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मृगनयनी: रानी का विश्वासघात

2 फरवरी 2022

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छब्बीसवीं पुतली - मृगनयनी ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है:
राजा विक्रमादित्य न सिर्फ अपना राजकाज पूरे मनोयोग से चलाते थे, बल्कि त्याग, दानवीरता, दया, वीरता इत्यादि अनेक श्रेष्ठ गुणों के धनी थे। वे किसी तपस्वी की भाँति अन्न-जल का त्याग कर लम्बे समय तक तपस्या में लीन रहे सकते थे। ऐसा कठोर तप कर सकते थे कि इन्द्रासन डोल जाए।
एक बार उनके दरबार में एक साधारण सी वेशभूषा वाले एक युवक को पकड़कर उनके सैनिक लाए। वह रात में बहुत सारे धन के साथ संदिग्ध अवस्था में कहीं जा रहा था। उसकी वेशभूषा से नहीं लग रहा था कि इस धन का वह मालिक होगा, इसलिए सिपाहियों को लगा शायद वह चोर हो और चोरी के धन के साथ कहीं चंपत होने की फिराक में हो। राजा ने जब उस युवक से उसका परिचय पूछा और जानना चाहा कि यह धन उसके पास कैसे आया तो उस युवक ने बताया कि वह एक धनाठ्य स्त्री के यहाँ नौकर है और सारा धन उसी स्त्री का दिया हुआ है। अब राजा की जिज्ञासा बढ़ गई और उन्होंने जानना चाहा कि उस स्त्री ने उसे यह धन क्यों दिया और वह धन लेकर कहाँ जा रहा था। इस पर वह युवक बोला कि अमुक जगह रुक कर स्त्री ने प्रतीक्षा करने को कहा था। दरअसल उस स्त्री के उससे अनैतिक सम्बन्ध हैं और वह उससे पति की हत्या करके आकर मिलनेवाली थी।
दोनों सारा धन लेकर कहीं दूर चले जाते और आराम से जीवन व्यतीत करते। विक्रम ने उसकी बातों की सत्यता की जाँच करने के लिए तुरन्त उसके बताये पते पर अपने सिपाहियों को भेजा। सिपाहियों ने आकर खबर दी कि उस स्त्री को अपने नौकर के गिरफ्तार होने की सूचना मिल चुकी है। अब वह विलाप करके कह रही है कि लुटेरों ने सारा धन लूट लिया और उसके पति की हत्या करके भाग गए। उसने पति की चिंता सजवाई है और खुद को पतिव्रता साबित करने के लिए सती होने की योजना बना रही है। सुबह युवक को साथ लेकर सिपाहियों के साथ विक्रम उस स्त्री के घर पहुँचे तो दृश्य देखकर सचमुच चौंक गए। स्त्री अपने पति की चिता पर बैठ चुकी थी और चिता को अग्नि लगने वाली थी। राजा ने चिता को अग्नि देने वाले को रोक दिया तथा उस स्त्री से चिता से उतरने को कहा। उन्होंने सारा धन उसे दिखाया तथा नौकर को आगे लाकर बोले कि सारी सच्चाई का पता उन्हें चल गया है। उन्होंने उस स्त्री को त्रिया चरित्र का त्याग करने को कहा तथा राजदण्ड भुगतने को तैयार हो जाने की आज्ञा दी।
स्त्री कुछ क्षणों के लिए तो भयभीत हुई, मगर दूसरे ही पल बोली कि राजा को उसके चरित्र पर ऊँगली उठाने के पहले अपनी छोटी रानी के चरित्र की जाँच करनी चाहिए। इतना कहकर वह बिजली सी फुर्ती से चिता पर कूदी और उसमें आग लगाकर सती हो गई। कोई कुछ करता वह स्त्री जलकर राख हो गई। राजा सिपाहियों सहित अपने महल वापस लौट गए। उन्हें उस स्त्री के अंतिम शब्द अभी तक जला रहे थे। उन्होंने छोटी रानी पर निगाह रखनी शुरू कर दी। एक रात उन्हें सोता समझकर छोटी रानी उठी और पिछले दरवाजे से महल से बाहर निकल गई। राजा भी दबे पाँव उसका पीछा करने लगे। चलकर वह कुछ दूर पर धूनी रमाए एक साधु के पास गई। साधु ने उसे देखा तो उठ गया और उसे लेकर पास बनी एक कुटिया के अन्दर दोनों चले गए। विक्रम ने कुटिया में जो देखा वह उनके लिए असहनीय था। रानी निर्वस्त्र होकर उस साधु का आलिंगन करने लगी तथा दोनों पति-पत्नी की तरह बेझिझक संभोगरत हो गए। राजा ने सोचा कि छोटी रानी को वे इतना प्यार करते हैं फिर भी वह विश्वासघात कर रही है। उनका क्रोध सीमा पार कर गया और उन्होंने कुटिया में घुसकर उस साधु तथा छोटी रानी को मौत के घाट उतार दिया।
जब वे महल लौटे तो उनकी मानसिक शांति जा चुकी थी। वे हमेशा बेचैन तथा खिन्न रहने लगे। सांसारिक सुखों से उनका मन उचाट हो गया तथा मन में वैराग्य की भावना ने जन्म ले लिया। उन्हें लगता था कि उनके धर्म-कर्म में ज़रुर कोई कमी थी जिसके कारण भगवान ने उन्हें छोटी रानी के विश्वासघात का दृश्य दिखाकर दण्डित किया। यही सब सोचकर उन्होंने राज-पाट का भार अपने मंत्रियों को सौंप दिया और खुद समुद्र तट पर तपस्या करने को चल पड़े। समुद्र तट पर पहुँचकर उन्होंने सबसे पहले एक पैर पर खड़े होकर समुद्र देवता का आवाहन किया। उनकी साधना से प्रसन्न होकर जब समुद्र देवता ने उन्हें दर्शन दिए तो उन्होंने समुद्र देवता से एक छोटी सी मांग पूरी करने की विनती की। उन्होंने कहा कि उनके तट पर वे एक कुटिया बनाकर अखण्ड साधना करना चाहते हैं और अपनी साधना निर्विघ्न पूरा करने का उनसे आशीर्वाद चाहते हैं।
समुद्र देवता ने उन्हें अपना आशीर्वाद दिया तथा उन्हें एक शंख प्रदान किया। समुद्र देवता ने कहा कि जब भी कोई दैवीय विपत्ति आएगी इस शंख की ध्वनि से दूर हो जाएगा। समुद्र देव से उपहार लेकर विक्रम ने उन्हें धन्यवाद दिया तथा प्रणाम कर समुद्र तट पर लौट आए। उन्होंने समुद्र तट पर एक कुटिया बनाई और साधना करने लगे। उन्होंने लम्बे समय तक इतनी कठिन साधना की कि देव लोक में हड़कम्प सच गया। सारे देवता बात करने लगे कि अगर विक्रम इसी प्रकार साधना में लीन रहे तो इन्द्र के सिंहासन पर अधिकार कर लेंगे। इन्द्र को अपना सिंहासन खतरे में दिखाई देने लगा। उन्होंने अपने सहयोगियों को साधना स्थल के पास इतनी अधिक वृष्टि करने का आदेश दिया कि पूरा स्थान जलमग्न हो जाए और विक्रम कुटिया सहित पानी में बह जाएँ। बस आदेश की देर थी। बहुत भयानक वृष्टि शुरू हो गई। कुछ ही घण्टों में सचमुच सारा स्थान जलमग्न हो जाता और विक्रम कुटिया सहित जल में समा गए होते।
लेकिन समुद्र देव ने उन्हें आशीर्वाद जो दिया था। उस वर्षा का सारा पानी उन्होंने पी लिया तथा साधना स्थल पहले की भाँति सूखा ही रहा। इन्द्र ने जब यह अद्भुत चमत्कार देखा तो उनकी चिन्ता और बढ़ गई. उन्होंने अपने सेवकों को बुलाकर आँधी-तूफान का सहारा लेने का आदेश दिया। इतने भयानक वेग से आँधी चली कि कुटिया तिनके-तिनके होकर बिखर गई। सब कुछ हवा में रुई की भाँति उड़ने लगा। बड़े-बड़े वृक्ष उखड़कर गिरने लगे। विक्रम के पाँव भी उखड़ते हुए मालूम पड़े। लगा कि आँधी उन्हें उड़ाकर साधना स्थल से बहुत दूर फेंक देगी। विक्रम को समुद्र देव द्वारा दिया गया शंख याद आया और उन्होंने शंख को ज़ोर से फूंका। शंख से बड़ी तीव्र ध्वनि निकली। शंख ध्वनि के साथ आँधी-तूफान का पता नहीं रहा। वहाँ ऐसी शान्ति छा गई मानो कभी आँधी आई ही न हो। अब तो इन्द्र देव की चिन्ता और अधिक बढ़ गई।
उन्हें सूझ नहीं रहा था कि विक्रम की साधना कैसे भंग की जाए। अब विक्रम की साधना को केवल अप्सराओं का आकर्षण ही भंग कर सकता था। उन्होंने तिलोत्तमा नामक अप्सरा को बुलाया तथा उसे जाकर विक्रम की साधना भंग करने को कहा। तिलोत्तमा अनुपम सुन्दरी थी और उसका रूप देखकर कोई भी कामदेव के वाणों से घायल हुए बिना नहीं रह सकता था। तिलोत्तमा साधना स्थल पर उतरी तथा मनमोहक गायन-वादन और नृत्य द्वारा विक्रम की साधना में विघ्न डालने की चेष्टा करने लगी। मगर वैरागी विक्रम का क्या बिगाड़ पाती। विक्रम ने शंख को फूँक मारी और तिलोत्तमा को ऐसा लगा जैसे किसी ने उसे आग की ज्वाला में ला पटका हो। भयानक ताप से वह उद्विग्न हो उठी तथा वहाँ से उसी क्षण अदृश्य हो गई। जब यह युक्ति भी कारगर नहीं हुई तो इन्द्र का आत्मविश्वास पूरी तरह डोल गया। उन्होंने खुद ब्राह्मण का वेश धरा और साधना स्थल आए। वे जानते थे कि विक्रम याचको को कभी निराश नहीं करते हैं तथा सामर्थ्यानुसार दान देते हैं। जब इन्द्र विक्रम के पास वे पहुँचे तो विक्रम ने उनके आने का प्रयोजन पूछा।
उन्होंने विक्रम से भिक्षा देने को कहा तथा भिक्षा के रूप में उनकी कठिन साधना का सारा फल मांग लिया। विक्रम ने अपनी साधना का सारा फल उन्हें सहर्ष दान कर दिया। साधना फल दान क्या था- इन्द्र को अभयदान मिल गया। उन्होंने प्रकट होकर विक्रम की महानता का गुणगान किया और आशीर्वाद दिया। उन्होंने कहा कि विक्रम के राज्य में अतिवृष्टि और अनावृष्टि नहीं होगी। कभी अकाल या सूखा नहीं पड़ेगा सारी फसलें समय पर और भरपूर होंगी। इतना कहकर इन्द्र अन्तर्धान हो गए। 

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रचनाएँ
सिंहासन बत्तीसी
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सिंहासन बत्तीसी/सिंघासन बत्तीसी एक लोककथा संग्रह है। प्रजा से प्रेम करने वाले,न्याय प्रिय,जननायक, प्रयोगवादी एवं दूरदर्शी महाराजा विक्रमादित्य भारतीय लोककथाओं के एक बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। उनके इन अद्भुत गुणों का बखान करती अनेक कथाएं हम बचपन से ही पढ़ते आए हैं। सिंहासन बत्तीसी भी ऐसी ही ३२ कथाओं का संग्रह है जिसमें ३२ पुतलियाँ विक्रमादित्य के विभिन्न गुणों का कहानी के रूप में वर्णन करती हैं।
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परिचय: सिंहासन बत्तीसी

1 फरवरी 2022
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सिंहासन बत्तीसी एक लोककथा संग्रह है। प्रजावत्सल, जननायक, प्रयोगवादी एवं दूरदर्शी महाराजा विक्रमादित्य भारतीय लोककथाओं के एक बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। प्राचीनकाल से ही उनके गुणों पर प्रकाश डालने वा

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आमुख कथा

1 फरवरी 2022
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बहुत समय पहले राजा भोज उज्जैन नगर पर राज्य करते थे। राजा भोज आदर्शवादी, सामाजिक एवं धार्मिक प्रवृति के न्यायप्रिय राजा थे। समस्त प्रजा उनके राज्य में सुखी एवं सम्पन्न थी। सम्पूर्ण भारतवर्ष में उनकी प्

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रत्नमंजरी: जन्म तथा सिंहासन प्राप्ति

1 फरवरी 2022
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पहली पुतली रत्नमंजरी राजा विक्रम के जन्म तथा इस सिंहासन प्राप्ति की कथा बताती है। वह इस प्रकार है: आर्यावर्त में एक राज्य था जिसका नाम था अम्बावती। वहाँ के राजा गंधर्वसेन ने चारों वर्णों की स्त्रीयों

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चित्रलेखा: विक्रम और बेताल

1 फरवरी 2022
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दूसरी पुतली चित्रलेखा की कथा इस प्रकार है- एक दिन राजा विक्रमादित्य शिकार खेलते-खेलते एक ऊँचे पहाड़ पर आए। वहाँ उन्होंने देखा एक साधु तपस्या कर रहा है। साधु की तपस्या में विघ्न नहीं पड़े यह सोचकर वे उस

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चन्द्रकला: पुरुषार्थ और भाग्य में कौन बड़ा

1 फरवरी 2022
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तीसरी पुतली चन्द्रकला ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है। एक बार पुरुषार्थ और भाग्य में इस बात पर ठन गई कि कौन बड़ा है। पुरुषार्थ कहता कि बगैर मेहनत के कुछ भी सम्भव नहीं है जबकि भाग्य का मानना था कि जिसक

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कामकंदला: दानवीरता तथा त्याग की भावना

1 फरवरी 2022
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चौथी पुतली कामकंदला की कथा से भी विक्रमादित्य की दानवीरता तथा त्याग की भावना का पता चलता है। वह इस प्रकार है- एक दिन राजा विक्रमादित्य दरबार को सम्बोधित कर रहे थे तभी किसी ने सूचना दी कि एक ब्राह्म

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लीलावती: विक्रमादित्य की दानवीरता

1 फरवरी 2022
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पाँचवीं पुतली - लीलावती ने भी राजा भोज को विक्रमादित्य के बारे में जो कुछ सुनाया उससे उनकी दानवीरता ही झलकती थी। कथा इस प्रकार थी- हमेशा की तरह एक दिन विक्रमादित्य अपने दरबार में राजकाज निबटा रहे थे

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रविभामा: विक्रमादित्य की परीक्षा

1 फरवरी 2022
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छठी पुतली रविभामा ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है: एक दिन विक्रमादित्य नदी के तट पर बने हुए अपने महल से प्राकृतिक सौन्दर्य को निहार रहे थे। बरसात का महीना था, इसलिए नदी उफन रही थी और अत्यन्त तेज़ी से

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कौमुदी: विक्रमादित्य और पिशाचिनी

1 फरवरी 2022
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सातवीं पुतली कौमुदी ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- एक दिन राजा विक्रमादित्य अपने शयन-कक्ष में सो रहे थे। अचानक उनकी नींद करुण-क्रन्दन सुनकर टूट गई। उन्होंने ध्यान लगाकर सुना तो रोने की आवाज नदी की तर

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पुष्पवती: विक्रमादित्य और काठ का घोड़ा

1 फरवरी 2022
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आठवीं पुतली पुष्पवती की कथा इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य अद्भुत कला-पारखी थे। उन्हें श्रेष्ठ कलाकृतियों से अपने महल को सजाने का शौक था। वे कलाकृतियों का मूल्य आँककर बेचनेवाले को मुँह माँगा दाम देत

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मधुमालती: विक्रमादित्य और प्रजा का हित

1 फरवरी 2022
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नवीं पुतली - मधुमालती ने जो कथा सुनाई उससे विक्रमादित्य की प्रजा के हित में प्राणोत्सर्ग करने की भावना झलकती है। कथा इस प्रकार है- एक बार राजा विक्रमादित्य ने राज्य और प्रजा की सुख-समृद्धि के लिए एक

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प्रभावती: विक्रमादित्य और राजकुमारी का विवाह

1 फरवरी 2022
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दसवीं पुतली - प्रभावती ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- एक बार राजा विक्रमादित्य शिकार खेलते-खेलते अपने सैनिकों की टोली से काफी आगे निकलकर जंगल में भटक गए। उन्होंने इधर-उधर काफी खोजा, पर उनके सैनिक उ

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त्रिलोचना: देवताओं का आवाहन

1 फरवरी 2022
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ग्यारहवीं पुतली - त्रिलोचना ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य बहुत बड़े प्रजापालक थे। उन्हें हमेंशा अपनी प्रजा की सुख-समृद्धि की ही चिन्ता सताती रहती थी। एक बार उन्होंने एक महायज्ञ करने

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पद्मावती: राक्षस से घमासान युद्ध

1 फरवरी 2022
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बारहवी पुतली - पद्मावती उस सिंहासन की बारहवीं पुतली थी उसने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- एक दिन रात के समय राजा विक्रमादित्य महल की छत पर बैठे थे। मौसम बहुत सुहाना था। पूनम का चाँद अपने यौवन पर था त

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कीर्तिमती: विक्रमादित्य और सर्वश्रेष्ठ दानवीर

1 फरवरी 2022
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तेरहवीं पुतली - कीर्तिमती ने इस प्रकार कथा कही- एक बार राजा विक्रमादित्य ने एक महाभोज का आयोजन किया। उस भोज में असंख्य विद्धान, ब्राह्मण, व्यापारी तथा दरबारी आमन्त्रित थे। भोज के मध्य में इस बात पर च

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सुनयना: हिंसक सिंह का शिकार

1 फरवरी 2022
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चौदहवीं पुतली - सुनयना ने जो कथा की वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य सारे नृपोचित गुणों के सागर थे। उन जैसा न्यायप्रिय, दानी और त्यागी और कोई न था। इन नृपोचित गुणों के अलावा उनमें एक और गुण था। वे

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सुंदरवती: राजा की हर चीज़ प्रजा के हित के लिए

1 फरवरी 2022
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पन्द्रहवीं पुतली - सुंदरवती की कथा इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य के शासन काल में उज्जैन राज्य की समृद्धि आकाश छूने लगी थी। व्यापारियों का व्यापार अपने देश तक ही सीमित नहीं था, बल्कि दूर के देशों तक

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सत्यवती: पाताल लोक की यात्रा

2 फरवरी 2022
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सोलहवीं पुतली - सत्यवती ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य के शासन काल में उज्जैन नगरी का यश चारों ओर फैला हुआ था। एक से बढ़कर एक विद्वान उनके दरबार की शोभा बढ़ाते थे और उनकी नौ जानकारो

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विद्यावती: विक्रमादित्य की परोपकार तथा त्याग की भावना

2 फरवरी 2022
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सत्रहवीं पुतली - विद्यावती ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- महाराजा विक्रमादित्य की प्रजा को कोई कमी नहीं थीं। सभी लोग संतुष्ट तथा प्रसन्न रहते थे। कभी कोई समस्या लेकर यदि कोई दरबार आता था उसकी समस्या

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तारामती: विद्वानों तथा कलाकारों का सम्मान

2 फरवरी 2022
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अठारहवीं पुतली - तारामती की कथा इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य की गुणग्राहिता का कोई जवाब नहीं था। वे विद्वानों तथा कलाकारों को बहुत सम्मान देते थे। उनके दरबार में एक से बढ़कर एक विद्वान तथा कलाकार

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रूपरेखा: राजा विक्रमादित्य और दो तपस्वी

2 फरवरी 2022
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उन्नीसवी पुतली - रूपरेखा नामक उन्नीसवी पुतली ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है: राजा विक्रमादित्य के दरबार में लोग अपनी समस्याएँ लेकर न्याय के लिए तो आते ही थे कभी-कभी उन प्रश्नों को लेकर भी उपस्थित हो

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ज्ञानवती: ज्ञानियों की कद्र

2 फरवरी 2022
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बीसवीं पुतली - ज्ञानवती ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य सच्चे ज्ञान के बहुत बड़े पारखी थे तथा ज्ञानियों की बहुत कद्र करते थे। उन्होंने अपने दरबार में चुन-चुन कर विद्वानों, पंडितों,

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चन्द्रज्योति: विक्रमादित्य और दुर्लभ ख्वांग बूटी

2 फरवरी 2022
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इक्कीसवीं पुतली - चन्द्रज्योति की कथा इस प्रकार है- एक बार विक्रमादित्य एक यज्ञ करने की तैयारी कर रहे थे। वे उस यज्ञ में चन्द्र देव को आमन्त्रित करना चाहते थे। चन्द्रदेव को आमन्त्रण देने कौन जाए- इस

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अनुरोधवती: बुद्धि और संस्कार

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बाइसवीं पुतली - अनुरोधवती ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य अद्भुत गुणग्राही थे। वे सच्चे कलाकारों का बहुत अधिक सम्मान करते थे तथा स्पष्टवादिता पसंद करते थे। उनके दरबार में योग्यता क

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धर्मवती: मनुष्य जन्म से बड़ा होता है या कर्म से-

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तेइसवीं पुतली - धर्मवती ने इस प्रकार कथा कही- एक बार राजा विक्रमादित्य दरबार में बैठे थे और दरबारियों से बातचीत कर रहे थे। बातचीत के क्रम में दरबारीयों में इस बात पर बहस छिड़ गई कि मनुष्य जन्म से बड़ा

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करुणावती: चरित्रहीन से प्रेम विनाश की ओर ले जाता है

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चौबीसवीं पुतली - करुणावती ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य का सारा समय ही अपनी प्रजा के दुखों का निवारण करने में बीतता था। प्रजा की किसी भी समस्या को वे अनदेखा नहीं करते थे। सारी समस्

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त्रिनेत्री: ईश्वर से आस

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पच्चीसवीं पुतली - त्रिनेत्री की कथा इस प्रकार है: राजा विक्रमादित्य अपनी प्रजा के सुख दुख का पता लगाने के लिए कभी-कभी वेश बदलकर घूमा करते थे तथा खुद सारी समस्या का पता लगाकर निदान करते थे। उनके राज्

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मृगनयनी: रानी का विश्वासघात

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छब्बीसवीं पुतली - मृगनयनी ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है: राजा विक्रमादित्य न सिर्फ अपना राजकाज पूरे मनोयोग से चलाते थे, बल्कि त्याग, दानवीरता, दया, वीरता इत्यादि अनेक श्रेष्ठ गुणों के धनी थे। वे कि

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मलयवती: विक्रमादित्य और दानवीर राजा बलि

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सताइसवीं पुतली - मलयवती ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- विक्रमादित्य बड़े यशस्वी और प्रतापी राजा था और राज-काज चलाने में उनका कोई सानी नहीं था। वीरता और विद्वता का अद्भुत संगम थे। उनके शस्त्र ज्ञान औ

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वैदेही: स्वर्ग की यात्रा

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अट्ठाईसवीं पुतली वैदेही ने अपनी कथा इस प्रकार कही- एक बार राजा विक्रमादित्य अपने शयन कक्ष में गहरी निद्रा में लीन थे। उन्होंने एक सपना देखा। एक स्वर्ण महल है जिसमें रत्न, माणिक इत्यादि जड़े हैं। महल म

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मानवती: राजा विक्रम की बहन की शादी

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उन्तीसवीं पुतली - मानवती ने इस प्रकार कथा सुनाई- राजा विक्रमादित्य वेश बदलकर रात में घूमा करते थे। ऐसे ही एक दिन घूमते-घूमते नदी के किनारे पहुँच गए। चाँदनी रात में नदी का जल चमकता हुआ बड़ा ही प्यारा द

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जयलक्ष्मी: मृग रूप से मुक्ति

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तीसवीं पुतली - जयलक्ष्मी ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य जितने बड़े राजा थे उतने ही बड़े तपस्वी। उन्होंने अपने तप से जान लिया कि वे अब अधिक से अधिक छ: महीने जी सकते हैं। अपनी मृत्यु को

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कौशल्या: विक्रमादित्य की मृत्यु

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इकत्तीसवीं पुतली - कौशल्या ने अपनी कथा इस प्रकार कही- राजा विक्रमादित्य वृद्ध हो गए थे तथा अपने योगबल से उन्होंने यह भी जान लिया कि उनका अन्त अब काफी निकट है। वे राज-काज और धर्म कार्य दोनों में अपने

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रानी रूपवती: अंतिम कहानी

2 फरवरी 2022
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बत्तीसवीं पुतली रानी रूपवती ने राजा भोज को सिंहासन पर बैठने की कोई रुचि नहीं दिखाते देखा तो उसे अचरज हुआ। उसने जानना चाहा कि राजा भोज में आज पहले वाली व्यग्रता क्यों नहीं है। राजा भोज ने कहा कि राजा व

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