कोष सी अंगार मेरी रंगशाला; नाश में जीवित किसी की साध सुन्दर हूँ! नयन में रह किन्तु जलती

13

पंकज-कली

23 फरवरी 2022
0
0
0

क्या तिमिर कह जाता करुण? क्या मधुर दे जाती किरण? किस प्रेममय दुख से हृदय में अश्रु में मिश्री घुली? किस मलय-सुरभित अंक रह- आया विदेशी गन्धवह? उन्मुक्त उर अस्तित्व खो क्यों तू भुजभर मिली? र

14

हे मेरे चिर सुन्दर-अपने

23 फरवरी 2022
0
0
0

हे मेरे चिर सुन्दर-अपने! भेज रही हूँ श्वासें क्षण क्षण, सुभग मिटा देंगी पथ से यह तेरे मृदु चरणों का अंकन ! खोज न पाऊँगी, निर्भय आओ जाओ बन चंचल सपने! गीले अंचल में धोया सा- राग लिए, मन खोज रह

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए