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पद्मावती: राक्षस से घमासान युद्ध

1 फरवरी 2022

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बारहवी पुतली - पद्मावती उस सिंहासन की बारहवीं पुतली थी उसने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है-
एक दिन रात के समय राजा विक्रमादित्य महल की छत पर बैठे थे। मौसम बहुत सुहाना था। पूनम का चाँद अपने यौवन पर था तथा सब कुछ इतना साफ़-साफ़ दिख रहा था, मानों दिन हो। प्रकृति की सुन्दरता में राजा एकदम खोए हुए थे। सहसा वे चौंक गए। किसी स्त्री की चीख थी। चीख की दिशा का अनुमान लगाया। लगातार कोई औरत चीख रही थी और सहायता के लिए पुकार रही थी। उस स्त्री को विपत्ति से छुटकारा दिलाने के लिए विक्रम ने ढाल-तलवार सम्भाली और अस्तबल से घोड़ा निकाला। घोड़े पर सवार हो फौरन उस दिशा में चल पड़े। कुछ ही समय बाद वे उस स्थान पर पहुँचे।
उन्होंने देखा कि एक स्त्री "बचाओ बचाओ कहती हुई बेतहाशा भागी जा रही है और एक विकराल दानव उसे पकड़ने के लिए उसका पीछा कर रहा है। विक्रम ने एक क्षण भी नहीं गँवाया और घोड़े से कूद पड़े। युवती उनके चरणों पर गिरती हुई बचाने की विनती करने लगी। उसकी बाँहें पकड़कर विक्रम ने उसे उठाया और उसे बहन सम्बोधित करके ढाढ़स बंधाने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि वह राजा विक्रमादित्य की शरणागत है और उनके रहते उस पर कोई आँच नहीं आ सकती। जब वे उसे दिलासा दे रहे थे, तो राक्षस ने अट्टहास लगाया। उसने विक्रम को कहा कि उन जैसा एक साधारण मानव उसका कुछ नहीं बिगाड सकता तथा उन्हें वह कुछ ही क्षणों में पशु की भाँति चीड़ फाड़कर रख देगा। ऐसा बोलते हुए वह विक्रम की ओर लपका।
विक्रम ने उसे चेतावनी देते हुए ललकारा। राक्षस ने उनकी चेतावनी का उपहास किया। उसे लग रहा था कि विक्रम को वह पल भर में मसल देगा। वह उनकी ओर बढ़ता रहा। विक्रम भी पूरे सावधान थे। वह ज्योंहि विक्रम को पकड़ने के लिए बढ़ा विक्रम ने अपने को बचाकर उस पर तलवार से वार किया। राक्षस भी अत्यन्त फुर्तीला था। उसने पैंतरा बदलकर खुद को बचा लिया और भिड़ गया। दोनों में घमासान युद्ध होने लगा। विक्रम ने इतनी फुर्ती और चतुराई से युद्ध किया कि राक्षस थकान से चूर हो गया तथा शिथिल पड़ गया। विक्रम ने अवसर का पूरा लाभ उठाया तथा अपनी तलवार से राक्षस का सर धड़ से अलग कर दिया। विक्रम ने समझा राक्षस का अन्त हो चुका है, मगर दूसरे ही पल उसका कटा सिर फिर अपनी जगह आ लगा और राक्षस दुगुने उत्साह से उठकर लड़ने लगा। इसके अलावा एक और समस्या हो गई।
जहाँ उसका रक्त गिरा था वहाँ एक और राक्षस पैदा हो गया। राजा विक्रमादित्य क्षण भर को तो चकित हुए, किन्तु विचलित हुए बिना एक साथ दोनों राक्षसों का सामना करने लगे। रक्त से जन्मे राक्षस ने मौका देखकर उन पर घूँसे का प्रहार किया तो उन्होंने पैंतरा बदलकर पहले वार में उसकी भुजाएँ तथा दूसरे वार में उसकी टांगें काट डालीं। राक्षस असह्य पीड़ा से इतना चिल्लाया कि पूरा वन गूंज गया। उसे दर्द से तड़पता देखकर राक्षस का धैर्य जवाब दे गया और मौका पाकर वह सर पर पैर रखकर भागा। चूँकि उसने पीठ दिखाई थी, इसलिए विक्रम ने उसे मारना उचित नहीं समझा। उस राक्षस के भाग जाने के बाद विक्रम उस स्त्री के पास आए तो देखा कि वह भय के मारे काँप रही है। उन्होंने उससे कहा कि उसे निश्चिन्त हो जाना चाहिए और भय त्याग देना चाहिए, क्योंकि दानव भाग चुका है।
उन्होंने उसे अपने साथ महल चलने को कहा ताकि उसे उसके माँ-बाप के पास पहुँचा दे। उस स्त्री ने जवाब दिया कि खतरा अभी टला नहीं है, क्योंकि राक्षस मरा नहीं। वह लौटकर आएगा और उसे ढूंढकर फिर इसी स्थान पर ले आएगा। जब विक्रम ने उसका परिचय जानना चाहा, तो वह बोली कि वह सिंहुल द्वीप की रहनेवाली है और एक ब्राह्मण की बेटी है। एक दिन वह तालाब में सखियों के साथ तालाब में नहा रही थी तभी राक्षस ने उसे देख लिया और मोहित हो गया। वहीं से वह उसे उठाकर यहाँ ले आया और अब उसे अपना पति मान लेने को कहता है। उसने सोच लिया है कि अपने प्राण दे देगी, मगर अपनी पवित्रता नष्ट नहीं होने देगी। वह बोलते-बोलते सिसकने लगी और उसका गला र्रूँध गया।
विक्रम ने उसे आश्वासन दिया कि वे राक्षस का वध करके उसकी समस्या का अन्त कर देंगे और उन्होंने राक्षस के फिर से जीवित होने का राज़ पूछा। उस स्त्री ने जवाब दिया कि राक्षस के पेट में एक मोहिनी वास करती है जो उसके मरते ही उसके मुँह में अमृत डाल देती है। उसे तो वह जीवित कर सकती है, मगर उसके रक्त से पैदा होने वाले दूसरे राक्षस को नहीं, इसलिए वह दूसरा राक्षस अपंग होकर दम तोड़ रहा है। यह सुनकर विक्रम ने कहा कि वे प्रण करते हैं कि उस राक्षस का वध किए बगैर अपने महल नहीं लौटेंगे चाहे कितनी भी प्रतीक्षा क्यों न करनी पड़े। उन्होंने जब उससे मोहिनी के बारे में पूछा तो स्री ने अनभिज्ञता जताई। विक्रम एक पेड़ की छाया में विश्राम करने लगे। तभी एक सिंह झाड़ियों में से निकलकर विक्रम पर झपटा।
चूँकि विक्रम पूरी तरह चौकन्ने नहीं थे, इसलिए सिंह उनकी बाँह पर घाव लगाता हुआ चला गया। अब विक्रम भी पूरी तरह हमले के लिए तैयार हो गए। दूसरी बार जब सिंह उनकी ओर झपटा तो उन्होंने उसके पैरों को पकड़कर उसे पूरे ज़ोर से हवा में उछाल दिया। सिंह बहुत दूर जाकर गिरा और क्रुद्ध होकर उसने गर्जना की। दूसरे ही पल सिंह ने भागने वाले राक्षस का रूप धर लिया। अब विक्रम की समझ में आ गया कि उसने छल से उन्हें हराना चाहा था। वे लपक कर राक्षस से भिड़ गए। दोनों में फिर भीषण युद्ध शुरु हो गया। जब राक्षस की साँस लड़ते-लड़ते फूलने लगी, तो विक्रम ने तलवार उसके पेट में घुसेड़ दी।
राक्षस धरती पर गिरकर दर्द से चीखने लगा। विक्रम ने उसके बाद तलवार से उसका पेट फाड़ दिया। पेट फटते ही मोहिनी कूदकर बाहर आई और अमृत लाने दौड़ी। विक्रम ने बेतालों का स्मरण किया और उन्हें मोहिनी को पकड़ने का आदेश दिया। अमृत न मिल पाने के कारण राक्षस तड़पकर मर गया। मोहिनी ने अपने बारे में बताया कि वह शिव की गणिका थी जिसे किसी गलती की सज़ा के रूप में राक्षस की सेविका बनना पड़ा। महल लौटकर विक्रम ने ब्राह्मण कन्या को उसके माता-पिता को सौप दिया और मोहिनी से खुद विधिवत् विवाह कर लिया।
 
 

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रचनाएँ
सिंहासन बत्तीसी
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सिंहासन बत्तीसी/सिंघासन बत्तीसी एक लोककथा संग्रह है। प्रजा से प्रेम करने वाले,न्याय प्रिय,जननायक, प्रयोगवादी एवं दूरदर्शी महाराजा विक्रमादित्य भारतीय लोककथाओं के एक बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। उनके इन अद्भुत गुणों का बखान करती अनेक कथाएं हम बचपन से ही पढ़ते आए हैं। सिंहासन बत्तीसी भी ऐसी ही ३२ कथाओं का संग्रह है जिसमें ३२ पुतलियाँ विक्रमादित्य के विभिन्न गुणों का कहानी के रूप में वर्णन करती हैं।
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परिचय: सिंहासन बत्तीसी

1 फरवरी 2022
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सिंहासन बत्तीसी एक लोककथा संग्रह है। प्रजावत्सल, जननायक, प्रयोगवादी एवं दूरदर्शी महाराजा विक्रमादित्य भारतीय लोककथाओं के एक बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। प्राचीनकाल से ही उनके गुणों पर प्रकाश डालने वा

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आमुख कथा

1 फरवरी 2022
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बहुत समय पहले राजा भोज उज्जैन नगर पर राज्य करते थे। राजा भोज आदर्शवादी, सामाजिक एवं धार्मिक प्रवृति के न्यायप्रिय राजा थे। समस्त प्रजा उनके राज्य में सुखी एवं सम्पन्न थी। सम्पूर्ण भारतवर्ष में उनकी प्

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रत्नमंजरी: जन्म तथा सिंहासन प्राप्ति

1 फरवरी 2022
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पहली पुतली रत्नमंजरी राजा विक्रम के जन्म तथा इस सिंहासन प्राप्ति की कथा बताती है। वह इस प्रकार है: आर्यावर्त में एक राज्य था जिसका नाम था अम्बावती। वहाँ के राजा गंधर्वसेन ने चारों वर्णों की स्त्रीयों

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चित्रलेखा: विक्रम और बेताल

1 फरवरी 2022
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दूसरी पुतली चित्रलेखा की कथा इस प्रकार है- एक दिन राजा विक्रमादित्य शिकार खेलते-खेलते एक ऊँचे पहाड़ पर आए। वहाँ उन्होंने देखा एक साधु तपस्या कर रहा है। साधु की तपस्या में विघ्न नहीं पड़े यह सोचकर वे उस

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चन्द्रकला: पुरुषार्थ और भाग्य में कौन बड़ा

1 फरवरी 2022
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तीसरी पुतली चन्द्रकला ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है। एक बार पुरुषार्थ और भाग्य में इस बात पर ठन गई कि कौन बड़ा है। पुरुषार्थ कहता कि बगैर मेहनत के कुछ भी सम्भव नहीं है जबकि भाग्य का मानना था कि जिसक

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कामकंदला: दानवीरता तथा त्याग की भावना

1 फरवरी 2022
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चौथी पुतली कामकंदला की कथा से भी विक्रमादित्य की दानवीरता तथा त्याग की भावना का पता चलता है। वह इस प्रकार है- एक दिन राजा विक्रमादित्य दरबार को सम्बोधित कर रहे थे तभी किसी ने सूचना दी कि एक ब्राह्म

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लीलावती: विक्रमादित्य की दानवीरता

1 फरवरी 2022
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पाँचवीं पुतली - लीलावती ने भी राजा भोज को विक्रमादित्य के बारे में जो कुछ सुनाया उससे उनकी दानवीरता ही झलकती थी। कथा इस प्रकार थी- हमेशा की तरह एक दिन विक्रमादित्य अपने दरबार में राजकाज निबटा रहे थे

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रविभामा: विक्रमादित्य की परीक्षा

1 फरवरी 2022
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छठी पुतली रविभामा ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है: एक दिन विक्रमादित्य नदी के तट पर बने हुए अपने महल से प्राकृतिक सौन्दर्य को निहार रहे थे। बरसात का महीना था, इसलिए नदी उफन रही थी और अत्यन्त तेज़ी से

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कौमुदी: विक्रमादित्य और पिशाचिनी

1 फरवरी 2022
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सातवीं पुतली कौमुदी ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- एक दिन राजा विक्रमादित्य अपने शयन-कक्ष में सो रहे थे। अचानक उनकी नींद करुण-क्रन्दन सुनकर टूट गई। उन्होंने ध्यान लगाकर सुना तो रोने की आवाज नदी की तर

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पुष्पवती: विक्रमादित्य और काठ का घोड़ा

1 फरवरी 2022
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आठवीं पुतली पुष्पवती की कथा इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य अद्भुत कला-पारखी थे। उन्हें श्रेष्ठ कलाकृतियों से अपने महल को सजाने का शौक था। वे कलाकृतियों का मूल्य आँककर बेचनेवाले को मुँह माँगा दाम देत

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मधुमालती: विक्रमादित्य और प्रजा का हित

1 फरवरी 2022
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नवीं पुतली - मधुमालती ने जो कथा सुनाई उससे विक्रमादित्य की प्रजा के हित में प्राणोत्सर्ग करने की भावना झलकती है। कथा इस प्रकार है- एक बार राजा विक्रमादित्य ने राज्य और प्रजा की सुख-समृद्धि के लिए एक

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प्रभावती: विक्रमादित्य और राजकुमारी का विवाह

1 फरवरी 2022
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दसवीं पुतली - प्रभावती ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- एक बार राजा विक्रमादित्य शिकार खेलते-खेलते अपने सैनिकों की टोली से काफी आगे निकलकर जंगल में भटक गए। उन्होंने इधर-उधर काफी खोजा, पर उनके सैनिक उ

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त्रिलोचना: देवताओं का आवाहन

1 फरवरी 2022
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ग्यारहवीं पुतली - त्रिलोचना ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य बहुत बड़े प्रजापालक थे। उन्हें हमेंशा अपनी प्रजा की सुख-समृद्धि की ही चिन्ता सताती रहती थी। एक बार उन्होंने एक महायज्ञ करने

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पद्मावती: राक्षस से घमासान युद्ध

1 फरवरी 2022
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बारहवी पुतली - पद्मावती उस सिंहासन की बारहवीं पुतली थी उसने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- एक दिन रात के समय राजा विक्रमादित्य महल की छत पर बैठे थे। मौसम बहुत सुहाना था। पूनम का चाँद अपने यौवन पर था त

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कीर्तिमती: विक्रमादित्य और सर्वश्रेष्ठ दानवीर

1 फरवरी 2022
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तेरहवीं पुतली - कीर्तिमती ने इस प्रकार कथा कही- एक बार राजा विक्रमादित्य ने एक महाभोज का आयोजन किया। उस भोज में असंख्य विद्धान, ब्राह्मण, व्यापारी तथा दरबारी आमन्त्रित थे। भोज के मध्य में इस बात पर च

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सुनयना: हिंसक सिंह का शिकार

1 फरवरी 2022
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चौदहवीं पुतली - सुनयना ने जो कथा की वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य सारे नृपोचित गुणों के सागर थे। उन जैसा न्यायप्रिय, दानी और त्यागी और कोई न था। इन नृपोचित गुणों के अलावा उनमें एक और गुण था। वे

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सुंदरवती: राजा की हर चीज़ प्रजा के हित के लिए

1 फरवरी 2022
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पन्द्रहवीं पुतली - सुंदरवती की कथा इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य के शासन काल में उज्जैन राज्य की समृद्धि आकाश छूने लगी थी। व्यापारियों का व्यापार अपने देश तक ही सीमित नहीं था, बल्कि दूर के देशों तक

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सत्यवती: पाताल लोक की यात्रा

2 फरवरी 2022
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सोलहवीं पुतली - सत्यवती ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य के शासन काल में उज्जैन नगरी का यश चारों ओर फैला हुआ था। एक से बढ़कर एक विद्वान उनके दरबार की शोभा बढ़ाते थे और उनकी नौ जानकारो

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विद्यावती: विक्रमादित्य की परोपकार तथा त्याग की भावना

2 फरवरी 2022
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सत्रहवीं पुतली - विद्यावती ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- महाराजा विक्रमादित्य की प्रजा को कोई कमी नहीं थीं। सभी लोग संतुष्ट तथा प्रसन्न रहते थे। कभी कोई समस्या लेकर यदि कोई दरबार आता था उसकी समस्या

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तारामती: विद्वानों तथा कलाकारों का सम्मान

2 फरवरी 2022
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अठारहवीं पुतली - तारामती की कथा इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य की गुणग्राहिता का कोई जवाब नहीं था। वे विद्वानों तथा कलाकारों को बहुत सम्मान देते थे। उनके दरबार में एक से बढ़कर एक विद्वान तथा कलाकार

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रूपरेखा: राजा विक्रमादित्य और दो तपस्वी

2 फरवरी 2022
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उन्नीसवी पुतली - रूपरेखा नामक उन्नीसवी पुतली ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है: राजा विक्रमादित्य के दरबार में लोग अपनी समस्याएँ लेकर न्याय के लिए तो आते ही थे कभी-कभी उन प्रश्नों को लेकर भी उपस्थित हो

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ज्ञानवती: ज्ञानियों की कद्र

2 फरवरी 2022
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बीसवीं पुतली - ज्ञानवती ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य सच्चे ज्ञान के बहुत बड़े पारखी थे तथा ज्ञानियों की बहुत कद्र करते थे। उन्होंने अपने दरबार में चुन-चुन कर विद्वानों, पंडितों,

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चन्द्रज्योति: विक्रमादित्य और दुर्लभ ख्वांग बूटी

2 फरवरी 2022
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इक्कीसवीं पुतली - चन्द्रज्योति की कथा इस प्रकार है- एक बार विक्रमादित्य एक यज्ञ करने की तैयारी कर रहे थे। वे उस यज्ञ में चन्द्र देव को आमन्त्रित करना चाहते थे। चन्द्रदेव को आमन्त्रण देने कौन जाए- इस

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अनुरोधवती: बुद्धि और संस्कार

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बाइसवीं पुतली - अनुरोधवती ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य अद्भुत गुणग्राही थे। वे सच्चे कलाकारों का बहुत अधिक सम्मान करते थे तथा स्पष्टवादिता पसंद करते थे। उनके दरबार में योग्यता क

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धर्मवती: मनुष्य जन्म से बड़ा होता है या कर्म से-

2 फरवरी 2022
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तेइसवीं पुतली - धर्मवती ने इस प्रकार कथा कही- एक बार राजा विक्रमादित्य दरबार में बैठे थे और दरबारियों से बातचीत कर रहे थे। बातचीत के क्रम में दरबारीयों में इस बात पर बहस छिड़ गई कि मनुष्य जन्म से बड़ा

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करुणावती: चरित्रहीन से प्रेम विनाश की ओर ले जाता है

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चौबीसवीं पुतली - करुणावती ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य का सारा समय ही अपनी प्रजा के दुखों का निवारण करने में बीतता था। प्रजा की किसी भी समस्या को वे अनदेखा नहीं करते थे। सारी समस्

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त्रिनेत्री: ईश्वर से आस

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पच्चीसवीं पुतली - त्रिनेत्री की कथा इस प्रकार है: राजा विक्रमादित्य अपनी प्रजा के सुख दुख का पता लगाने के लिए कभी-कभी वेश बदलकर घूमा करते थे तथा खुद सारी समस्या का पता लगाकर निदान करते थे। उनके राज्

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मृगनयनी: रानी का विश्वासघात

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छब्बीसवीं पुतली - मृगनयनी ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है: राजा विक्रमादित्य न सिर्फ अपना राजकाज पूरे मनोयोग से चलाते थे, बल्कि त्याग, दानवीरता, दया, वीरता इत्यादि अनेक श्रेष्ठ गुणों के धनी थे। वे कि

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मलयवती: विक्रमादित्य और दानवीर राजा बलि

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सताइसवीं पुतली - मलयवती ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- विक्रमादित्य बड़े यशस्वी और प्रतापी राजा था और राज-काज चलाने में उनका कोई सानी नहीं था। वीरता और विद्वता का अद्भुत संगम थे। उनके शस्त्र ज्ञान औ

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वैदेही: स्वर्ग की यात्रा

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अट्ठाईसवीं पुतली वैदेही ने अपनी कथा इस प्रकार कही- एक बार राजा विक्रमादित्य अपने शयन कक्ष में गहरी निद्रा में लीन थे। उन्होंने एक सपना देखा। एक स्वर्ण महल है जिसमें रत्न, माणिक इत्यादि जड़े हैं। महल म

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मानवती: राजा विक्रम की बहन की शादी

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उन्तीसवीं पुतली - मानवती ने इस प्रकार कथा सुनाई- राजा विक्रमादित्य वेश बदलकर रात में घूमा करते थे। ऐसे ही एक दिन घूमते-घूमते नदी के किनारे पहुँच गए। चाँदनी रात में नदी का जल चमकता हुआ बड़ा ही प्यारा द

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जयलक्ष्मी: मृग रूप से मुक्ति

2 फरवरी 2022
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तीसवीं पुतली - जयलक्ष्मी ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य जितने बड़े राजा थे उतने ही बड़े तपस्वी। उन्होंने अपने तप से जान लिया कि वे अब अधिक से अधिक छ: महीने जी सकते हैं। अपनी मृत्यु को

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कौशल्या: विक्रमादित्य की मृत्यु

2 फरवरी 2022
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इकत्तीसवीं पुतली - कौशल्या ने अपनी कथा इस प्रकार कही- राजा विक्रमादित्य वृद्ध हो गए थे तथा अपने योगबल से उन्होंने यह भी जान लिया कि उनका अन्त अब काफी निकट है। वे राज-काज और धर्म कार्य दोनों में अपने

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रानी रूपवती: अंतिम कहानी

2 फरवरी 2022
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बत्तीसवीं पुतली रानी रूपवती ने राजा भोज को सिंहासन पर बैठने की कोई रुचि नहीं दिखाते देखा तो उसे अचरज हुआ। उसने जानना चाहा कि राजा भोज में आज पहले वाली व्यग्रता क्यों नहीं है। राजा भोज ने कहा कि राजा व

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