कुछ रिश्ते
यू ही बन जाते हैं जैसे
आपने लगाया हो एक नन्हा पौधा
उसके ज़रा मुरझाने पर कभी आप अपने
मिट्टी से सने हाथों की खुशबू को महसूस करते हैं..
कुछ रिश्ते
यू ही बन जाते हैं जैसे
घर में आये किसी नन्हे पालतू को
अपने हाथों से रोटी का टुकड़ा खिलाया हो
फिर जीवनपर्यंत आप अपनी भूख के साथ
उसकी भूख का एक अमूल्य रिश्ता निभाते हैं..
इन यु ही बने रिश्तो में
ना ही साझेदारी और ना ही अपेक्षाएं हैं,
यह एक प्रेमपूर्ण आत्मीयता का दर्शन हैं..
(विवेक मेश्राम)